- प्रह्लाद सबनानी, ग्वालियर
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया के अनुसार, पर्यावरण शब्द ‘परि+आवरण’ के संयोग से बना है। ‘परि’ का आशय चारों ओर तथा ‘आवरण’ का आश्य परिवेश है। पर्यावरण के दायरे में इसलिए वनस्पतियों, प्राणियों और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को शामिल किया जाता है। वास्तव में पर्यावरण में जल, अग्नि, वायु, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं।
हमारे चारों ओर दिखाई देने वाले वातावरण को भौतिक पर्यावरण कहते हैं। यह कई बार बहुत मनोहारी दृश्यों, मंदिरों के भवनों एवं इसके आस पास के हरियाली भरे वातावरण के माध्यम से हमारे सामने रहता है। यह हरियाली भरा वातावरण एवं मंदिर के विशाल भवनों की अनूठी कला इतनी मनमोहक रहती है कि हम लोग उन्हें बार बार देखने के लिए लालायित हो उठते हैं एवं ऐसे स्थान पर्यटन के केंद्र के रूप में उभर कर सामने आ जाते हैं। जैसे भारत में केदारनाथ, बद्रीनाथ, वैष्णोदेवी, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, कन्याकुमारी, मीनाक्षी मंदिर, तिरुपति बालाजी, जगननाथ पुरी, आदि। प्राचीन काल में ऐसे केंद्रो को विकसित करने में भारतीय बहुत रुचि लेते थे और भौतिक पर्यावरण को उच्च श्रेणी का बनाए रखकर अन्य स्थानों से लोगों को आकर्षित करते थे।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को विशेष महत्त्व दिया गया है। प्राचीन काल से ही भारत में पर्यावरण के विविध स्वरूपों को “देवताओं” के समकक्ष मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। पृथ्वी को तो “माता” का दर्जा दिया गया है। “माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या” अर्थात पृथ्वी हमारी माता है एवं हम सभी देशवासी इस धरा की संतान हैं। इसी प्रकार पर्यावरण के अनेक अन्य घटकों यथा पीपल, तुलसी, वट के वृक्षों को पवित्र मानकर पूजा जाता है। अग्नि, जल एवं वायु को भी देवता मानकर उन्हें पूजा जाता है। समुद्र, नदी को भी पूजन करने योग्य माना गया है। गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, सिंधु एवं सरस्वती आदि नदियों को पवित्र मानकर पूजा जाता है। हमें, हमारे पूर्वजों द्वारा पशु एवं पक्षियों का भी आदर करना सिखाया जाता है। इसी क्रम में गाय को भी माता कहा जाता है।
उक्त वर्णन के अनुसार भारतीय संस्कृति में तो पर्यावरण एवं मानवीय जीवन में चोली दामन का साथ दिखाई देता है। उचित पर्यावरण के अभाव में तो मानव जीवन ही सम्भव नहीं है। अत: मानव जीवन के अस्तित्व के लिये उचित प्राकृतिक परिवेश का होना अति आवश्यक है। भारतीय समाज आदिकाल से पर्यावरण संरक्षक की भूमिका निभाता रहा है। भारतीय संस्कृति में हमारे पूर्वजों द्वारा प्रकृति प्रेम को सर्वोपरि रखा गया है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों में पेड़-पौधों एवं अन्य जीव-जंतुओं के सामाजिक महत्त्व को बताते हुए उनको परिस्थिति से जोड़ा जाता है।
प्राचीन युग में विभिन्न दार्शनिकों, शासकों और राजनेताओं ने प्रकृति के प्रति जागरूकता दिखाई है।
परंतु वर्तमान समय में भारत सहित पूरे विश्व में ही परिस्थितियां कुछ भिन्न नजर आती हैं। मानव सब कुछ भूलकर इस धरा का दोहन करने की ओर लगा हुआ है क्योंकि येन केन प्रकारेण विकास की अंधी दौड़ में अपने आप को बनाए रखना है। आज मानव प्रतिदिन वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक क्षेत्र में उन्नति कर विकास की ओर बढ़ता जा रहा है। इसी विकास के कारण इस धरा पर पर्यावरण विपरीत रूप से प्रभावित होकर प्रदूषित होता जा रहा है।
वनों की कटाई, वनस्पतियों और जीवों के संबंधों में कमी, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में वृद्धि, विज्ञापन तथा तकनीकी का अप्रत्याशित प्रसार और जनसंख्या विस्फोट तथा परमाणु भट्टियों में पैदा होने वाली रेडियोधर्मी ईंधन की राख, रासायनिक प्रदूषक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जनित प्रदूषक सामग्री के विस्तार से जो परिवर्तन प्रदूषण के रूप में सामने आ रहे हैं, उससे प्रकृति के साथ सभी जीवों का संतुलन बिगड़ गया है।
प्रकृति के अत्यधिक दोहन के कारण जो स्थितियां पैदा हो रही हैं, उसमें प्रकृति कब तक मनुष्य का साथ दे पाएगी यह अनुमान लगाना अब कठिन नहीं रहा है। विश्व में कई विकसित देशों ने जो आर्थिक विकास हासिल किया है उसकी भारी कीमत अब पर्यावरण में हो रहे भारी परिवर्तन के रूप में वैश्विक स्तर पर चुकाई जा रही है। उपभोग के नाम पर औद्योगीकरण दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्रकृति से अनुराग केवल उपयोगितावादी अथवा उपभोगवादी दृष्टि से नहीं वरन पूजा, श्रद्धा और आदर की भावना से करना सिखाया जाता है। इस धरा से केवल उतना ही लें जितना जरूरी है। प्राकृतिक साधनों का अत्यधिक दोहन हमारे शास्त्रों में निषेध बताया गया है। अतः वेदों में भी कहा गया है कि प्राणी मात्र के लिये प्रकृति की रक्षा कीजिए।
आज आवश्यकता इस बात की है कि समूचे विश्व के देश आपस में मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करें। यदि भारत के साथ साथ अन्य देश भी उक्त वर्णित भारतीय परम्पराओं का सही अर्थों में पालन करने लगते हैं तो शायद इस धरा से पर्यावरण सम्बंधी समस्याओं को धीरे धीरे समाप्त किया जा सकता है। भारत में पर्यावरण के संरक्षण हेतु केंद्र सरकार द्वारा निम्न प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत बहुत तेजी के साथ सौर ऊर्जा एवं वायु ऊर्जा की क्षमता विकसित कर रहा है। उज्जवला योजना एवं एलईडी बल्ब योजना के माध्यम से तो भारत पूरे विश्व को ऊर्जा की दक्षता का पाठ सिखा रहा है। ई-मोबिलिटी के माध्यम से वाहन उद्योग को गैस मुक्त बनाया जा रहा है। बायो इंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, पेट्रोल एवं डीज़ल में ईथनाल को मिलाया जा रहा है। 15 करोड़ से अधिक परिवारों को कुकिंग गैस उपलब्ध करा दी गई है। भारत द्वारा प्रारम्भ किए गए अंतरराष्ट्रीय सौर अलायंस के 80 से अधिक देश सदस्य बन चुके हैं। वैश्विक तापमान के प्रभाव को कुछ हद्द तक कम करने के उद्देश्य से भारत ने पहिले तय किया था कि देश में 175 GW नवीकरण ऊर्जा की स्थापना की जायगी, परंतु अब इस लक्ष्य को बढ़ाकर 450 GW कर दिया गया है।
देश में बढ़ते मरुस्थलीकरण को रोकने के उद्देश्य से, भारत ने वर्ष 2030 तक 2.10 करोड़ हेक्टेयर जमीन को उपजाऊ बनाने के लक्ष्य को बढ़ाकर 2.60 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है। साथ ही, भारत ने मरुस्थलीकरण को बढ़ने से रोकने के लिए वर्ष 2015 एवं 2017 के बीच देश में पेड़ एवं जंगल के दायरे में 8 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी की है।
केंद्र सरकार की एक बहुत ही अच्छी पहल पर अभी तक 27 करोड़ से अधिक मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड किसानों को जारी किए जा चुके हैं। इसमें मिट्टी की जांच में पता लगाया जाता है कि किस पोशक तत्व की जरूरत है एवं उसी हिसाब से खाद का उपयोग किसान द्वारा किया जाता है। पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करने से न केवल जमीन की उत्पादकता बढ़ती है बल्कि उर्वरकों का उपयोग भी कम होता है।
शहरों का विकास व्यवस्थित रूप से करने के उद्देश्य से देश में अब मकानों का लंबवत निर्माण किये जाने पर बल दिया जा रहा है, ताकि हरियाली के क्षेत्र को बढ़ाया जा सके। शहरों में यातायात के दबाव को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न मार्गों के बाई-पास बनाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय द्रुत-गति के रेल्वे यातायात की व्यवस्था की जा रही है, ताकि महानगरों पर जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सके।
देश के विभिन्न महानगरों में 500 किलोमीटर से अधिक मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा चुका है एवं कई महानगरों में विस्तार का काम बहुत तेजी से चल रहा है। देश में 100 स्मार्ट नगर बनाए जा रहे हैं। इन शहरों में नागरिकों के लिए पैदल चलने एवं सायकिल चलाने हेतु अलग मार्ग की व्यवस्थाएं की जा रही हैं एवं इन नागरिकों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अधिक से अधिक उपयोग हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।
2 अक्टोबर 2019 से देश में प्लास्टिक छोड़ो अभियान की शुरुआत हो चुकी है, ताकि वर्ष 2022 तक देश सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त हो जाय। जो सिंगल यूज प्लास्टिक रीसायकल नहीं किया जा सकता उसका इस्तेमाल सिमेंट और सड़क बनाने के काम में किया जा सकता है। भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कर दी गई है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी के प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है।