पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर उग्र आंदोलनों का उनका दांव ही उल्टा पड़ रहा है। बंगाल में कम्युनिष्टों को धरना, हड़ताल और प्रदर्शन जैसे उग्र आंदोलन के हथियारों से सत्ता पर राज करने वाली ममता आज आंदोलन के इन्हीं प्रयोगों से घबराकर उलटे सीधे बयान देने पर म़जबूर हो गईं हैं।
ममता ने कहा है बंगाल में आग लगाईं तो वे असम, यूपी और बिहार सहित दिल्ली में आग लगा देंगी। कोलकाता के एक ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या का यह प्रकरण उनके गले की हड्डी बन गया है। आंदोलनों की उपज ममता को उनके हथियारों से ही भाजपा परास्त करने में जुटी है। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक बंगाल के राज्यपाल ने प्रदेश में कानून व्यवस्था भंग होने के साथ संवैधानिक प्रावधानों के ध्वस्त होने की रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी है। मोदी सरकार इस पर गहनता से मंथन कर रही है। जानकारी के अनुसार बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने पर केन्द्र सरकार और भाजपा संगठन में एक राय नहीं है। मोदी सरकार सीबीआई की रिपोर्ट का इंत़जार कर रही है जिसके अध्ययन के बाद ही राष्ट्रपति शासन का कोई फैसला लेगी। इससे पूर्व जगदीप धनखड़ ने भी राज्यपाल के अपने कार्यकाल के दौरान बंगाल में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी, मगर मोदी सरकार चाहते हुए भी इस पर कोई उचित निर्णय नहीं ले पायी। देश की राष्ट्रपति बंगाल सहित विभिन्न स्थानों पर रेप की वारदातों पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त कर चुकी हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि इंडी गठबंधन ने बंगाल प्रकरण से अपने हाथ झाड़ लिए हैं । कांग्रेस के दिल्ली में बैठे नेता ममता के समर्थन में बयान दे रहे हैं, वहीं अधीर रंजन चौधरी ममता के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा बुलंद करने वाली प्रियंका गाँधी की चुप्पी हैरान करने वाली है। राहुल गाँधी मार्शल आर्ट का वीडियो जारी कर रहे हैं, मगर कोलकाता प्रकरण पर कुछ नहीं बोल रहे हैं । यदि ऐसी वारदात भाजपा शासित किसी प्रदेश में होती तो राहुल, प्रियंका सहित वहां पहुंचने में देर नहीं करते। पीडित के परिवार के साथ अपनी फोटो खिचवाने में लग जाते। कम्युनिष्टों की स्थिति सांप छंछूदर सी हो रही है। भाजपा के अंध विरोध ने उनका रास्ता रोक रखा है जबकि ममता ने आंदोलन के पीछे राम और वाम को जिम्मेदार बताया था। बहरहाल इस आंदोलन का क्या हश्र होगा, यह भविष्य के गर्त में छिपा है। प. बंगाल में 34 साल तक एक छत्र शासन करने वाले कम्युनिष्टों को सत्ताच्युत कर ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी तृणमूल का झंडा फहराया। ममता की टीएमसी 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है। इससे पूर्व 1977 से 2011 तक पहले दिग्गज नेता ज्योति बासु और फिर बुद्धदेब भट्टाचार्य ने राज सत्ता की कमान संभाली थी।
2011 के चुनाव में ममता ने कम्युनिष्टों का शासन ऐसा उखाड़ा कि आज उनका नाम लेवा भी वहां नहीं बचा है। देश की सियासत में दीदी के नाम से मशहूर हुईं ममता बनर्जी सत्ता के नशे में चूर होकर अवाम के साथ इतनी निर्ममता से पेश आएंगी और अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपराधियों के पक्ष में खड़ी नजर आएंगी, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।