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- डी एम मिश्र के गजल संग्रह का विमोचन एवं परिसंवाद सम्पन्न
- ‘अब ये ग़ज़लें मिज़ाज़ बदलेंगी’
- गज़लें लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़ी हैं – डॉ जीवन सिंह
- डी एम मिश्र की ग़ज़लों में प्रतिरोधी चेतना – वाचस्पति
- गज़लें हुकूमत के खिलाफ बोलती हैं – स्वप्निल श्रीवास्तव
- राजनीतिक विद्रूपता को उभारने के साथ विकल्प की भी बात – चन्द्रेश्वर
- डी एम मिश्र की ग़ज़लों में लोकजीवन और श्रम का सौंदर्य – कौशल किशोर
ई रेडियो इंडिया
जन संस्कृति मंच के सहयोग से ‘रेवान्त’ पत्रिका की ओर से चर्चित जनवादी गजलकार डी एम मिश्र (सुल्तानपुर) के नवीनतम ग़ज़ल संग्रह ‘समकाल की आवाज़’ तथा ‘ग़ज़ल संचयन’ का विमोचन यूपी प्रेस क्लब, हज़रतगंज में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर डीएम मिश्र की ग़ज़लों के साथ समकालीन ग़ज़ल विधा पर परिसंवाद के अन्तर्गत अच्छी चर्चा हुई। सभी अतिथियों और सहभागियों का ‘रेवान्त’ की संपादक डॉ अनीता श्रीवास्तव ने स्वागत किया और ग़ज़ल विधा के महत्व पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध आलोचक डॉक्टर जीवन सिंह (राजस्थान) ने की। उनका कहना था कि डी एम मिश्र की ग़ज़ल मौजूदा संकट के समय में इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह हिंदुस्तानीपन को व्यापक आधार पर परिभाषित करती है और आपस में दिलों को जोड़ने का काम करती है। यह अपने जनवादी तेवर से लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़ी होती हैं तथा आदमी की पहचान उसकी वेशभूषा और आचार की भिन्नता की बजाय इंसानियत के आधार पर करती है। डी एम मिश्र ग़ज़ल की परंपरा को ज़रूरी मानते हुए भी परिवर्तन, विकास, गतिशीलता और नवीनता के आधुनिक सिद्धांत को आगे बढ़ाते हैं। ये ग़ज़ल के अनुशासन और व्याकरण के प्रति पूरी तरह जवाबदेह भी हैं।
डी एम मिश्र की ग़ज़लों पर बीज वक्तव्य देते हुए कवि-आलोचक व जसम उप्र के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि हिंदी में गजलें भारतेन्दु के समय से ही लिखी जा रही हैं । लेकिन दुष्यंत ने इसकी जमीन को बदलने का काम किया। डी एम मिश्र की ग़ज़लों में यही ज़मीन विस्तार पाती है। ये ग़ज़लें समकाल को रचती हैं और आईना का काम करती हैं जिसमें ७५ साला आजादी के क्रूर यथार्थ को हम देख सकते हैं। डीएम मिश्र की गजलों में भाषा अलंकार और उक्ति में सौंदर्य की जगह लोकजीवन और श्रम का सौंदर्य है। इनमें साफगोई, बेबाकपन, साहस और पक्षधरता है।
वाराणसी से पधारे वरिष्ठ आलोचक वाचस्पति ने कहा कि डी एम मिश्र ग़ज़लों में प्रतिरोधी चेतना के महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। अवध की मिट्टी की सुगंध लिए उनकी ग़ज़लें मुक्ति-संघर्ष की प्रेरक हैं। विकास के पीछे छिपे विनाश की ताकत की अचूक पहचान उनके यहां है।भारत-दुर्दशा के लिए जिम्मेदार तत्त्वों पर डी एम मिश्र पैनी नज़र रखते हुए ग़ज़ल में अपनी राह बनाने में कामयाब हुए हैं।
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फैज़ाबाद से पधारे वरिष्ठ कवि -लेखक स्वप्निल श्रीवास्तव का कहना था कि डी एम मिश्र का मुहावरा अलग है । वे किसी बात को घुमा फिरा कर नही सीधे व्यक्त करने की कला जानते हैं जो अवध के नागरिको की विशेषता है । उनके गज़लों का मार्ग अलग है, वे दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी के बीच अपनी जगह बनाते हैं और गज़लों को अपनी तरह से विकसित करते हैं । उनकी गज़लों की भाषा और अंदाज ए बयां अलग है। आम लोग जिस भाषा में बोलते है, ये उसी भाषा में वे लिखते हैं। इनकी गज़लें हुकूमत के खिलाफ बोलती हैं । इनमें हमारे समय की घटनाएं शिद्दत से दर्ज हैं। सादगी के साथ वे तंज का भी इस्तेमाल करते हैं।
कवि -आलोचक तथा जसम लखनऊ के अध्यक्ष डॉ चंद्रेश्वर ने कहा कि डी.एम.मिश्र ने वैसे तो अपनी रचना यात्रा के आरंभ में कविताओं एवं गीतों की रचना भी की है, किन्तु उनकी असल पहचान ग़ज़लों से है | उन्होंने पिछले दो-ढाई दशकों के भीतर कोई पाँच सौ से भी ज्यादा ग़ज़लों की रचना कर हिन्दी ग़ज़ल को एक नया मुहावरा प्रदान किया है | उनकी ग़ज़लों के भीतर एक ऐसी शख़्सियत है जो नेकदिल और ईमान वाला है |
वह आम आदमी की चिंताओं को लेकर बेचैन और परेशान है | वह इस बाबत वर्तमान सत्ता-व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है | वह एक ओर परंपरा से हासिल सौन्दर्य बोध एवं विवेक को सामने लाता है तो दूसरी ओर आधुनिकता की ख़ूबियों से भी परिचित है | वह आज की राजनीति के विद्रूप को उभारता है तो विकल्प की भी बात करता है | वे अपनी एक ग़ज़ल में लिखते हैं –“अब ये ग़ज़लें मिज़ाज़ बदलेंगी/बेईमानों का राज बदलेंगी/……ख़ूब दरबार कर चुकीं ग़ज़लें/अब यही तख़्त एवं ताज़ बदलेंगी !”
ग़जलकार डी एम मिश्र ने रेवांत पत्रिका और जसम के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरी ग़ज़लों पर आज जो चर्चाएं हुई उनसे बहुत कुछ सीखने को मौका मिला और मेरी आने वाली ग़ज़लों में और सुधार होगा, ऐसा मेरा मानना है। आभार व्यक्त किया जसम लखनऊ के सह सचिव कवि कलीम ख़ान ने। कार्यक्रम के आरंभ में कवयित्री संध्या सिंह व भावना मौर्य ने डी एम मिश्र की ग़ज़लों का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन कवि राजेश मेहरोत्रा ‘राज’ ने किया।
इस मौके पर नरेश सक्सेना, गोपाल गोयल (बांदा), सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, नलिन रंजन, सुधाकर अदीब, अनिल मिश्र, कल्पना पंत, तस्वीर नक़वी, सुमन गुप्ता, अवंतिका सिंह, मंदाकिनी राय, विमल किशोर, इंदु पांडे, अनीता मिश्र, सत्या सिंह, कल्पना पांडेय, पल्लवी मिश्र, किरन मिश्र, अशोक मिश्र, राकेश कुमार सैनी, अनिल त्रिपाठी, दयानंद पांडेय, डॉ फ़िदा हुसैन,मुकुल महान, डॉ सुरेश,रामकठिन सिंह, राजेन्द्र वर्मा, दयाशंकर राय, आशीष सिंह, अनिल कुमार श्रीवास्तव, अलका पाण्डेय, अजीत प्रियदर्शी, राजा सिंह, राजीव रंजन गर्ग, रोली शंकर, अशोक वर्मा, राम किशोर, नरेश कुमार, अरूण सिंह, के के वत्स, एस के सिंह, देवराज अरोरा, के के शुक्ला, वीरेंद्र त्रिपाठी, अजय शर्मा, शुभम, रमेश सिंह सेंगर, आर के सिन्हा, प्रमोद प्रसाद, रइस अहमद, डंडा लखनवी, अलिन्द उपाध्याय, मोहित पाण्डेय आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।