दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले इस मुल्क में मौजूदा वक्त में आधी आबादी हर क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने में कामयाब हुई है और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि उसने हर क्षेत्र में शिखर तक पहुंचकर परचम लहराया है। चाहे खेल हो या सांस्कृतिक क्षेत्र, समाजसेवा हो या पॉलिटिक्स, अभिनय हो या संगीत हर जगह आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं।
इसके बावजूद यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि 140 करोड़ की आबादी वाले इस मुल्क में 21वीं सदी में भी महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने के लिए पुरुषों से टकराव मोल लेना पड़ता है। भले ही इस मुल्क में ‘यत्र नारी पूजयंते, तत्र बसते देवता’ की संस्कृति का बखान किया जाए, परन्तु जब वास्तविकता सामने होती है तो पुरुष प्रधान इस मुल्क में आधी आबादी के करेक्टर पर सबसे पहले सवाल उठाया जाता है।
यही वजह है कि बॉलीवुड से जब कोई सिने तारिका अभिनय की डगर छोड़कर पॉलिटिक्स या किसी अन्य क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने की कोशिश करती है तो उस पर तमाम सवाल उछाले जाते हैं। भले ही बालीवुड की फिल्मों में अभिनय करके उसने कामयाबी हासिल की हो।
महिलाओं के लिए पॉलिटिक्स की राहें हमेशा से ही कठिन रही हैं। उनके लिए ये तभी आसान होता है, जब वो किसी ताकतवर या राजनीतिक परिवार से होती हैं, लेकिन अगर आप ऐसी नहीं हैं और पॉलिटिक्स में आने की चाहत रखती हैं तो भले ही कितनी बड़ी अभिनेत्री ही क्यों ना हों, आपका चरित्र हनन होना तय है।
हेमा मालिनी को लेकर रणदीप सुरजेवाला का बयान और कंगना राणौत को लेकर सुप्रिया श्रीनेत का मंडी में क्या भाव चल रहा है वाला बयान ये साबित करता है कि पुरुष प्रधान समाज में केवल जयललिता जैसी हीरोइन से बनी नेता ही अपनी जगह बना सकती है।
बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद जब पार्टी ने उनकी पत्नी वीएन जानकी को तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बना दिया, तब जयललिता ने उम्मीद नहीं छोड़ी और ऐसी पहली सिने तारिका बनीं जो मुख्यमंत्री पद तक पहुंची। वीएन जानकी को ये गद्दी विरासत में मिली थी, जिसे उनके पति की शिष्या जयललिता ने कुबूल नहीं किया।
आपसी विवाद का शिकार होकर एमजी की अन्ना द्रमुक पार्टी 3 भागों में बंट गई। सबसे बड़ा हिस्सा जानकी के ही पास था। काफी हंगामे के बीच विश्वासमत पारित हुआ, लेकिन मौका देखकर राजीव गांधी सरकार ने 23 दिन के अंदर जानकी की सरकार को अनुच्छेद 356 लगाकर गिरा दिया और अगले विधानसभा चुनाव में जयललिता नेता विपक्ष और 1991 में सीएम बन गईं।
जयललिता की भी राह आसान नहीं रही और शायद विरोधी नेताओं का उनके प्रति तिरस्कार पूर्ण रवैया ही था जो उनके निरंकुश होने की वजह बना। 1989 में विधानसभा में उनके साथ मायावती जैसा गेस्ट हाउस कांड हुआ। फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता बाहर निकलीं, लेकिन जनता ने उनके प्रति सहानूभूति दिखाते हुए उन्हें राज्य की 39 में से 38 लोकसभा सीटें उसी साल आम चुनाव में दे दीं।
जयललिता ने साउथ की बाकी अभिनेत्रियों को भी पॉलिटिक्स में आने के लिए प्रेरित किया। हालांकि इंदिरा गांधी के रहने तक अधिकतर कांग्रेस से जुड़ने से परहेज ही करती थीं। इंदिरा की मौत के बाद हिंदी फिल्मों की कामयाब अभिनेत्री रहीं वैजयंती माला ने 1984 के चुनावों से पॉलिटिक्स में प्रवेश किया। कांग्रेस के टिकट पर वैजयंती माला साउथ चेन्नई की सीट से 48,000 वोटों से जीतीं, लेकिन इंदिरा लहर में उनकी जीत को गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि अगली बार तमिलनाडु के कानून मंत्री को हराकर उन्होंने वो सीट फिर जीत ली, लेकिन उनकी पार्टी के लोग ही उनको लड़ते हुए देखना नहीं चाहते थे, सो उनको राज्यसभा भेजकर उनसे मुक्ति का रास्ता ढूंढा गया। राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होते होते उन्हें पार्टी के लोगों से निराशा हो गई। उन्होंने सोनिया गांधी को एक इमोशनल लेटर लिखा। पार्टी के लोगों के बारे में लिखा और 1999 में भाजपा में शामिल हो गईं।
जयाप्रदा को 1994 में एनटी रामाराव पॉलिटिक्स में लाए। वो तेलुगू देशम पार्टी के लिए प्रचार करती रहीं, लेकिन उस साल चुनाव लड़ने से मना कर दिया। बाद में चंद्रबाबू नायडू ने विद्रोह किया तो उनके साथ चलीं गई। नायडू ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया, लेकिन जयाप्रदा पार्टी के लोगों के लगातार निशाने पर रहीं। उनको टीडीपी से विरक्ति हो गई। राजनेताओं से बेहतर रिश्ते रखने वाले कारोबारी अमर सिंह से मुलाकात के बाद वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं। रामपुर लोकसभा सीट से 2004 में भारी मतों से जीतने के बाद आजम खान से उनकी बिगड़ गई। आजम खान पर उन्होंने आरोप लगाया कि वो उनकी फेक न्यूड तस्वीरें बंटवा रहे हैं। बावजूद इसके वो जीत गईं, लेकिन बाद में उन्हें अमर सिंह के साथ पार्टी से निकाल दिया गया। आजम खान ने जयाप्रदा पर जो ‘चड्ढीवाला’ कमेंट किया था, वो उस वक्त राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन गया था।
रामायण सीरियल की सीता दीपिका चिखलिया भी भाजपा के टिकट पर 1991 में बड़ौदा से सांसद बनी थीं, लेकिन उनको दूसरे तरह के विरोध का सामना करना पड़ता था। उनकी सीता वाली छवि से इतर जब भी कुछ होता था, उन्हें ट्रोल किया जाता था। जैसे स्कूल के दिनों की एक फोटो, जिसमें उनके हाथ में एक ग्लास था, आतंकी अफजल गुरू की पत्नी का रोल करना आदि। सांसद रहते ही बेटी हुई तो उन्होंने परिवार के लिए पॉलिटिक्स को अलविदा कह दिया। महाभारत की द्रौपदी रूपा गांगुली ने जरूर बंगाल में भाजपा के बैनर तले जोरदार पारी खेली, लेकिन नारी सुरक्षा पर उनके एक बयान ने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को ढेरों गंदे बयान देने का मौका दे दिया। रूपा ने कहा था कि “टीएमसी के नेताओं की पत्नियों और बेटियों को बंगाल भेजो, बिना रेप के 15 दिन तक रह पाएं तो मुझे कहना”। फिर तो हर टीएमसी नेता उनसे पूछने लगा था कि आपका कितनी बार रेप हुआ है? कई एफआईआर हुईं। सो रूपा वहां काफी विवादों में रहीं।
बंगाल में कई सिने तारिकाओं ने पॉलिटिक्स की राह पकड़ी, हालांकि ममता का उन्हें आगे बढ़ाना टीएमसी नेताओं को ही रास नहीं आया। संध्या रॉय, शताब्दी रॉय जैसी अभिनेत्रियां सांसद रही हैं और सत्तारूढ टीएमसी का होने के चलते उस तरह के बयानों का निशाना होने से बचती रही, लेकिन अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरोध के चलते नई नई सांसद बनीं मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और पार्टी ने भी उनके अलग होने में ही भलाई समझी। हालांकि, बंगाल से ही लॉकेट चटर्जी जैसी सिने तारिका ने अपने करियर को तिलांजलि देने के बजाय भाजपा का दामन थामना बेहतर समझा।
रूपा गांगुली के बाद उनके हाथों में महिला भाजपा की कमान दी गई है। इन्हीं चुनावों में लॉकेट पर एक टीएमसी नेता ने ‘दो नंबरी माल’ कहकर भद्दा कमेंट किया है, जिससे बार बार उसी पुरुषवादी मानसिकता का खुलासा होता है, जो महिला से मुकाबले में हारता देख उसके करेक्टर पर उंगली उठाना शुरू कर देता है। राहुल गांधी ने भी हाल के दिनों में ऐश्वर्या राय को लेकर नाचने वाली जैसे कमेंट किए तो सुप्रिया श्रीनेत्र ने कंगना से मंडी का रेट पूछा डाला। बाद में लगा कि भारी गलती हो गई तो किसी दूसरे के सिर डाल दिया। जब उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं थीं, तो खुद कंगना ने उन्हें सॉफ्ट पोर्न एक्ट्रेस बोल दिया था। ऐसे में कई बार महिलाएं ही महिलाओं को निशाना बनाती रही हैं।
हालांकि रेखा, लता जैसी राज्यसभा सदस्य बिना किसी का निशाना बने चुपचाप अपनी पारी पूरी कर गईं, वहीं जया बच्चन और नफीसा अली जैसी सिने तारिकाएं अपने को कुछ खास मुद्दों तक सीमित रखकर पॉलिटिक्स की पारी खेलती रहीं।
पार्टी के जब अपने ही नेता सिने तारिकाओं के विरोध में आ जाएं तो काफी मुश्किल हो जाती है। साउथ की अभिनेत्री रम्या यानी दिव्या स्पंदना का कांग्रेस में कद काफी बढ़ा। वह सोशल मीडिया की हेड तक बना दी गईं। राहुल गांधी के बेहद करीबी होने के चलते उन्हें मीडिया में काफी तरजीह मिली, लेकिन जिस तरह अचानक पॉलिटिक्स से ही उनकी विदाई कर दी गई, उस पर लोग अभी तक हैरानी जताते हैं।
वहीं नगमा का सालों तक अलग अलग रैलियों, चुनावों में इस्तेमाल के बाद जिस तरह एक मंच पर बदसलूकी का वीडियो सामने आया उससे लगा कि विरोधी पार्टियों के लोग ही नहीं पार्टी के अंदर के लोग भी अभिनेत्रियों को पॉलिटिक्स में पसंद नहीं करते।।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि पॉलिटिक्स में जयललिता जैसा मुकाम किसी अभिनेत्री को नहीं मिल पाया। ऐसे में फिलहाल केवल स्मृति ईरानी ही हैं, जिन्होंने राहुल गांधी जैसे कद्दावर नेता को मात देकर पार्टी में अपनी जगह स्थापित कर ली है। उनके ऊपर भी विऱोधियों ने तमाम हमले बोले, सहेली का घर तोड़ने वाला से लेकर उनके रिश्तों की रियूमर उड़ाकर, लेकिन फिर लोगों को समझ आ गया कि वो इतनी कमजोर मिट्टी की नहीं बनी हैं।