हिन्दुस्तान का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन चरणों में होने वाले मतदान के पहले चरण की अधिसूचना जारी हो गई है और नामांकन की प्रक्रिया चल रही है। इसी के साथ ही आतंकियों ने भी चुनाव प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के एक दिन पूर्व आतंकियों ने अन्य इलाकों की अपेक्षा शांत और सुरक्षित माने जाने वाले उधमपुर में सुरक्षा बलों पर अटैक किया, जिसमें सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर को जान से हाथ धोना पड़ा। दरअसल इसी वर्ष अप्रैल, मई में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर के लोगों के उत्साहपूर्वक भाग लेने और जमकर वोटिंग करने से आतंकियों तथा सीमा पार बैठे उनके लीडरों को बेचैन कर दिया है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में लोग कैसे चुनाव प्रक्रिया में शामिल हो गए हैं। सूबे की सभी पांच लोकसभा सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई, जो कि एक रिकार्ड है।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही सुरक्षा बलों पर आतंकियों के हमले की वारदातें बढ़ीं, विशेष रूप से जम्मू के इलाके में, जिसे आम तौर पर शांत और सुरक्षित माना जाता है। सिर्फ जुलाई माह में ही सुरक्षा बलों पर आतंकियों के दस बड़े अटैक हो चुके हैं। इन हमलों में कैप्टन रैंक के अफसर सहित 15 जवान कुर्बान हो गए। अगस्त में भी एक हफ्ते के अंतराल पर दो हमले हुए, जिनमें सेना का एक कैप्टन और सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर इस दुनिया से रुखसत हो गए। ये हमले अचानक या अनायास ही नहीं हो रहे हैं। इनके पीछे कहीं बड़ी साजिश की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी वजह से आशंका जताई जा रही है कि विधानसभा चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों तथा सूबे के अवाम पर हमले की वारदातों में वृद्धि हो सकती है।
इस नजरिये से चुनाव प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है। निर्वाचन आयोग, राज्य प्रशासन और सुरक्षा बलों को नागरिकों को हर स्थिति में सुरक्षा उपलब्ध करानी होगी तथा उनके मन में सुरक्षा की धारणा मजबूत करनी होगी, ताकि वे खुलकर चुनावी प्रक्रिया में शामिल होकर वोटिंग कर सकें। चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने का अर्थ है कि लोग बढ़ चढ़कर चुनाव लड़ने के लिए सामने आएं तथा वोटिंग करने के लिए भी लोग निर्भीक होकर घरों से बाहर निकलें। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चुनाव निष्पक्ष तथा पारदर्शी तरीके से हों, अन्यथा लोगों के विश्वास को चोट पहुंचेगी तथा सारी कवायद पर पानी फिर जाएगा।
इस बार के विधानसभा चुनाव में एक बड़ी चुनौती अलगाववादी ताकतों से भी है। लोकसभा चुनाव में बारामूला लोकसभा सीट का चुनाव परिणाम इस खतरे की ओर साफ इशारा कर रहा है। निर्दलीय उम्मीदवार इंजीनियर शेख राशिद ने इस सीट पर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री एवं लोकप्रिय लीडरों में से एक उमर अब्दुल्ला को पराजित कर दिया। इतना ही नहीं, दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए ही शेख राशिद ने चुनाव लड़ा और उनके दो बेटों ने चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभाली। उग्र अलगाववादी विचारधारा से ताल्लुक रखने की वजह से ही शेख राशिद जेल की सलाखों के पीछे हैं।
बारामूला सीट पर लोगों ने उदार और लोकतांत्रिक विचारधारा वाले उमर अब्दुल्ला के बजाय अलगाववादी विचारधारा वाले शेख राशिद को अपना प्रतिनिधि चुना। शेख राशिद को लगभग 46 फीसदी वोट मिले। इसके विपरीत उमर अब्दुल्ला को मात्र 25 फीसदी वोट ही मिले। यह कहा जाये तो गलत नहीं होगा कि मुख्य विचारधारा के मुकाबले अलगाववादी विचारधारा वाले निर्दलीय उम्मीदवार को मिला समर्थन विधानसभा चुनाव में एक नई चुनौती की ओर इशारा कर रहा है। यह विचारणीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान अवाम में जो उत्साह नजर आया, विशेष रूप से घाटी के इलाके में, कहीं वह अलगाववादी ताकतों की वजह से तो नहीं है। यदि ऐसी बात है तो विधानसभा चुनाव के दौरान इस प्रवृत्ति पर बारीकी से नजर रखने तथा उस पर नकेल कसने की जरूरत है।
फिलहाल, सूबे में यदि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पुख्ता होती है और उसमें लोगों की भागीदारी बढ़ती है तो यह आतंकी गिरोहों के लिए प्रतिकूल स्थिति होगी। यही वजह है कि आए दिन अवाम के साथ साथ सुरक्षा बलों पर अटैक करके जम्मू कश्मीर में शांति और सहजता की स्थिति को भंग करने का प्रयास किया जाता है। सरकार को आतंकियों के खिलाफ जारी मुहिम के साथ साथ सूबे के अवाम में आतंकियों और आतंकवाद के खिलाफ जो राय बन रही है, उसे पुख्ता किया जाये, ताकि आतंकवाद की चुनौती से निपटने में कारगर मदद मिले।