जब एक मकान बदलने में तीन सप्ताह लग जाते हों,
तो चित्त बदलने में तीन महीने को बहुत ज्यादा तो नहीं कहिएगा न!
तीन महीने बहुत ज्यादा नहीं हैं। बहुत थोड़ी सी बात है।
तीन महीने सतत, इसका संकल्प लेकर जाएं कि तीन महीने सतत करेंगे।
नहीं लेकिन बड़ा मजा है!
कोई कहता है कि नहीं, आज थोड़ा जरूरी काम आ गया।
कोई कहता है, आज किसी मित्र को छोड़ने एयरपोर्ट जाना है। कोई कहता है, आज स्टेशन जाना है। कोई कहता है, आज मुकदमा आ गया।
लेकिन न तो आप खाना छोड़ते हैं, न आप नींद छोड़ते हैं, न आप अखबार पढ़ना छोड़ते हैं, न आप सिनेमा देखना छोड़ते हैं, न सिगरेट पीना छोड़ते हैं।
जब छोड़ना होता है तो सबसे पहले ध्यान छोड़ते हैं, तो बड़ी हैरानी होती है।
क्योंकि और भी चीजें छोड़ने की हैं आपके पास।
और भी चीजें छोड़ने की हैं, उनमें से कभी नहीं छोड़ते।
तो ऐसा लगता है कि जिंदगी में यह ध्यान और परमात्मा, हमारी जो फेहरिस्त है जिंदगी की, उसमें आखिरी आइटम है।
जब भी जरूरत पड़ती है, पहले इस बेकार को अलग कर देते हैं, बाकी सब को जारी रहने देते हैं।
नहीं; ध्यान केवल उन्हीं का सफल होगा, जिनकी जिंदगी की फेहरिस्त पर ध्यान नंबर एक बन जाता है।
अन्यथा सफल नहीं हो सकता है।
सब छोड़ दें, ध्यान मत छोड़ें।
एक दिन खाना न खाएं, चलेगा; थोड़ा लाभ ही होगा, नुकसान नहीं होगा।
क्योंकि चिकित्सक कहते हैं कि सप्ताह में एक दिन खाना न खाएं तो लाभ होगा।
एक दिन दो घंटे न सोएं तो बहुत फर्क नहीं पड़ेगा।
कब्र में सोने के लिए बहुत घंटे मिलने वाले हैं।
- ओशो,