नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने निर्वाचन आयुक्तों के चयन में चीफ जस्टिस को शामिल न करने के चलते नियुक्ति रद्द करने की मांग का विरोध किया है। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा गया है कि यह दलील गलत है कि आयोग तभी स्वतंत्र होगा जब चयन समिति में जज हों। केंद्र सरकार ने कहा है कि चुनाव आयुक्तों की योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। याचिका का मकसद केवल राजनीतिक विवाद खड़ा करना है। इस मामले पर कल यानी 21 मार्च को सुनवाई होनी है।
दरअसल, 15 मार्च को कोर्ट ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर फिलहाल दखल से इनकार कर दिया था। जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि हम अंतरिम आदेश में इस तरह से कानून पर रोक नहीं लगाते हैं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का आरोप था कि मीटिंग एक दिन पहले बुलाकर नियुक्ति कर दी गई। तब कोर्ट ने कहा था कि आयुक्तों की नियुक्ति पर अपने एतराज को लेकर आप अलग से याचिका दाखिल करें।
याचिका एडीआर ने दायर की है। याचिका में चयन समिति में चीफ जस्टिस को भी रखने की मांग की गई है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले कुछ वकीलों ने भी याचिका दायर कर रखी है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार की ओर से लाए गए नए कानून को चुनौती देते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों में देश के चीफ जस्टिस को भी पैनल में शामिल करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चुनाव में पारदर्शिता लाने के मद्देनजर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले पैनल में चीफ जस्टिस को भी शामिल किया जाना जरूरी है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 02 मार्च 2023 को अपने एक फैसले में कहा था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करने वाले पैनल में चीफ जस्टिस को भी शामिल किया जाएगा। उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा इस फैसले पर एक नया कानून बनाकर नियुक्ति प्रक्रिया में चीफ जस्टिस की बजाय सरकार का एक कैबिनेट मंत्री शामिल कर दिया गया।