What Meerut is famous for: दिल्ली से लगभग 74 कि.मी की दूरी पर स्थित मेरठ उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन शहर है। यह राज्य का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर भी है जो बड़े स्तर पर खेल से सामान और वाद्ययंत्रों का निर्माण करता है। इसका संबंध पौराणिक काल से बताया जाता है, माना जाता है यहां महाभारत में उल्लेख हस्तिनापुर स्थल के अवशेष प्राप्त किए गए थे। कहा जाता है कि पांडवों को जलाने के लिए दुर्योधन द्वारा लाक्षागृह का निर्माण यहीं पास मे करवाया गया था।
औंघड़नाथ मंदिर || Augharnath Mandir Meerut
What Meerut is famous for: औंघड़नाथ मंदिर मेरठा के प्रसिद्ध मंदिर और पर्यटन स्थलों में गिना जाता है, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन विशेष रूप से 1857 की क्रांति के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय सेना को ‘काली पलटन’ कहा जाता था, चूंकि यह मंदिर सेना बैरक के नजदीक थी इसलिए इसे काली पलटन मंदिर के नाम से भी संबोधिति किया जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
भोलेनाथ से जुड़े होने के कारण यहां भक्तों का आना जाना लगा रहता है। स्थानीय निवासियों के अनसुार मराठा शासक युद्ध के लिए आगे बढ़ने से पहले यहां अराधना किया करते थे। यह मंदिर भारतीय इतिहास के कई पहलुओं को उजागर करता है। अतीत की बेहतर समझ के लिए आप यहां आ सकते हैं
हस्तिनापुर || Where is Hastinapur
हस्तिनापुर,मेरठ जिले के अंतर्गत एक नगर है, जिसका संबंध पौराणिक काल से बताया जाता है। इस नगर का उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। पौराणिक साक्ष्यों के अनसुार यह नगर कुरू साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। गंगा नदी के तट पर स्थित यह नगर भारतीय पौराणिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। महाभारत काल की कई घटनाएं इस नगर से जुड़ी है, सौ कौरव भाईयों का जन्म भी इस नगर में हुआ था। यहां स्थित द्रौपदी घाट और कर्ण घाट महाभारत की याद ताजा करते हैं।
सेंट जॉन चर्च || Saint Johns Church Meerut
What Meerut is famous for: मेरठ भ्रमण के दौरान आप यहां की सेंट जॉन चर्च भी देख सकते हैं। यह एक प्राचीन चर्च है, जिसका निर्माण ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1819 में किया गया था। यह उत्तर भारत की सबसे पुरानी चर्च में से एक है, जिसे नव औपनिवेशिक शैली में बनाया गया था। यहा वो ऐतिहासिक स्थल भी है, जहां अंग्रेज और भारतीयों के बीच कुछ लड़ाईयां भी लड़ी गईं थी। इतिहास की बेहतर समझ के लिए आप यहां की सैर कर सकते हैं।
सूरज कुंड || Surajkund Meerut
मेरठ के अन्य प्रसिद्ध स्थलों में आप यहां सूरज कुंड की सैर कर सकते हैं। यह एक पुराना कुंड है, जिसका निर्माण लवर जहांवर लाल नाम के एक व्यापारी ने करवाया था। पहले यह कुंड अबु नाला के पानी से भरा था बाद में इसे गंगा नहर के पानी से भरा गया। सूरज कुंड कई ऐतिहासिक संरचनाओं से घिरा हुआ है। आप यहां पास में स्थित बाबा मनोहर नाथ मंदिर के दर्शन कर सकते है, जिसका निर्माण मुगल शासक शाह जहां ने करवाया था।
बाले मियां की दरगाह || Bale Mia Ki Mazar Meerut
What Meerut is famous for: उपरोक्त स्थलों के अलावा आप मेरठ में बाले मियां की दरगाह देख सकते हैं। यह एक प्राचीन दरगाह है, जिसका निर्माण 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। यह दरगाह अपने वार्षिक त्योहार उर्स के लिए काफी ज्यादा प्रसिद्ध है, इस दौरान यहां दूर-दूर से मुस्लिम धर्म के लोगों आगमन होता है। इतिहास के कुछ अलग पहलुओ को जानने के लिए आप यहां आ सकते हैं। यह दरगाह चंडी देवी मंदिर के निकट स्थित है।
मनसा देवी मंदिर मेरठ || Mansa Devi Mandir Meerut
मनसा देवी का यह मंदिर मेरठ मेडिकल कॉलेज के पास स्थित है। देवी दुर्गा को समर्पित यह स्थान एक सिद्धपीठ है। लोगो की मान्यता है की यहा देवी की पूजा अर्चना करने से देवी भक्तो की इच्छाओ को पूर्ण करती है। नवरात्रो के दिनो में यहा भक्तो की काफी भीड रहती है।
शहीद स्मारक || Shahid Smarak Meerut
What Meerut is famous for: मेरठ के सबसे पुराने स्मारकों में से एक शाहिद स्मारक, जिसकी ऊंचाई में 30 मीटर की है और यह संगमरमर से बना है। यह युद्ध स्मारक मेरठ में वेस्टेंड रोड के पास स्थित है।
गांधी पार्क || Gandhi Park Meerut or Company Garden Meerut
What Meerut is famous for: गांधी पार्क मेरठ जैसे भीड भाड वाले शहर में हरियाली से भरा एक पार्क है। गर्मीयो में राहत पाने का भी एक अच्छा स्थान है। यह स्थानीय रूप से कंपनी गार्डन के रूप में जाना जाता है, यह छावनी क्षेत्र में स्थित है और ब्रिटिशों के लिए एक समय पसंदीदा मनोरंजक स्थान माना जाता था। गांधी पार्क में वनस्पति ककीहरियाली और विविध संपत्ति आपको एक अलग दुनिया में ले जायेगी।
पार्क अपने वनस्पति उद्यान, बच्चों के पार्क और हर शाम को होने वाले संगीत फव्वारे के लिए भी प्रसिद्ध है। यह एक लंबे दिन की कड़ी मेहनत के बाद कुछ सकून के पल गुजारने के लिए एक आदर्श स्थान है। मेरठ के दर्शनीय स्थल में काफी प्रसिद्ध है। लोकल के लोग अक्सर यहा सुबह शाम जॉगिंग और वाकिंग के लिए आते है।
मेरठ का रेवड़ी गजक: सर्दियों में बढ़ जाती हैं इनकी डिमांड, विदेशों तक फैली है इसकी खुशुबू
What Meerut is famous for: यहां की बनी रेवड़ी और गजक देश ही नहीं विदेशों तक अपनी खुशबू फैला रहे हैं। यहां के बने रेवड़ी और गजक की डिमांड सर्दियों में बढ़ जाती है। उबड़-खाबड़ और लकड़ी नाम से मशहूर इन मिठाईयों के नाम आपको हैरान जरूर करेंगे लेकिन एक बार इनका स्वाद चखा तो फिर खाने वाला इनके स्वाद को नहीं भूलता। बाजार में गजक की एक दो नहीं एक दर्जन से अधिक वैराइटी हैं। सर्दी की मिठाई है मशहूर रेवड़ी और गजक, आइये जानते हैं और क्या है इसकी खासियत-
- मेरठ की बनी रेवड़ी और गजक देश ही नहीं विदेशों तक में मशहूर हैं।
- गजक और रेवड़ी को सर्दी की मिठाई के नाम से जाना जाता है। सर्दी शुरू होते ही शहर के बुढ़ाना गेट और सदर बाजार में गजक की मिठाई हवा में घुल जाती है।
- गजक बनाने वाले हर साल नई वैराइटी निकालते रहते हैं। इस बार भी कई नई वैराइटी बाजार में है।
- उबड़-खाबड़ और लकड़ी के नाम वाली गजक लोगों की खास पसंद बनी है।
- उबड़-खाबड़ की कीमत 200 रुपये किलो है जबकि लकड़ी की कीमत भी 200 रुपये किलो से शुरू है।
- गजक विक्रेता राजेंद्र कुमार टीटू का कहना है कि केसर गजक और काजू-पिस्ता गजक की खूब डिमांड हैं।
- राजेंद्र कुमार टीटू ने बताया कि गजक की कीमत 200 रुपये से शुरू है और 600 रुपये किलो तक बाजार में मौजूद है।
ये हैं गजक की वैराइटी के नाम || Variety of Ghazak
- गजक भुजिया, मक्खनी गजक, कुरकुरी गजक, कड़ाके गजक, नमकीन गजक।
- काजू-बादाम, पिस्ता गजक, केसर बादाम गजक, दूध टिक्की गजक, उबड़-खाबड़ गजक।
- काजू गजक, मक्खनी गजक, उबड़- खाबड़ गजक, चमेली गजक, कटलर गजक।
- भुजिया गजक, लकड़ी गजक, सोहन गजक, आम पापड़ गजक, चॉकलेट गजक ।
विदेशों में मशहूर हैं मेरठ की कैंचियां
What Meerut is famous for: जब भी कैंचियों की बात आती है मेरठ का नाम जरूर आता है, जहां की कैंचियां देश ही विदेशों तक मशहूर हैं। लेकिन कम लोगों को ही पता होगा कि इन कैंचियों को देश-विदेश तक पहुंचाने में एक शख्स रईसुद्दीन ‘रईस मियां’ का हाथ है। कई साल पहले पहले मेरठ के छोटे से मोहल्ले की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों और इक्का- दुक्का दुकानों में कैंची बनाने का काम शुरू हुआ।
कैंची बनाने का यह काम वक्त के साथ-साथ नित नए मुकाम हासिल करता चला गया इस काम को पहचान दी हाजी रईसउद्दीन जैसे नायाब हुनरमंद दस्तकारों ने। जिन्होंने इस छोटे से लेकिन जरूरी औजारों को अलग-अलग जरुरतों और मौके के हिसाब से तैयार किया। रईस मियां के खानदान में यह काम उनके दादा हाजी खुदा बख्श ने शुरु किया था इसे आगे बढ़ाया उनके पिता सेठ मौला बख्श ने पिता से मिले इस हुनर को रईस मियां ने और मांजा।
उन्होंने दशकों से चली आ रही पुरानी कैंची को मॉर्डन लुक देते हुए इसमें कई छोटे-बड़े बदलाव किए और इसे आरामदायक और ज्यादा तेज बनाया। आज रईस मियां के परिवार की सातवीं पीढ़ी काम कर रही है। रईस मियां की गल्तेदार कैंची की धूम अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों तक है विभिन्न उपयोग के लिए बनाई गई उनकी दर्जनों तरह की कैंचियों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी दिलाया है। पिछले तीन सदियों से मेरठ की कैची अपनी खूबियों के चलते देश विदेश में अलग पहचान रखती है।
कोई दूसरा नहीं बना पाया ऐसी कैंची
रईस के बेटे अनीस बताते है, “कभी परदादा आना दो आना में कैंची बेचा करते थ , आज यही कैंची 200 से 700 रुपए तक बेची जा रही है। देश- विदेशों में महशूर है कई देशों से प्रशंसा पत्र आ चुके हैं। इनके डिजाइन की कैंची तो कोई दूसरा बना ही नहीं पाया करीब पांच दशक से गल्तेदार कैंची बना रहे हैं रईस सीज़र्स के नाम से फर्म चला रहे हैं।” छठवीं पीढ़ी में उनके छोटे बेटे अनीस इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं।
मेरठ की कैंची के मुरीद है सऊदी भी कैंची की तेज धार का डंका देश नहीं विदेशों में भी बज रहा है उनकी कारीगरी के दीवानों की संख्या कम नहीं है। तीन साल पहले सऊदी अरब के टेलर के पास गई कैंचियों को मेरठ फिर से धार लगवाने के लिए भेजा गया।
सन 1700 ई. से होता चला आ रहा है काम
देखा-देख बस गया कैंची बाज़ार अनीस बताते हैं, “हमारा खानदानी काम है मेरे परदादा काम किया करते थे उसके बाद दादा ने फैक्ट्री खोली कई लोगों को रोजगार दिया कई कारीगर तैयार किए। उसके बाद हमारे वलीद साहब रईस मियां ने काम संभाला कईं तरह की कैंचियां बनाई आज हम उस काम को संभाल रहे हैं। देखते ही देखते सब कारीगर या काम करने वालो ने आज खुद का काम कर लिया है आज ये केन्चियांन मोहल्ले के नाम से जाना जाता है।
1857 में मेरठ से उठी क्रांति की चिंगारी
What Meerut is famous for: अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. इसी ने अंग्रेजों के पैर भारत से उखाड़ने की भूमिका तैयार की और आखिर में 1947 में भारत को आजादी मिली. इस जंग में लाखों ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया।
आइए जानें कैसे हआ 1857 का विद्रोह
विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी और पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी।
नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी. नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था. कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर (फैजाबाद) के रहने वाले थे, रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया. जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे, जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया।
सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया. मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिए कहा पर किसी के न मानने पर उन्होंने अपनी बंदूक से अपनी जान देने की कोशिश की. परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुए. 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गई।
What Meerut is famous for: और किसके लिये फेमस है मेरठ
मेरठ प्रकाशन उद्योग, खेल के कारोबार के लिये प्रसिद्ध है। यहां का खेल कारोबार पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। क्रिकेट के बल्ले दुनियाभर के खिलाड़ियों के लिये पहली पसंद बने हैं। यहां का बैंडबाजा भी पूरे दुनिया में संगीत का स्वर विखेर रहा है।
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