कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी पार्टी को नसीहत देते हुए बुधवार को कहा था कि जितना बजट हो उतनी ही स्कीमों का वादा करना चाहिए। खड़गे की इस नसीहत के सार्वजनिक होते ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस नेताओं से शुक्रवार को माफी की मांग कर दी। भाजपा का व्यंग्य कसना स्वाभाविक भी था, लेकिन सवाल यह है कि क्या मुफ्त की योजनाओं का वादा केवल कांग्रेस पार्टी ने ही चुनाव में किया था? उत्तर स्पष्ट है ‘नहीं’।
आजकल तो सभी पार्टियां चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की गारंटी देती हैं। भाजपा की राज्य इकाइयां भी धड़ल्ले से मुफ्त स्कीमों की गारंटियां देती हैं क्योंकि उन्हें भी लगता है कि इस तरह की मुफ्त योजनाओं से मतदाताओं को आकर्षित किया जा सकता है।
दरअसल हुआ यह कि कर्नाटक सरकार ने चुनाव जीतने के लिए जिन पांच गारंटियों की घोषणा की थी, उनकी फिर से समीक्षा करने का फैसला लिया। यही बात उपमुख्यमंत्री डीके शिव कुमार ने बोल दी। उनकी इसी बात से खड़गे भड़क गए और उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के सामने ही डीके शिव कुमार को खरी-खरी सुना दी। खड़गे का यह कहना कि ‘‘आप अखबार नहीं पढ़ते, मैं तो पढ़ता हूं। कितनी आलोचना हो रही है।’’ यह सही है कि वादे तो बड़े-बड़े कर दिए गए, किन्तु न तो कर्नाटक सरकार ने पूरा किया और न ही हिमाचल सरकार ने। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि पाटा की फजीहत होती है। खड़गे की इस स्पष्टवादिता पर उनकी तारीफ की जानी चाहिए। उन्होंने सियासत का वह दौर भी देखा है, जब राजनेता अपने सिद्धांतों के लिए चुनाव लड़ते थे। उनके लिए हार-जीत का महत्व नहीं होता था। कईं बार कर्नाटक विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य तो रहे ही साथ ही केंद्र और राज्य के सरकारों में मंत्री रह चुके खड़गे को पता है कि शार्ट कट से चुनाव तो जीता जा सकता है किन्तु विश्वसनीयता कायम रख पाना मुश्किल हो जाता है। उन्हें यह भी पता है कि यदि एक बार राजनीति में विश्वसनीयता का संकट पैदा हो जाए तो राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत मुश्किल हो जाती है।
असल में मुफ्त की स्कीमों की प्रथा तमिलनाडु से शुरू हुईं। वहां की दोनों बड़ी पार्टियों ने लुभावनी योजनाओं की घोषणा शुरू की। वही प्रचलन उत्तर भारत में भी आ गया। उत्तर प्रदेश में लैपटॉप व स्मार्ट फोन बांटने का वादा शुरू किया गया तो दिल्ली में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और मुफ्त में बस यात्रा का ऐसा राजनीतिक युग शुरू हुआ कि हर पार्टी इस तरह के वादे के लिए मजबूर हो गईं। वेंद्र सरकार सभी को 2020 से अनाज बांट रही है।
बहरहाल खड़गे ने जो कुछ भी कहा वह मात्र कांग्रेस के लिए ही नहीं है, बल्कि उनकी टिप्पणी को चेतावनी मानते हुए सभी राजनीतिक पार्टियों को मुफ्त स्कीमों के लिए एक लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए। कर्ज लेकर मुफ्त की स्कीमें चलाना तो ‘मियां की जूती मियां के सिर’ वाली बात है।
यदि राज्य सरकार मुफ्त स्कीमें चलाएंगी और इसके लिए कर्ज लेंगी तो उन्हें अतिरिक्त टैक्स दूसरे क्षेत्रों में लगाना पड़ेगा। वह संग्रह आम जनता से वसूल होगा।
चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, राज्य की अर्थव्यवस्था चौपट करके मुफ्त की योजनाओं को चलाने की नीति हर हाल में बंद होना ही चाहिए ।