- बिहार में कमाल की राजनीति हो रही है, घमासान जारी है
- राजद के साथ साथ जदयू और नीतीश हैं विपक्ष के निशाने पर
- पिछड़ी जातियों का बड़ा वोट बैंक है नीतीश के पास
बिहार में कमाल की राजनीति हो रही है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, पार्टियों की राजनीति साफ होती जा रही है। एक तरफ जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर हैं, जिनका सारा हमला राजद के साथ साथ जदयू और नीतीश कुमार पर है। वे भाजपा को निशाना नहीं बना रहे हैं। तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव की पार्टी राजद ने अब एक रणनीति के तहत नीतीश कुमार को निशाना बनाना बंद कर दिया है। नीतीश पर हमला हो भी रहा है तो सरकार के कामकाज को लेकर, खास कर कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। नीतीश के ऊपर निजी हमले बंद हो गए हैं। पार्टी के सभी नेताओं से कह दिया गया है कि वे भाजपा और केंद्र सरकार पर हमला करें या सरकार पर सवाल उठाएं।
इसका कारण यह नहीं है कि राजद को उम्मीद है कि नीतीश उसके साथ आ जाएंगे। इसका कारण यह है कि नीतीश पर निजी हमले से राजद को नुकसान की संभावना दिख रही है। पार्टी को ऐसी फीडबैक मिली है कि जमीनी स्तर पर लोगों के मन में नीतीश के प्रति गुस्सा नहीं है, बल्कि उनकी उम्र और सेहत को लेकर सहानुभूति है। इसलिए अगर उनके ऊपर ज्यादा हमला हुआ तो गैर यादव पिछड़ी जातियों और अति पिछड़ी जातियों का वोट ज्यादा ताकत के साथ उनसे जुड़ सकता है। महिलाओं का वोट भी अभी नीतीश कुमार से छिटका नहीं है। जानकार सूत्रों का कहना है कि राजद की रणनीति अब बदली हुई है। उसको लग रहा है कि अगर चुप रहे या नीतीश के प्रति सद्भाव दिखाएं तो उनके उत्तराधिकारी के रूप में पिछड़ी जातियां तेजस्वी को चुन सकती हैं।
सियासी पंडितों की माने तो नीतीश कुमार अब भी अति पिछड़ी जातियों के बड़े वोट बैंक के नेता हैं। बिहार की 36% से अधिक आबादी इसी वोट बैंक से है। महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार को निशाना बनाने से इंडिया ब्लॉक को कोई खास फायदा नहीं होगा। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार की सेहत भी एक वजह हो सकती है।
वैसे भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीति के स्वाभाविक उत्तराधिकारी तेजस्वी ही माने जा रहे हैं। बहरहाल, पिछले दिनों पटना में ‘इंडिया’ ब्लॉक, जिसे बिहार में महागठबंधन कहा जाता है उसके नेताओं की एक बैठक हुई। कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अलवरू भी इसमें शामिल हुए। इस बैठक में महागठबंधन की चुनावी रणनीति को लेकर चर्चा हुई।
2020 के चुनाव में इसका असर देखने को मिला था। ऐसे में तेजस्वी यादव का नरम रुख कुछ नई उम्मीदें जगाता है। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि अंदरखाने बड़े खेल की तैयारी भी हो रही है। शायद तेजस्वी यादव को अब भी उम्मीद है कि नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। खैर इसकी संभावना फिलहाल तो नजर नहीं आ रही। शायद चुनाव के बाद कुछ हो तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन तेजस्वी के नए रुख से कयासों का बाजार गर्म है।