स्त्री और पुरुष के संबंध में भारतीय मन में एक ही धारणा रही है कि एक ही संबंध हो सकता है वह है कामवासना का। स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री भी हो सकती है मित्रता भी हो सकती है यह भारतीय परंपरा का अंग नहीं रही। भारतीय परंपरा ने कभी साहस नहीं किया कि स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री की धारणा को जन्म दे सके।
यौन तो स्त्री-पुरुष के बीच एक संबंध है। यही सब कुछ नहीं है। मैत्री भी हो सकती है। और मैत्री होनी चाहिए। एक सुंदर सुसंस्कृत व्यक्तित्व में इतनी क्षमता तो होनी चाहिए कि वह किसी स्त्री के साथ भी मैत्री बना सके किसी पुरुष के साथ मैत्री बना सके। मैत्री का अर्थ है कि कोई शारीरिक लेन-देन का सवाल नहीं है एक आत्मिक नाता है।
लेकिन पश्चिम में यह घटना घटती है। एक पुरुष और एक स्त्री के बीच इस तरह की दोस्ती हो सकती है जैसे दो पुरुषों के बीच होती है या दो स्त्रियों के बीच होती है। मैत्री का आधार बौद्धिक हो सकता है। दोनों के बीच एक बौद्धिक तालमेल हो सकता है। दोनों के बीच रुचियों का एक सम्मिलन हो सकता है।
दोनों में संगीत के प्रति लगाव हो सकता है। दोनों में शास्त्रीय संगीत में अभिरुचि हो सकती हैं। यह जरूरी नहीं है कि जिस स्त्री के शरीर से तुम्हारा संबंध है उससे तुम्हारा बौद्धिक मेल भी खाए। यह जरूरी नहीं है कि जिस स्त्री के शरीर में तुम्हें रुचि है उसमें और तुम्हारे बीच संगीत के संबंध में भी समानता हो। हो सकता है उसे संगीत में बिलकुल रस न हो । हो सकता है तुम्हें संगीत में बिलकुल रस न हो उसे रस हो। हो सकता है उसे नृत्य में अभिरुचि हो और तुम्हें दर्शनशास्त्र में। तो ठीक है कि वह अपनी मैत्री बनाएगी उन लोगों के साथ जिनको नृत्य में रुचि है और तुम उनके साथ मैत्री बनाओगे जिन्हें दर्शन में रुचि है।
पश्चिम में शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध नहीं है। यह श्रेष्ठकर बात है ध्यान रखना। शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध अगर है तो इसका अर्थ हुआ कि फिर आदमी के भीतर मन नहीं आत्मा नहीं परमात्मा नहीं कुछ भी नहीं सिर्फ शरीर ही शरीर है। अगर आदमी के भीतर शरीर के ऊपर मन है और मन के ऊपर आत्मा है और आत्मा के ऊपर परमात्मा हैं शरीर के तल पर किसी और से संबंध हो सकते हैं।
क्योंकि यह हो सकता है एक स्त्री के चेहरे में तुम्हें रस न हो उसका चेहरा तुम्हें न भाए उसकी देह तुम्हें न भाए लेकिन उसकी मन की गरिमा तुम्हें मोहित करे। और यह भी हो सकता है एक स्त्री की देह तुम्हें आकृष्ट करे चुंबक की तरह खींचे मगर उसके मन में तुम्हें कोई रुचि न हो कोई रस न हो। फिर क्या करोगे? भारत में तो एक ही उपाय है कि एक चीज से राजी हो जाओ दूसरे की चिंता छोड़ दो। इससे तो नुकसान होनेवाला है। इससे तुम्हारी एक दशा अवरुद्ध रह जाएगी।