-श्रीनाम संकीर्तन से ही संभव है भागवत प्रेम की प्राप्तिः चंचलापति दास
-फूल बंगला, छप्पन भोग, झूलन, पालकी उत्सव एवं महाभिषेक रहे आकर्षण का केन्द्र
मथुरा। वसंत पंचमी से प्रारंभ होने वाला सुप्रसिद्ध होली का उत्सव सम्पूर्ण फाल्गुन मास सम्पूर्ण ब्रज मंडल में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। होली के इस उत्सव को गौड़ीय वैष्णव संतों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के प्रेमावतार श्री गौरांग महाप्रभु के अवतरण दिवस के रूप में मनाते हैं। भक्ति वेदांत स्वामी मार्ग स्थित वृन्दावन चंद्रोदय मंदिर में गौरांग महाप्रभु की 535वीं जयंती गौर पूर्णिमा महामहोत्सव के रूप में हर्षो उल्लास के साथ मनायी गयी। इस दौरान मंदिर में फूल बंगला, छप्पन भोग, झूलन उत्सव, पालकी उत्सव एवं महाभिषेक का आयोजन किया गया।
श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म 15वीं शताब्दी में फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन पिता जगन्नाथ मिश्र एवं माता शची देवी की संतान के रूप में पश्चिम बंगाल के मायापुर (उस समय का नवद्वीप) नामक गांव में हुआ था। नीम के वृक्ष के नीचे जन्म होने जन्म होने के कारण माता-पिता ने उनका नाम निमाई रखा। हालांकि गौरवर्णी होने के कारण वे गौरांग, गौर हरि एवं गौर सुन्दर के नाम से भी सम्बोधित किए जाते हैं।
उत्सव के दौरान भक्तों को सम्बोधित करते हुए चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष श्री चंचलापति दास ने श्री महाप्रभु एवं सनातन गोस्वामी पाद के वक्तव्य का दृष्टांत देते हुए कहा कि श्री महाप्रभु सनातन गोस्वामी को बताते हैं कि श्रीकृष्णभजन में भी नवविधा भक्ति(श्रवण-कीर्तनादि) श्रेष्ठ है। नवविधा में श्रीकृष्ण-प्रेम एवं श्रीकृष्ण को प्राप्त कराने की महाशक्ति है। नवविधा भक्ति में श्रीनाम संकीर्तन सर्वश्रेष्ठ है। अपराध रहित होकर श्रीनाम संकीर्तन करने से प्रेम धन की प्राप्ति होती है।
इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मथुरा, आगरा, दिल्ली, गुरूग्राम, जयपुर, हरियाणा एवं मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से भारी मात्रा में भक्तगण वृन्दावन पहुंचे एवं कार्यक्रम को सफल बनाया।