मेरठ राजनीति के संवादनशील पुरुष का यूं ही चले जाना, बड़ा अखर रहा है

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jai narayan sharma
  • प्रशांत कौशिक, मेरठ

पंडित जयनारायण शर्मा जी नहीं रहे, जब यह शब्द कानों ने सुने तो यकायक विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही जब उनसे बात हुई थी तो हमेशा की तरह उनके द्वारा मिले स्नेह पूर्ण आशीर्वाद और आत्मीयता की यादें जीवंत होकर आंखों के सामने ठहर सी गई।

जब भी पंडित जी से मिला उन्होंने हमेशा ही एक विश्वास दिया और लिखने के लिए हमेशा प्रेरित किया और कहते थे कि राजनीति में संवेदनाओं का होना बहुत जरूरी है क्योंकि तभी आप दूसरो के दर्द, पीड़ा को समझ सकते हो क्योंकि राजनीति दुसरे के दर्द को साझा करने का माध्यम है, दुसरे की पीड़ा को दूर करने का माध्यम है।

1991 की बात है जब मुझे एनएसयूआई की मेरठ शाखा में अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी मिली थी तब मैं पंडित जी का आशीर्वाद लेने इनके निवास पर गया था, उनसे मिलने के वह पल और आशीर्वाद के रूप में उनसे मिली सीख कि ‘राजनीति सेवा का माध्यम है ना कि स्वार्थ का’ हमेशा मेरे लिए प्रेरक बनी रही है और आज भी बनी हुई है। उसके बाद से निरन्तर अनेकों अनेक अनगिनत पल ऐसे रहे जहां उनसे सिखने को ही मिलता रहा क्योंकि वह स्वयं में एक संस्था थे, उनके अंदर विषयों की गहरे तक समझ थी, उनकी वाकपटुता के चर्चे तो सभी सीमाओं को लांघते हुए चारों तरफ हमेशा ही छाये रहे हैं क्योंकि उनके पास शब्दों का ऐसा सागर रहा है जहां शब्द उनके अनुसार अपना संसार रचते रहे हैं और उससे भी ज्यादा उसे व्यक्त करने का उनका खास अंदाज उन्हें सबसे अलग बनाता रहा है।
पंडित जी सही मायने में मेरठ की राजनीति के शलाका पुरुष रहे हैं, चाहे कोई उनसे सहमत हो या ना हो लेकिन उन्हें नजरंदाज करना किसी के लिए कभी भी संभव नहीं रहा। जहां आज की राजनीति में राजनीति का व्यवसायीकरण करने वालों की संख्या बढ़ रही है वहीं पंडित जी ने कभी भी राजनीति को व्यवसाय नहीं बनाया साथ ही राजनीतिक स्वार्थ के लिए जहां राजनीतिक लोग कब कहां किस झंडे को अपना लेते हैं वहीं पंडित जी ने कभी भी अपनी राजनीतिक विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया।
उनका अडिग विचार था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही सही मायने में भारत के विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाला दल है और अपनी आखिरी सांस तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दामन में अपने को समेटे हुए राष्ट्रीय एकता, सौहार्द, अखंडता का संदेश सभी को देते रहे। 
आज उनके देहावसान से मन में बहुत पीड़ा हो रही है, शब्द नहीं है उनके सम्मान में संवेदना व्यक्त करने के लिए क्योंकि वह एक शख्सियत नहीं बल्कि हम सभी के लिए हमारे अपने थे और मार्गदर्शक थे। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान कर शोक संतृप्त परिवार को दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।
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पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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