साल-2023 को संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया है अंतरराष्ट्रीय बाजारा वर्ष

लखनऊ। संयुक्त राष्ट्र ने आने वाले साल-2023 को ‘अतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष‘ घोषित किया है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन इसे बृहद स्तर पर मनाएगा। यह खुशी की बात है जिसमें अपना देश भी प्रतिनिधित्व कर रहा है। इससे पहले 2018 में भारत सरकार ने ‘द ईयर ऑफ मिलेट्स‘ का सेलिब्रेशन किया था, वहीं पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूनाइटेड नेशंस के सामने यह मुद्दा रखा था कि छोटे अनाज की आवश्यकता है और छोटे अनाजों का रकबा भारत में सबसे अधिक हुआ करता था लेकिन आज के समय में यह रकबा घटा है, जो चिंता का विषय है। मोटे अनाजों को बढ़ावा देना इसका उद्देश्य है। बीते दिनों खबर आई थी कि देश की राजधानी में नई दिल्ली में मोटे अनाजों का भोज हुआ था।

श्रीचंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह बताया कि मोटे अनाजों में ज्वार बाजरा मक्का प्रमुख फसलें हुआ करती हैं इसके अलावा मंडुवा, कोदो, चीना, सावां कुटकी, कुट्टू और चौलाई की खेती आजादी के दो दशक बाद तक बड़े पैमाने पर हुआ करती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी ज्वार बाजरा और मक्के का अधिक रखवा है। वहां पर बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।

डॉ सिंह ने बताया कि पिछले दो दशक से मंडुवा, चीना, कोदो, सावां, कुट्टू एवं चौलाई की खेती का रकबा बहुत घट गया है। आने वाली पीढ़ियां इन छोटे अनाजों को पहचान भी नहीं पाएंगी। उन्होंने बताया कि पौष्टिता की दृष्टि बाजारा स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी और लाभकारी हैं. और आने वाले समय में बीमारियों से रक्षा के लिए इनकी बहुत जरूरत होगी। उत्तर प्रदेश में बाजरे की खेती सबसे ज्यादा होती है। देश का 20 प्रतिशत बाजरा का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है जो उत्पादकता औसत से भी अधिक है। प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश में लगभग 10 लाख हेक्टेयर रकबा बाजरे का है इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है।

कृषि विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि ज्वार और बाजरा के लिए कीटनाशक और उर्वरक की आवश्यकता कम होती है, वहीं पर समन्वित उर्वरक प्रबंधन करके बाजरा और ज्वार की खेती की जाए तो उत्पादन बढ़ेगा।

जीवाश्म खादों के प्रयोग से मिलेट्स का उत्पादन भी बढ़ेगा और गुणवत्ता भी बढ़ेगी। सफल प्रबंधन के द्वारा रसायन मुक्त ज्वार बाजरा का उत्पादन किया जा सकता है। सरकार भी चाहती है कि मोटे अनाजों का रकबा बढ़ाया जाए। प्रमुख रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोटे एवं छोटे मिलेट्स का रकबा अधिक है पूरे उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में भी मिलेट्स का रकबा बढ़ाने की आवश्यकता है।

उन्होंने बताया कि ज्वार बाजरा सहित सभी छोटे मिलेट्स स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। इसमें कार्बाेहाइड्रेट, प्रोटीन, अमीनो एसिड्स, फैट, फाइबर एवं विटामिंस प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं प्रमुख रूप से 6 से लेकर 17ः तक इसमें प्रोटीन होती है सूक्ष्म पोषक तत्व में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम जिंक, आयरन एव थायमिन राइबोफ्लेविन नियासिन फोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। घुलनशील फाइबर पाए जाने के कारण मिलेट्स डायबिटीज बीमारी के लिए बहुत लाभकारी अनाज है। मिलेट्स एंटी एसिडिक गुलेटिन फ्री तथा ब्लड शुगर को कम करने वाला, गैस्ट्रिक अल्सर, कैंसर को समाप्त करने और शरीर के अंदर महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण कोशिकाओं के लिए लाभदायक है इसमें बहुत अधिक मात्रा में पाचन सील फाइबर पाया जाता है जो बहुत ही लाभकारी है।

छोटे अनाजों की एमएसपी भी बढ़ाने की है आवश्यकता

बाजरा की मांग को देखते हुए उत्तर प्रदेश में 18 से अधिक जिलों में सरकार एमएसपी पर बाजरा की खरीद अभी फिलहाल कर रही है। 2350 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजरा खरीदा जा रहा है हालांकि खरीद कम ही हो रही है। लोकल बाजार कि यदि बात करें बख्शी का तालाब, इटौंजा, महोना, मोहनलाल गंज एवं लखनऊ की बाजारों में बाजरे का रेट 3500 से 4000 रुपया प्रति कुंतल है। छोटे अनाजों का रकबा बढ़ाने तथा निशुल्क बीज किट वितरण का कार्य प्रदेश सरकार कर रही है। अंत में डॉ सिंह ने बताया कि उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है जब तक उत्पादन नहीं बड़ता तब तक निर्यात भी संभव नहीं हो पाएगा।