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जीवन का आनंद लो

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रविवार की सुबह, एक अमीर आदमी अपनी बालकनी में धूप और कॉफी का आनंद ले रहा था तभी उसे एक छोटी चींटी नजर आई, जो कि अपने आकार से कई गुना बड़ा पत्ता लेकर बालकनी के एक तरफ से दूसरी तरफ जा रही थी।

आदमी उसे ध्यान से देखने लगा। वह देख रहा था कि चींटी को अपनी इस यात्रा के दौरान कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, कई बार झुकना पर रहा है, मुड़ना पड़ रहा है, लेकिन वह लगातार अपने गंतव्य की ओर बढ़ती चली जा रही थी।

तभी उसे एक जगह फर्श में दरार दिखी। वह थोड़ी देर रुकी, सोची-विचार करने लगी। और फिर उसने दरार के ऊपर वही बड़ा पत्ता डाल दिया, जिसे घसीटते हुए वह लिए जा रही थी। उस पत्ते के ऊपर चलकर उसने दरार पार की। फिर उसने पत्ते को दूसरी तरफ से उठाया और अपनी यात्रा दोबारा शुरू कर दी।

आदमी चींटी की चतुराई से मोहित हो उठा! इस घटना ने उसे विस्मय में डाल दिया और उसे सृष्टि के चमत्कार पर चिंतन करने के लिए मजबूर कर दिया।

उसने निर्माता की महानता को देखा। उसकी आंखों के सामने संसार का यह छोटा सा प्राणी था। एक ऐसा प्राणी जो कि आकार में तो छोटा किंतु फिर भी विश्लेषण करने में, चिंतन करने में, तर्क करने में, अवसर तलाशने में, राह खोजने में और बाधाएं दूर करने की मानसिक क्षमता से लैस था।

थोड़ी देर बाद उस आदमी ने देखा कि चींटी अपने गंतव्य तक पहुँच गयी है। वहां फर्श में एक छोटा सा छेद था, जो उसके भूमिगत आवास का प्रवेश द्वार था।

चींटी उस बड़े पत्ते को छोटे से छेद में ले जाना चाहती थी किंतु कैसे ले जा सकती थी? जिस पत्ते को वह इतनी कठिनाई और सावधानी से गंतव्य तक लाने में कामयाब रही थी उसे अब ज़मीन के भीतर नहीं ले जा पा रही थी। अंततः उसने पत्ते को वहीं छोड़ दिया और खाली हाथ अपने घर में चली गई।

उस नन्हे प्राणी ने इस श्रमसाध्य और चुनौतीपूर्ण यात्रा को शुरू करने से पहले अंत के बारे में नहीं सोचा था। अंत में वही बड़ा पत्ता उसके लिए एक बोझ से ज्यादा कुछ नहीं था। अब उस चींटी के पास अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए उसे पीछे छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

आदमी ने उस दिन एक महान सबक सीखा।

यही हमारे जीवन का भी सच है।

हम अपने परिवार की चिंता करते हैं। अपनी नौकरी की चिंता करते हैं। हम चिंता करते हैं कि अधिक पैसा कैसे कमाया जाए? हमें चिंता है कि हमें कहाँ रहना चाहिए? किस तरह का वाहन खरीदना है? किस तरह के कपड़े पहनने हैं? कौन से गैजेट अपग्रेड करने हैं? आदि आदि…

हम अपने जीवन की यात्रा में यह महसूस ही नहीं करते हैं कि ये सब केवल बोझ हैं, जिन्हें हम अत्यधिक सावधानी और खोने के डर से ढोये चले जा रहे हैं। हम अंत में केवल यही पाते हैं कि आखिरकार ये सब बेकार हैं। हम इन्हें अपने साथ नहीं ले जा सकते हैं और तब हम इन्हें छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं!

जीवन की यात्रा का आनंद लें।

कल की चिंता में आज की खुशियों को व्यर्थ न करें। जिसे घसीटे लिए जा रहे हैं वह सिर्फ बोझ ही है। सदैव प्रसन्न रहें। ओम शांति।

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पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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