प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र की रैली में दो टूक कहा कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को दुनिया की कोई ताकत बहाल नहीं कर सकती। वैसे तो प्रधानमंत्री के अभिव्यक्ति की एक विशेष शैली है, जिसमें दृढ़ता भाव स्पष्ट रूप से पाया जाता है इसलिए अनुच्छेद 370 के बारे में उनके संकल्प को स्वाभाविक ही माना जाना चाहिए।
संयोग देखिए कि पाकिस्तान के बुद्धिजीवी जिसमें शिक्षाविद् न्यायविद् और पत्रकार सार्वजनिक रूप से अपनी सरकार को नसीहत देते हैं कि वह भारत के हिस्से वाले जम्मू कश्मीर को भूल जाएं अन्यथा जो पाकिस्तान के हिस्से वाला जम्मू-कश्मीर और लद्दाख है, वह भी हाथ से निकल जाएगा।
पाकिस्तान की आम जनता को नोन, तेल, लकड़ी की चिंता सता रही है वही 40 प्रतिशत के मुद्रास्फीति दर और -0 प्रतिशत विकास दर को देखकर पाकिस्तान मौजूदा हालात को भयावह बता रहा है। पाक जनता भयभीत हो भी क्यों नहीं। 2022 में 4.77 की विकास दर, 2023 में – 0.00 प्रतिशत हो गई, जबकि 2021 में 1.75 की गिरावट आई थी। उसे जम्मू-कश्मीर के विकास की कहानी सुनने और सुनाने में आनंद आता है।
आजकल तो दुनिया बहुत सिमट गई है। न्यू मीडिया यानि इंटरनेट मीडिया पर पाकिस्तान की नईं पीढ़ी के लोग जब अपनी सरकार से पूछते हैं कि अपनी अकर्मण्यता यानि निकम्मेपन को छिपाने के लिए वे हमेशा कश्मीर का चूर्ण बांटते हैं। यही नहीं अब तो अपनी सेना को भी भारत से संबंध खराब करने के लिए बहाने के रूप में कश्मीर को मुद्दा बताने लगे हैं। सही में जब हम पाकिस्तान में जम्मू-कश्मीर के प्रति बदलते माहौल को देखते हैं तो बहुत अच्छा महसूस होता है। हमें लगता है कि चलो देर आए दुरस्त आए। यदि आज पाकिस्तान की जनता अपनी सरकार और सेना की धूर्तता का एहसास कर रही है तो देर सबेर वहां की सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान भी हकीकत को स्वीकार कर ही लेगा।
बदकिस्मती तो यह है कि जो लोग भारत में रहकर जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के समाप्त होने पर विधवा विलाप कर रहे हैं और जनता को उसकी वापसी का झांसा देते हैं तो उनके ऊपर तरस आने के अलावा हो भी क्या सकता है! जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में वहां की क्षेत्रीय पार्टियां नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने तो इस अनुच्छेद के बहाली संबंधी प्रस्ताव के समर्थन में लाए गए प्रस्ताव का समर्थन किया है। कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय चरित्र की पार्टी भी अनुच्छेद 370 की वापसी का संकल्प लेने में पीछे नहीं रही। सच तो यह है कि दोनों सदनों से जितनी प्रक्रिया के बाद इस अनुच्छेद को हटाया गया उतनी ही प्रक्रिया का पालन करके इसे फिर वापस किया जा सकता है कितु लगता नहीं कि अब संसद से इसे वापस लाया जा सकेगा। इसका मुख्य कारण है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की आंखों पर वहां की राजनीतिक पार्टियां अनुच्छेद 370 की पट्टी बांधकर उन्हें झूठे विमर्श में फंसाए थीं । किन्तु अब पांच वर्षो में उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि इस विवादित अनुच्छेद के विसर्जन से विकास ने निर्बाध गति पकड़ी है, वह संभव नहीं थी। यह पहली बार हुआ है कि विधानसभा में अनुच्छेद 370 का समर्थन करने वालों के खिलाफ राज्य की जनता ने खुलकर विरोध प्रदर्शन किया।
बहरहाल जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को भूलकर वास्तविकता के धरातल पर जनकल्याण हेतु विकास की नई इबारत लिखे जाने की जरूरत है। इस अनुच्छेद के मरे सांप को गले में लटकाने से जनता को किसी तरह का कोई फायदा नहीं है। इसीलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि अनुच्छेद 370 के लिए कश्मीरियों को फुसलाना भी मुश्किल हो जाएगा।