उसके लिए जरूरी है कि उसमें पाप रूपी पत्थर नहीं होने चाहिए। विचार सदा सात्विक बने रहे, क्योंकि सात्विक विचारों से ही आत्मा शुद्ध रहती है। विचार हमारी जीवन गाड़ी का इंजन होते हैं। हमारी बुद्धि ऐसी हो कि हमें भले-बुरे कर्म करने की पहचान हो। हममें ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा हो।
प्रकृत्ति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसका प्रत्येक कार्य निर्धारित समय पर होता है। पेड़-पौधे समय से फूलते-फलते हैं, हम भी समय पर अपना कार्य करते रहे। आलस्य को अपने जीवन में स्थान न दें। जो परमात्मा की मंगलमय कृपा का आश्रय लेता है उसे परमात्मा की कृपा परम सुख की अनुभूति कराती है।
जन्म से मृत्युपरान्त तक मनुष्य के कर्मों का क्रम बना रहता है। इसलिए राग, द्वेष, ईष्र्या तथा अनावश्यक इच्छाओं की पूर्ति के जो उद्वेग उठते हैं, उनसे दूर रहते हुए अपना बहुमूल्य समय अपने मन मंदिर में बैठे देवता का ध्यान करते हुए शुभ कर्मों में समय व्यतीत करना चाहिए, यही इस मानव रूप में मिले जीवन का सदुपयोग है और यही इस जीवन की सफलता है।