- फाल्गुन मास की आज से हो गई शुरुआत
- ब्रज में पूरे फाल्गुन महीने खेली जाती है होली
Holi in Mathura Latest: पूरे फाल्गुन के महीने ब्रज में होडी का हुडदंग मचेगा। पडवा से फाल्गुन मास की शुरूआत हो गई। हालांकि बसंत पंचमी को ब्रज मंे होली का डांढा गढ जाता है, लेकिन होली रंग फाल्गुन मास में ही जमता है। या जग होरी सब जग होरा की कहावत फागुन में समूचे ब्रज में चिरितार्थ होती है। पं.कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि इस दौरान ब्रज में होली के कई रंग देखने को मिलते हैं। ब्रज में होली का महत्व आध्यात्मिक है। यहां भगवान के भक्तजन होली खेलते हैं। वहीं सांस्कृतिक होली के रंग भी बिखरेंगे।
Holi in Mathura Latest: गांव देहातों में है जबरदस्त परंपरा
गांव देहात में जहां परंपरागत होली के आज भी जीवंत दर्शन होते हैं, वहीं मठ मंदिरों में भक्ति के रंगों में सराबोर होकर श्रद्धालु खुद को धन्य करते हैं। इस दौरान होली के विविधरूप श्रद्धालुओं को भावविभोर कर देते हैं। बरसाना, नंदगांव, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर लठामार होली खेली जाती है तो ंवहीं गोकुल के मुरलीधर घाट पर कान्हा के बाल स्वरूप के साथ खेली जाने वाली छडीमार होली की छटा अद्भुत होती है। फालेन में धधकते अंगारों से पंडा का निकला चमत्कारिक है। बल्देव के दाउजी मंदिर का हुरंगा ब्रज की होली का चरमोत्कर्ष माना जाता है। महावन के चैरासी खम्भा मंदिर का हुरंगा भी प्रसिद्ध है। इसके बाद हुरंगा की लम्बी श्रंखला ब्रज के देहात में चलती है। बरसाना के लाडली जी मंदिर पर लड्डू मार होली, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर सांस्कृतिक होली और रमणरेती आश्रम में खेले जाने वाली होली अपने आप में आद्भुत है।
होली के आयोजनों और प्रसिद्ध होली के कार्यक्रमों के इतर ब्रज में होली की प्रचीन परंपरा भी रही है। हजारों साल से ब्रज की जिस होली की दुनियां मुरीद रही है वह आज भी यहां देखने को मिलती है। गांवों में रात के समय खेली जाने वाली ’सांखा’, होली के रसिया में प्रचानी होली का सौंदर्य सिमटा है। थके हारे हरियारे जब हुरियारे बनते हैं तो कृषि प्रधान देश में तीज त्योहारों का महत्व को समझने में भी मदद मिलती है।
Holi in Mathura Latest: जानिए कब, कहां होने हैं ब्रज की होली के मुख्य आयोजन
10 मार्चः नंदगांव में फाग आमंत्रण महोत्सव
10 मार्चः बरसाना में होगी लड्डू होली
11 मार्चः बरसाना की विश्व प्रसिद्ध लठामार होली
12 मार्चः नंदगांव में होगी लठामार होली
14 मार्चः श्रीकृष्ण जन्मभूमि, श्री द्वारिकाधीश और बिहारीजी मंदिर की होली।
16 मार्चः गोकुल की छड़ी मार होली।
18 मार्चः फालेन में धधकती आग से निकलेगा पंडा।
19 मार्चः दुल्हंडी।
20 मार्चः नंदगांव, जाब और दाऊजी में हुरंगा।
20 मार्चः चरकुला नृत्य मुखराई।
21 मार्चः गिडोह तथा बठैन में हुरंगा।
होली की रात एक बार फिर ’यहां जीवंत होगी प्रहलाद लीला’
- धधकते अंगारों से निकलने के लिए तप पर बैठा पंडा
- धधकते अंगारो से तीसरी बार निकलेंगे मोनू पंडा
मथुरा। ब्रज की होली में जहां उल्लास है, वहीं बहुत कुछ अद्भुत और अविश्वस्नीय है। जब तक आखों से न देख लें विश्वास होता नहीं। फालैनी की धधकती होली के बीच से प्रहलाद रूपी पण्डा का निकलना भी उन्हीं घटनाओं में से एक है। हर वर्ष कोसीकलां के शेरगढ़ रोड स्थित गांव फालैन में होती है। गांव फालैन में होली पर एक पंडा धधकते हुए अंगारों पर चलता है। इस बार भी मोनू पंडा धधकते अंगारों से निकलेगा। प्रहलाद नगरी फालैन में मोनू पंडा बुधवार को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद तप पर बैठें। बेहद कठोर नियमों का पालन करते हुए एक माह तक पंडा घर नहीं जाएंगे। वह मंदिर पर रहकर अन्न का त्याग कर तप करेंगे। होलिका वाले दिन लग्न के अनुसार पंडा धधकती होलिका से होकर गुजरेंगे। जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव है, जिसे प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है।
मान्यता है कि गांव के निकट ही साधु तप कर रहे थे। उन्हें स्वप्न में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने की बात बताई। इस पर गांव के कौशिक परिवारों ने खोदाई कराई। इसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। प्रसन्न होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया। मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड का निर्माण हुआ। तब से आज तक प्रहलाद लीला को साकार करने के लिए फालैन गांव में आसपास के पांच गांवों की होली रखी जाती है। फालैन को प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। गांव का पंडा परिवार प्रहलाद लीला की जीवंत किए हैं।
मान्यता है कि प्रहलाद के अग्नि से सकुशल बच निकलने की खुशी में गांव के लोग होली खेलते हैं। जलती होली के मध्य से गुजरकर उस परंपरा और क्षण को लोग याद करते हैं। जब प्रहलाद को लेकर बुआ ने अग्नि में प्रवेश किया था। गांव के पंडित भगवान सहाय ने बताया कि बताया कि गांव में पंडा समुदाय के 10 से 15 परिवार रहते हैं। इनमें से करीब 20 परिवार के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं। वसंत पंचमी पर ब्रज में होली का डांडा गड़ने के साथ ही इस लीला की तैयारी शुरू हो जाती है। इन 15 घरों के बुजुर्ग आपस में बैठक करते है। बैठक के दौरान तय किया जाता है कि इस बार धधकती आग में कौन निकलेगा। स्वेच्छा से लोग अपना नाम रखते हैं। वर्ष 2021 में मोनू पंडा ने ये भूमिका निभाई थी। एक बार नाम तय होने के बाद वसंत पंचमी के बाद आने वाली पूर्णिमा को चयनित किए पंडा को एक माला दी जाती है। इस माला को लेकर चयनित किया गया पंडा उसी माला को लेकर गांव में स्थित प्रहलाद मंदिर पर माला लेकर भजन पूजा के लिए बैठ जाता है। यह भजन पूजा होली तक चलती है। इस बार धधकती आग से निकलने की प्रथा को मोनू पंडा निभाएंगे। गांव के लोगों के अनुसार, मोनू पंडा आज से जप पर प्रहलाद मंदिर में बैठ जाएंगे। मोनू पंडा ने एक माह तक मंदिर मे अखंड ज्योति के पास बैठकर जप करेंगे। एक माह तक जमीन पर सोएंगे और केवल फलाहार करेंगे।