सनातन धर्म में भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक 16 दिन पूर्वज समर्पित हैं। इसकी मान्यता पितृपक्ष की है। इस बार पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है। पितृ पक्ष का समापन 2 अक्टूबर को पितृ विसर्जन के साथ ही होंगा। शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण बताए गए हैं। माता-पिता ने हमारी आयु- आरोग्यता, सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के लिए अनेकानेक प्रयास किए। उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है। इसीलिए हमारे पितरों के प्रति श्रद्धा समर्पित करने को पितृ पक्ष कहा है।
हिंदू मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को भी शांति मिलती है।सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का नाम कनागत पड़ गया क्योंकि सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पृथ्वी पर आकर अमावस्या तक घर के द्वार पर ठहरते हैं। पूर्वज अपने पुत्रादि से श्राद्ध तर्पण की अपेक्षा करते हैं। यदि उन्हें यह उपलब्ध नहीं होता है तो नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं। सनातनी को केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को जल, तिल, और पुष्प आदि से श्राद्ध संपन्न करने और गो ग्रास देकर ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ गण संतुष्ट होते हैं और उनके ऋणों से मुक्ति मिलती है। जिस तिथि में माता-पिता की मृत्यु हुईहो उस तिथि में श्राद्ध तर्पण, गो ग्रास व ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक होता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार का सुख सौभाग्य समृद्धि की अभिवृद्धि होती है।
ऐसे करें श्राद्ध
श्राद्ध के दिन पितरों की पसंद का खाना बनाया जाता है और योग्य ब्राह्मण को पितरों के नाम से खिलाया जाता है। श्राद्ध कर्म दोपहर में किया जाता है। सबसे पहले सुबह स्नान करें। इस पितरों को तर्पण देने के लिए पिंडदान करना चाहिए। पिंडदान के लिए हथेली भर अनाज का पिंड (जौ के आटे, खीर या गाय का दूध के खोआ) का गोला बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए। इसके साथ ही गंगाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल और दूध से बने पकवान अर्पण करने चाहिए। पूर्वजों के नाम से खाना निकालकर गाय, कुत्ता, कौवा को अर्पित करना चाहिए चाहिए। इसलिए पितरों के निमित्त उन्हें तृप्त करने के लिए जो दान दिया जाता है, वही श्राद्ध है। श्राद्ध पक्ष में विधिवत श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा स्वर्ग में प्रस्थान करती है।
पित पृक्ष श्राद्ध तिथियां
- पूर्णिमा का श्राद्ध – 17 सितंबर (मंगलवार)
- प्रतिपदा का श्राद्ध – 18 सितंबर (बुधवार)
- द्वितीया का श्राद्ध – 19 सितंबर (गुरुवार)
- तृतीया का श्राद्ध – 20 सितंबर (शुक्रवार)
- चतुर्थी का श्राद्ध – 21 सितंबर (शनिवार)
- पंचमी का श्राद्ध – 22 सितंबर (रविवार)
- षष्ठी, सप्तमी का श्राद्ध – 23 सितंबर (सोमवार)
- अष्टमी का श्राद्ध – 24 सितंबर (मंगलवार)
- नवमी का श्राद्ध – 25 सितंबर (बुधवार)
- दशमी का श्राद्ध – 26 सितंबर (गुरुवार)
- एकादशी का श्राद्ध – 27 सितंबर (शुक्रवार)
- द्वादशी का श्राद्ध – 29 सितंबर (रविवार)
- मघा श्राद्ध – 29 सितंबर (रविवार)
- त्रयोदशी का श्राद्ध – 30 सितंबर (सोमवार)
- चतुर्दशी का श्राद्ध – 1 अक्टूबर (मंगलवार)
- सर्वपितृ अमावस्या – 2 अक्टूबर (बुधवार)