राजा ने इंसाफ की खातिर बेटे को ही दे दी फांसी

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भोपाल. शहीद भवन में चल रहे कलारंग नाट्य समारोह में रविवार को पारसी नाटक ‘यहूदी की लड़कीÓ का मंचन हुआ। नाटक के लेखक आगा हश्र काश्मीरी है। इसका निर्देशन कारवां संस्था के निर्देशक उबेदउल्ला खान ने किया। नाटक में दिखाया गया कि आज के दौर में मजहबी नफरतें बढ़ गई हैं, सत्ता के मतभेद के साथ इंसाफ पर भी सवाल उठने लगे हैं।
संगीत से उभरे कलाकारों के भाव
ये नाटक 1913 में लिखा गया था। यह नाटक रोमन द्वारा यहूदी पर किए गए अत्याचार की कहानी पर आधारित है। डायरेक्टर ने बताया कि पारसी नाटकों में सबसे कठिन काम संगीत का होता है। पुराने जमाने में जो पारसी समुदाय के लोग भारत आए थे। वे जो मंचन करते थे उनमें पात्र अपनी बात काव्यात्मक ढंग से कहते थे। इस तरह काव्यात्मक रूप के मंचन में संगीत ही सबसे कठिन होता है। इसी संगीत के माध्यम से मंच पर कलाकारों के भाव को जाहिर किया जाता है। खासकर नगाड़ा और झांझ की आवाज मंचन को अलग बनाती है।
इंसाफ सच्चा होना चाहिए
नाटक में राहिल रोमन शहजादे मार्केस से प्यार करती है, लेकिन शहजादा इसलिए राहिल से शादी नहीं करता है क्योंकि वह उनके धर्म की न होकर यहूदी की बेटी है। शहजादे का विवाह एक अन्य रोमन प्रिंसेस डेशियर से तय होती है तो यहूदी की लड़की राहिल इंसाफ के लिए राजा के पास पहुंच जाती है। दरबार में सभी लोग राहिल को बुरा-भला कहते हैं लेकिन राजा कहता है कि इंसाफ सच्चा होना चाहिए फिर चाहे वह उनका बेटा ही क्यों न हो। वह उसे मौत की सजा सुनाता है।

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