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What is Holi and why is it celebrated? What is the real story of Holi?

होली का इतिहास

What is Holi and why is it celebrated || What is the real story of Holi || होली रंगों का त्योहार है, इसे मनाने के लिए पूरे देश में एक अलग उत्सुकता देखी जाती है, होली के पर्व पर हम एक दूसरे से गले मिलते हैं, रंग लगाते हैं और उनके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं। होली का त्यौहार मनाने के पीछे कई तरह की कथाएं हैं जिनमें से प्रमुख कथा हिरण्याकश्यप और होलिका से जुड़ी हुई है। 

होली की कहानी में सबसे प्रचलित कथा के अनुसार भारत में रहने वाले एक राजा थे जिनका नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए किसी भी स्तर तक जाने की क्षमता रखता था और इसी कारण सेवा कई वर्षों तक तपस्या करता रहा।  उसे वरदान मिला कर उसे कोई ना तो दिन में मार सकता है और ना ही रात में, ना तो वह जमीन पर मरेगा और ना ही आसमान पर।

इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप बेकाबू हो गया, वह यह सोचने लगा कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो वह खुद को भगवान समझ में लगा था और अपने साम्राज्य में लोगों से खुद की पूजा करने का हुक्म दे डाला। हिरण्यकश्यप का एक बेटा था जिसका नाम पहला था वह भगवान को मानता था और अपने पिता के खुद को भगवान मानने के आदेश की अवहेलना करता था।

प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था और वह हमेशा भगवान विष्णु की उपासना में लीन रहता था, उसके पिता हिरण्यकश्यप उससे नाराज रहते थे और अंततः जब वह नहीं माना तो उसे जान से मारने का निर्णय कर लिया। 

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हिरण्यकश्यप की एक बहन थी होलिका जिसे यह वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने इसका लाभ लेना चाहा और उसने अपनी बहन को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए।लेकिन प्रहलाद भगवान विष्णु का नाम लेते हुए अपनी बुआ की गोद में बैठ कर चलने को तैयार हो गया लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद आग में जलने से बच गया जबकि उसकी बुआ और हिरण्यकश्यप की बहन आग में जल गई।

होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है और लोग खुश होकर होली का त्योहार मनाते हैं।

होलिका की मौत के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह (आधा मानव और आधा शेर) का अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया और प्रहलाद एक धर्मपरायण और लोकप्रिय राजा के रूप में शासन करने लगे।

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होली के दिन रंग क्यों खेला जाता है?

अब तक यह कहानी आपके समझ में आ गई होगी कि होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। अब आपको बताते हैं कि आखिर होली के त्यौहार में रंगों का उपयोग या इस्तेमाल क्यों होने लगा?  कहते हैं कि यह कहानी भी भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है।

माना जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार कहे जाने वाले भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती।

होली का इतिहास || History of Holi

होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।

प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं।

कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।

होली समारोह || Holi Festival

होली का पर्व 1 दिन का त्यौहार नहीं बल्कि यह पर्व 2 से 3 दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन उत्सुकता और लोगों में खुशहाली का माहौल देखते ही बनता है। 

Day 1: पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।

Dya 2: इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।

Day 3: इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

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भारत में होली उत्सव की परंपरा

होली भारत के सबसे लोकप्रिय त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। आइए हम होली के कुछ क्षेत्रीय उत्सवों पर नजर डालते हैं–

धुलेंडी होली- यह होली हरियाणा में प्रचलित है और इस दिन भाभियों (भाई की पत्नी) को पूरी छूट होती है कि वे अपने देवरों (पति के छोटे भाई) को साल भर सताने का दण्ड दें। इस दिन भाभियाँ देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिए उपहार लाते हैं और भाभी उन्हें आशीर्वाद देती हैं।

रंगपंचमी- यह त्यौहार पाँचवें चंद्र दिन पर, अर्थात् होली के पाँच दिन बाद मनाया जाता है और इस दिन लोग रंग खेलकर यह त्यौहार मनाते हैं। रंगपंचमी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में काफी लोकप्रिय है।

बसंत उत्सव- “बसंत उत्सव” या वसंत महोत्सव,पश्चिम बंगाल में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा उनकी विश्व भारती यूनिवर्सिटी में शुरू किया गया एक वार्षिकोत्सव है। इस दिन छात्र पीले रंग के कपड़ों को पहनकर और रंगों को उड़ाते हुए कुछ अद्भुत लोक नृत्यों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत करते हैं।

लट्ठमार होली- मथुरा के नजदीक उत्तर प्रदेश के दो शहरों बरसाना और नंदगाँव में होली के कुछ दिनों पहले यह उत्सव शुरू होता है। लाट्ठमार होली को भगवान कृष्ण के बीज-पत्र से लिया गया है, जो इस दिन अपनी प्रिय राधा के गाँव जाते थे और राधा और उनकी सखियों के साथ ठिठोली करते थे। जिसके कारण राधा तथा उनकी सखियाँ ग्वाल वालों पर डंडे बरसाती थीं। इसलिए आज भी, नंदगाँव के लोग हर साल बरसाना शहर में जाते हैं, ताकि वहाँ की महिलाएं उनको डंडा (लट्ठ) लेकर वहाँ से भगाएं।

होला मोहल्ला– यह होली के बाद मनाया जाने वाला एक सिख त्यौहार है, जो सिखों के नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। आनंदपुर साहिब में होली के दौरान तीन दिनों तक एक मेला आयोजित किया जाता है, जहाँ सिख अपने कौशल और बहादुरी का प्रदर्शन करते हैं। यह उत्सव सिखों के पाँच अस्थायी अधिकारों में से एक तख्त श्री केशगढ़ साहिब के पास एक लंबे, सैन्य स्टाइल जुलूस के साथ होला मोहल्ला के दिन संपन्न होता है।

शिमगो- यह गोवा का वसंत ऋतु का त्यौहार है और यह होली के दौरान भी होता है। इसमें पारंपरिक लोक और सड़क नृत्य भी शामिल हैं तथा बड़े पैमाने पर निर्मित नौकाएं क्षेत्रीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक दृश्यों को दर्शाती हैं।शिमगो महोत्सव गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों में एक पखवाड़े के लिए होता है।

कमन पंडिगाई- यह होली के दौरान तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक त्यौहार है, जो कामदेव की कथा से संबंधित हैं, जिन्हें भगवान शिव ने अपने कोप से भस्म कर दिया था। किंवदंती के अनुसार, कामदेव को भगवान शिव ने होली के दिन पुनर्जीवित कर दिया था और इसलिए उनके नाम पर ही यह त्यौहार मनाया जाता है।

दुनिया भर में होली का उत्सव || Holi in The World

होली ने आज दुनिया के विभिन्न भागों में अपना महत्व अर्जित किया है। यहाँ होली के उत्सव के कुछ दिलचस्प पहलू और उनके नाम हैं। सूरीनाम में, इसे फगवा त्यौहार कहा जाता है और यह एक राष्ट्रीय त्यौहार है। फागवा त्रिनिदाद और टोबैगो और गुयाना में भी मनाया जाता है, जहाँ भी यह एक राष्ट्रीय त्यौहार है। फिजी में, इंडो-फिजियन बहुत उत्साह के साथ होली का उत्सव मनाते हैं। मॉरीशस में, होली के उत्सव को शिवरात्रि के अगले दिन मनाया जाता है।

होली के व्यंजन || Dishes of Holi

होली के त्यौहार रंग और होलिका दहन का तो है ही साथ ही साथ होली पर लोग अच्छे अच्छे पकवानों को भी बनाते हैं और एक दूसरे को खिलाते हैं। होली के दिन बनाए गए पकवानों से एक अलग खुशबू निकलती है जिसे खाने के बाद आत्मा तृप्त हो जाती है और लोग एक दूसरे को दिल से बधाई देते हैं।

गुजिया खाने से दिल को मिलता है सुकून

होली उत्सव में अगर गुझिया का आनंद ना हो तो सब कुछ बेकार है। होली में गुझिया खोवा, पिस्ता, बादाम, चिरौंजी, किशमिश, केसर, चीनी पाउडर, इलायची पाउडर और नारियल को भरकर बनाई जाती है। इसकी बाहरी सतह आटा (मैदा) और देसी घी का उपयोग करके बनाई जाती है। आप इसे आसानी से घर पर बना सकते हैं।

ठंडाई से होता है रंगीन उत्सव

आपके भोजन के साथ के स्वागत योग्य पेय ठंडाई को होली मॉकटेल भी कहा जाता है। यह दूध, चीनी, केसर, गुलाब जल, अफीम के बीज, तरबूज के बीज और बादाम का उपयोग करके बनाई जाती है। हालांकि, यदि आप मादक प्रभाव को जोड़ना चाहते हैं, तो आप इसमें भाँग का इस्तेमाल करके, सुरम्य मस्ती का आनंद ले सकते हैं।

editor

पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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