अब शराब नीति घोटाले के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो के फंदे में फंसे आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इस मामले का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया है। जर्मनी हो या अमेरिका दोनों देशों में यदि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आपत्ति के स्वर उठ रहे हैं तो न्यायपालिका के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है कि न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी तरह की लापरवाही न हो, जिसके कारण हमारी न्यायपालिका के ऊपर भी अंगुली न उठे। हमारे न्यायाधीशों के प्रति देश की जनता का अटूट भरोसा है, इसलिए दूसरे देशों के लोगों की बातों का कोई मतलब नहीं है। जर्मनी और अमेरिका में न्यायिक प्रक्रिया का रिकार्ड और न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया भारत से अच्छी नहीं है फिर भी यदि किसी देश ने हमारी जांच एजेंसियों पर सवाल उठाया है तो अब हमारी न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी बनती है कि वह भारतीय लोकतंत्र की छवि को मिलने वाली चुनौती के आधार को ही अनावश्यक एवं अनुचित साबित करे।
रही बात न्याय की तो बिना परीक्षण के कोई भी खुद को उसी तरह निर्दोष घोषित कर सकता जिस तरह से अदालत में अपराध सिद्ध होने के बाद उसे दोषी कहा जाता है। केजरीवाल अकेले नहीं हैं जो संविधान की शपथ लेने के बाद भ्रष्टाचार में फंसे हैं। जितने भी राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में फंसते हैं उनके बचाव की भाषा-शैली एक जैसी ही होती है। वे अपने को साफ सुथरा और निर्दोष बताते हैं। इसलिए सच का निर्धारण तो न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही होगा।