बनारस में मोदी को शिकस्त देने के लिए मायावती ने निकाला तुरुप का इक्का

वाराणसी। बहुजन समाज पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 को अपने बलबूते पर लड़ने का फैसला किया तो लोगों ने यह सोचा था कि मायावती बाद में या तो गठबंधन से मिलेगी या फिर भारतीय जनता पार्टी से….
लेकिन सियासी पंडितों का यह आकलन अंततः धराशाई होता हुआ प्रतीत हो रहा है… मायावती की सूची समझी चाल और गुपचुप तरीके से सियासी समीकरण को साधने की जद्दोजहद ने सत्ता पक्ष की नींद उड़ा दी है।

बसपा ने वाराणसी और गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी। वाराणसी में उसने अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी बनाया है और गाजीपुर से डॉ. उमेश सिंह हाथी के चुनाव चिह्न पर मैदान में होंगे।

लारी के नाम से प्रसिद्ध अतहर जमाल रविवार को ही सपा छोड़कर बसपा में शामिल हुए और कुछ घंटे बाद उन्हें वाराणसी से प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। राजनीतिक दलों का लंबा अनुभव रखने वाले लारी की शहर में और विशेष रूप से अल्पसंख्यक वर्ग में अच्छी पहचान है।

बहुजन समाज पार्टी के इस प्लान से भारतीय जनता पार्टी की नीति उड़ गई होगी। जहां एक और हिंदू मुस्लिम कार्ड खेलने की वजह से भारतीय जनता पार्टी अपने टॉप फॉर्म में चल रही है तो वहीं पर चार बार की मुख्यमंत्री रही बहन मायावती अपने अनुभवों की वजह से चुपचाप राजनीतिक घेरे बंदी करने में लगी है।

आपको बता दें की अतहर जमाल लारी, वाराणसी लोकसभा सीट से दो बार पहले भी प्रत्याशी रह चुके हैं। वाराणसी कैंट विस क्षेत्र से दो बार और शहर दक्षिणी विस क्षेत्र से एक बार भाग्य आजमा चुके हैं। वह जनता दल के पूर्व प्रदेश महासचिव, अपना दल के राष्ट्रीय प्रभारी और कौमी एकता दल के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं।

सैदपुर ब्लाक के मुड़ियार गांव निवासी डा. उमेश सिंह वर्ष 1991-92 में बीएचयू छात्रसंघ का चुनाव जीतकर महामंत्री बने थे। डॉ. उमेश अविवाहित हैं और छात्र युवा संघर्ष मोर्चा बनाकर पटना से दिल्ली तक छात्रहित में आवाज उठाते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में वकील के रूप में कार्य करते हुए अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो संस्थापक सदस्यों में रहे। उनका कहना है कि वैचारिक मतभेद के चलते आप से दूरी बनाई और बसपा का दामन थामा।

कुल मिलाकर बहुजन समाज पार्टी मिशन 2024 को बेहद संजीदा तरीके से फतह करने में लगी हुई है और अपने पुराने कार्यकर्ताओं में जोश वह उत्साह भरने के साथ-साथ आने वाले चुनाव में अधिक से अधिक मतदान करने की पहल पर काम कर रही है। देखना यह है कि नतीजे आने के साथ बहुजन समाज पार्टी के मुखिया मायावती का अनुभव कितना सटीक व सत्य प्रतीत होगा?