- मौलाना खलीलुर्रहमान सज्जाद नोमानी से के बाद चढ़ा पारा
- चंद्रशेखर रावण ने बसपा व सपा के लिये खड़ी की मुसीबत
- क्या राजनीतिक समीकरण साधने की जुगत में हैं चंद्रशेखर
नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की लखनऊ में मौलाना खलीलुर्रहमान सज्जाद नोमानी से मुलाक़ात हुई, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। शुरू-शुरू में इसे बीमार चल रहे मौलाना का हाल-चाल लेने की शिष्टाचार भेंट बताया गया, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे बड़े रणनीतिक इरादे छिपे हो सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रशेखर आज़ाद आगामी पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले दलित–मुस्लिम गठबंधन को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यदि उनकी रणनीति सफल रहती है, तो मायावती, आकाश आनंद और अखिलेश यादव की राजनीतिक चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
मुलाक़ात का राजनीतिक मायना
यूपी में पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोरों पर हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि एक सांसद और एक बड़े इस्लामी नेता की यह मुलाक़ात महज औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक गठजोड़ की शुरुआत हो सकती है। चंद्रशेखर आज़ाद ने नगीना से सांसद के रूप में अपनी जीत भी इसी दलित–मुस्लिम समीकरण के दम पर दर्ज की थी। वे लगातार दलितों और मुसलमानों के मुद्दों को उठाते रहे हैं, और इस मुलाक़ात को उनकी चुनावी पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
आजम खान से भी हुई मुलाक़ात
हाल के दिनों में आज़ाद ने कांवड़ यात्रा और मुस्लिम समुदाय के नमाज़ की आज़ादी को लेकर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि जब कांवड़ यात्रा के लिए एक महीने तक सड़कें बंद हो सकती हैं, तो मुस्लिम समुदाय को मात्र 15 मिनट की नमाज़ की अनुमति क्यों नहीं?
इसके अलावा, उन्होंने सीतापुर जेल में बंद समाजवादी नेता आज़म खान से मुलाक़ात कर उनकी रिहाई की भी मांग की, जिससे उनकी राजनीतिक सक्रियता और छवि दोनों मजबूत हुई।
बसपा और सपा पर असर
चंद्रशेखर आज़ाद की इस चाल से बसपा सुप्रीमो मायावती और उनके भतीजे आकाश आनंद की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मायावती लंबे समय से बहुजन वोट के साथ मुस्लिम वोट बैंक को जोड़ने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन आज़ाद का यह नया गठजोड़ उनकी रणनीति को चुनौती दे सकता है। खासकर तब, जब बसपा का वोट शेयर कमजोर हो रहा है और आज़ाद की लोकप्रियता युवाओं और अल्पसंख्यक समुदायों में बढ़ रही है। अगर इस बार मुस्लिम वोट बैंक आज़ाद की ओर मुड़ गया, तो समाजवादी पार्टी को भी नुकसान हो सकता है।
2027 चुनाव की रणनीति और आगे का सफर
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मुलाक़ात महज शिष्टाचार थी या इसके पीछे किसी मजबूत सियासी गठबंधन की नींव रखी गई है? यदि आज़ाद की रणनीति कामयाब होती है, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में आजाद समाज पार्टी की पकड़ बेशक मजबूत हो सकती है। हालांकि यह भी देखना होगा कि क्या मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे प्रभावशाली धार्मिक नेता पूरी तरह आज़ाद के साथ खड़े होंगे, या यह मुलाक़ात केवल व्यक्तिगत सम्मान में ही सीमित रहेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में इस गठजोड़ की दिशा स्पष्ट होगी, जो यूपी की सियासत में नया ट्विस्ट ला सकती है।