दो राज्यों, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजे अपनी जगह हैं लेकिन उपचुनावों के नतीजे भी कम दिलचस्प नहीं रहे। कम से कम दो राज्यों असम और उत्तर प्रदेश के नतीजों की चर्चा देर तक होगी। उसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा असम की सामागुड़ी और उत्तर प्रदेश की कुंदरकी व मीरापुर सीट कैसे जीती? ये तीनों मुस्लिम बहुल सीटें हैं और आमतौर पर मुस्लिम उम्मीदवार ही यहां से जीतते हैं।
भाजपा के लिए तो इन सीटों पर चुनाव जीतना बेहद मुश्कल माना जाता है। तभी समाजवादी पार्टी के लोग मान कर चल रहे थे कि उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव में के कम से कम चार सीट जरूर जीतेंगे। उनको करहल और सीसामऊ के अलावा कुंदरकी और मीरापुर जीतने का भरोसा था। लेकिन मीरापुर सीट भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने जीत ली और कुंदरकी सीट भाजपा जीत गई।
कुंदरकी सीट समाजवादी पार्टी के नेता जियाउर रहमान बर्क के सांसद बनने की वजह से खाली हुई थी। इस सीट पर आखिरी बार 1993 में भाजपा जीती थी और पिछले 31 साल से सपा या बसपा का मुस्लिम ही जीत रहा था। लेकिन इस बार भाजपा के रामवीर सिंह ने सपा के मोहम्मद रिजवान को एक लाख 44 हजार वोट से हराया।
दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर सपा, आजाद समाज पार्टी, एमआईएम और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार रहे। दिलचस्प यह है कि इन सभी पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को मिला कर 50 हजार वोट भी नहीं हैं। इन तीनों का वोट जोड़ दें तब भी भाजपा एक लाख 20 हजार वोट से जीती है। यह जादू कैसे हुआ?
इसी तरह मीरापुर सीट का मामला है। यह भी अच्छी खासी मुस्लिम आबादी वाली सीट है लेकिन वहां रालोद की मिथिलेश पाल ने सपा की सुम्बुल राणा को 30 हजार से ज्यादा वोट से हराया। इस सीट पर हार का कारण समझ में आता है। आजाद समाज पार्टी, एमआईएम और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों ने 54 हजार के करीब वोट लिए।
असम की सामागुड़ी सीट कांग्रेस के बड़े नेता रकीबुल हसन की सीट थी। वे पिछले पांच चुनाव से लगातार जीत रहे थे। इस बार उनके बेटे तंजिल हुसैन चुनाव लड़े और रकीबुल ने खुद उनके प्रचार की कमान संभाली लेकिन भाजपा के दीपलू रंजन सरमा ने उनको 24 हजार वोट से हरा दिया।