अगर तुम्हारे मन में प्रेम होगा तो साथ ही साथ कदम मिलाती घृणा भी होगी।
जिस दिन घृणा विदा हो जाएगी, उसी दिन प्रेम भी विदा हो जाएगा।
जब तुम प्रेम से भरते हो, तुम घृणा को भूल जाते हो। जब तुम घृणा से भरते हो, तुम प्रेम को भूल जाते हो।
क्योंकि दोनों को एक साथ देखना तुम्हारी सामर्थ्य के बाहर है। जिस दिन दोनों को साथ देख लोगे, दोनों से मुक्त हो जाओगे।
इसे समझने की कोशिश करना।
जो मेरी निंदा करने का कष्ट उठाता है, उसके भीतर कहीं प्रशंसा छिपी है।
तुम अशांत होते हो तो शांत होने की आकांक्षा साथ—साथ बढ़ने लगी। जब तुम बहुत अशांत हो जाते हो तो तुम शांति की तलाश करते हो। शांति की तलाश अशांत लोग ही करते हैं।
पहले तुम कभी भयभीत न थे। शांत होते से ही तुम पाओगे, अशांति पास में खड़ी है।
जितने तुम शांत होने लगोगे, उतने ही तुम घबडाओगे कि यह अशांति तो करीब ही खड़ी है।
यह कहीं से भी द्वार—दरवाजे खोलकर भीतर आ सकती है। तुम उतने ही भयभीत, कंपित होने लगोगे। यह शांति भी कोई शांति हुई, जिसके पास अशांति खड़ी है!
इसलिए फिर एक और शांति है,
जहां शांति भी नहीं होती और अशांति भी नहीं होती।
उसको ही बुद्ध ने शून्य कहा है।
शून्य शब्द बड़ा प्यारा है, बड़ा बहुमूल्य है। इससे बहुमूल्य कोई दूसरा शब्द नहीं है। ब्रह्म भी इससे एक कदम पहले ही छूट जाता है।
शून्य का अर्थ है, द्वंद्व न बचा। प्रेम और घृणा ने एक—दूसरे को नकार दिया। शांति अशांति ने एक—दूसरे को नकार दिया।
दोनों की ऊर्जा टकरा गई और एक—दूसरे की ऊर्जा को काट गई। तुम बचे अकेले, जहा कोई द्वंद्व न रहा, निर्द्वंद्व दशा रही। उस निर्द्वंद्व दशा में सत्य का साक्षात्कार है……..😍
❣ ओशो ❣
🌹 एस धम्मो सनंतनो, भाग-4 🌹
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