
कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट से प्रभावी तरीके से लड़ने और इसे हराने की बजाय राज्य सरकारें कई तरह से इसे अवसर में बदलने में लगी हैं। जैसे कई राज्य सरकारों ने इसी बहाने श्रम कानूनों में बदलाव कर दिया। मजदूरों से ऐसे अधिकार छीन लिए गए, जो सैकड़ों वर्षों की लड़ाई के बाद उन्हें हासिल हए थे। और मजेदार बात यह है कि ऐसा उनकी भलाई के नाम पर किया जा रहा है। राज्य सरकारें कह रही हैं कि मजदूरों का भला करने के लिए वे जरूरी बदलाव कर रही हैं। वे बाहरी कंपनियों को आकर्षित करना चाहती हैं, रोजगार के नए अवसर पैदा करना चाह रही हैं और देश को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से काम कर रही हैं। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में सिर्फ बड़े कारपोरेट ही आत्मनिर्भर होंगे। सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को बेच कर अपनी आत्मनिर्भरता गंवा रही है और श्रम कानूनों में बदलाव करके कामगारों और मजदूरों की आत्मनिर्भरता और उनका बुनियादी अधिकार गंवा रही है। उन्हें या तो राज्य के या फिर कारपोरेट के यहां बंधुआ बनाने का काम हो रहा है।
इसी में कोढ़ में खाज की तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐलान किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि वे देश भर से लौट रहे उत्तर प्रदेश के मजदूरों और कामगारों के लिए राज्य में ही रोजगार की व्यवस्था करेंगे। यहां तक तो ठीक है। यह बात बिहार के मुख्यमंत्री भी कर रहे हैं। सो, बात करने में कोई दिक्कत नहीं है। सबको पता है कि ऐसा कर पाना संभव होता तो इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन नहीं होता। इसके लिए बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत होगी। लंबे समय की योजना के साथ ऐसा करना तो संभव भी है पर हथेली पर सरसों नहीं उगने वाली है। सो, बड़ी बड़ी बातों के अलावा इसका कोई खास मतलब नहीं है। पर इसी बहाने उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रवासी आयोग बना कर कुछ नए नियम बनाने का ऐलान कर दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे सारे मजदूरों और कामगारों की सूची बनवाएंगे। किसमें कौन सा काम करने का कौशल है उसकी भी सूची बनेगी और उसके हिसाब से उनके लिए काम की व्यवस्था होगी। उनको सामाजिक सुरक्षा दी जाएगी। यहां तक भी ठीक है पर इससे आगे उन्होंने जो बात कही है कि वह खटकने वाली है। उन्होंने कहा है कि देश के किसी भी राज्य को अगर उत्तर प्रदेश से मजदूर ले जाने हैं तो उन्हें राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी। उनकी यह बात देश के संघीय ढांचे, संविधान की व्यवस्था और नागरिकों के मौलिक अधिकार सबका उल्लंघन है। भारत का संविधान हर नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाकर नौकरी या रोजगार करने की आजादी देता है। सो, किसी भी नागरिक को किसी दूसरे राज्य में जाकर काम करने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान के बाद महाराष्ट्र के एक छुटभैया नेता राज ठाकरे ने बयान दिया कि मजदूरों को इजाजत लेकर महाराष्ट्र में आना होगा। वैसे तो यह बहुत बेहूदा और संविधान विरोधी बयान है पर योगी आदित्यनाथ के बयान पर सबसे सटीक प्रतिक्रिया भी यहीं है। अगर कोई राज्य अपने नागरिकों को दूसरे राज्य में भेजने से पहले इजाजत मांगने का प्रावधान करेगा तो दूसरा राज्य भी अपने यहां उनके आने से पहले इजाजत लेने का प्रावधान कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो समूचा संघीय ढांचा और कामकाज, रोजगार का बना बनाया ढांचा भी चरमरा जाएगा।
सो, उत्तर प्रदेश सरकार अपने मजदूरों और कामगारों का डाटाबेस बनाए, यह सूची भी बनाए कि उनमें किसके पास किस काम का कौशल है और कौन बिना कौशल के है, उनके लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय भी करे पर उन्हें बंधुआ न बनाए। उन्हें इस नियम में न बांधे कि उन्हें किसी दूसरे राज्य में काम के लिए जाना है तो वे पहले मंजूरी लें। संविधान की बुनियादी भावना के तहत हर नागरिकों को कहीं भी जाकर नौकरी या रोजगार करने की निर्बाध स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उसे न तो अपना राज्य छोड़ने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत होनी चाहिए और न किसी दूसरे राज्य में जाकर काम करने के लिए इजाजत की बाध्यता होनी चाहिए।