राज्यों की विधानसभा से पारित विधेयकों की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार के बाद अब राष्ट्रपति ने सवाल उठाया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट को एक नोट भेजा है। इसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसला करने के लिए डेडलाइन तय करने पर सवाल उठाए गए हैं।
राष्ट्रपति मुर्मू ने पूछा कि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए बिलों पर मंजूरी की समय सीमा तय करने का फैसला दे सकता है? राष्ट्रपति मुर्मू ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को यह नोट भेजा। मुर्मू ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समय सीमा तय करने जैसी बातों पर स्पष्टीकरण मांगा है।
उन्होंने पूछा है कि क्या अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले को बदल सकता है? उन्होंने पूछा है कि क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को पांच जजों की बेंच के पास भेजना अनिवार्य होता है? गौरतलब है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए डेडलाइन तय करने का फैसला दो जजों की बेंच ने किया है।
गौरतलब है कि यह मामला तमिलनाडु के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। वहां राज्यपाल से राज्य सरकार के 10 विधेयक कई महीनों या सालों से रोक कर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रपति ने उठाए सवाल
राष्ट्रपति द्रौपदी ने सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे हैं वो राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े हैं। ये सवाल संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3), 131 से संबंधित हैं। इन सवालों में पूछा गया है कि राज्यपाल के पास क्या विकल्प हैं जब कोई बिल उनके पास आता है? क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं? क्या राज्यपाल का विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए 14 सवालों में पहला सवाल अनुच्छेद 200 से जुड़ा है। यह अनुच्छेद राज्यपाल को बिल पर निर्णय लेने की शक्ति देता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पूछती हैं कि जब कोई बिल राज्यपाल के पास आता है, तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं?
दूसरा सवाल, क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। जब वे अनुच्छेद 200 के तहत अपने विकल्पों का इस्तेमाल करते हैं, तो क्या उन्हें हमेशा मंत्रिपरिषद की बात माननी चाहिए?
तीसरा सवाल राज्यपाल के विवेकाधिकार से जुड़ा है। राष्ट्रपति जानना चाहती हैं कि क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल जो फैसले लेते हैं, उनकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है या नहीं? क्या अदालतें उन फैसलों पर सवाल उठा सकती हैं?
चौथा सवाल अनुच्छेद 361 से संबंधित है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति और राज्यपाल को कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा देता है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूरी तरह से रोक लगाता है?
पांचवां सवाल समय सीमा से जुड़ा है। संविधान में राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग को लेकर कोई समय सीमा नहीं दी गई है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या अदालतें न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमा तय कर सकती हैं? क्या वे यह भी बता सकती हैं कि राज्यपाल को अनुच्छेद 200 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कैसे करना चाहिए?
छठा सवाल राष्ट्रपति के विवेकाधिकार से जुड़ा है। अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की न्यायिक समीक्षा हो सकती है या नहीं।
सातवां सवाल है कि संविधान में राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या अदालतें न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमा तय कर सकती हैं? क्या वे यह भी बता सकती हैं कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कैसे करना चाहिए?
आठवां सवाल अनुच्छेद 143 से संबंधित है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने की शक्ति देता है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या प्रेसीडेंट को SC से सलाह लेनी चाहिए जब राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित करते हैं?
नौवां सवाल न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसले, कानून बनने से पहले ही न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं? क्या अदालतें बिल के कानून बनने से पहले ही उस पर विचार कर सकती हैं?
दसवां सवाल अनुच्छेद 142 से संबंधित है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को व्यापक शक्तियां देता है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक कार्यों और आदेशों को बदला जा सकता है?
ग्यारहवां सवाल राज्यपाल की सहमति से जुड़ा है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून, राज्यपाल की सहमति के बिना लागू हो सकता है?
बारहवां सवाल अनुच्छेद 145(3) से संबंधित है। यह अनुच्छेद कहता है कि संविधान की व्याख्या से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कम से कम पांच जजों की बेंच द्वारा की जानी चाहिए। राष्ट्रपति पूछते हैं कि क्या SC की किसी भी बेंच के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है या नहीं? और क्या इसे कम से कम पांच जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए?
तेरहवां सवाल अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों से जुड़ा है। राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या SC की शक्तियां केवल प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं? या क्या अनुच्छेद 142 SC को ऐसे निर्देश जारी करने या आदेश पारित करने की अनुमति देता है जो संविधान या कानून के मौजूदा प्रावधानों के विपरीत हों?
चौदहवां सवाल सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा है। राष्ट्रपति पूछते हैं कि क्या संविधान सर्वोच्च अदालत को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने से रोकता है, सिवाय अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के?
तय व्यवस्था के अनुसार राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को जो रेफरेंस भेजा है और राय मांगी है उस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करेगी और अपनी राय देगी।
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