साल 2024 में 17 सितंबर 2024 से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है. इस दौरान जानवरों को भोजन करवाने का विशेष महत्व है. वहीं पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराना पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, कौआ यमराज का दूत होता है और उसे पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है।
जब पितृ पक्ष के दौरान कौए को भोजन कराया जाता है, तो यह संकेत माना जाता है कि पितरों की आत्मा को शांति और संतुष्टि मिली है. वहीं अगर आपको कौए नहीं मिल रहें है तो आप इन जानवरों को भी भोजन करवा सकते हैं।
गाय या कुत्ते को करवाएं भोजन
पंडितों का कहना है कि पितृ पक्ष के दौरान अगर आपको कौआ नहीं मिल रहा है तो आप गाय या कुत्ते को भी खाना खिला सकते है. पितृ पक्ष में गाय और कुत्ते को भोजन कराना धार्मिक परंपराओं में विशेष महत्व रखता है. गाय को माता का दर्जा प्राप्त है और उसे पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पितृ पक्ष में गाय को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. वहीं, कुत्ते को यमराज और भगवान भैरव का वाहन माना जाता है. कुत्ते को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और भैरव देवता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह कर्म पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
जानवरों को खिलाने का महत्व
माना जाता है पितरों का प्रतीक पितृ पक्ष के दौरान कौवे को भोजन करने का विशेष महत्व हाेता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवा यम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस दौरान कौवे का होना पितरों के आस पास होने का संकेत माना जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पूरे 15 दिन कौवे को भोजन करना चाहिए। बताया जाता है कि पितृ पक्ष में कौआ को खाना खिलाने की प्रथा पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं में गहराई से निहित है. एक कथा के अनुसार, जब पांडवों के पूर्वजों ने उन्हें श्राद्ध करने का निर्देश दिया, तो युधिष्ठिर ने पूछा कि कैसे वे अपने पितरों को भोजन पहुंचा सकते हैं. तब उन्हें बताया गया कि यदि कौआ भोजन ग्रहण करता है, तो पितर तृप्त होते हैं. कौआ को भोजन देने का एक और कारण यह भी है कि यह धरती और आकाश के बीच संदेशवाहक की भूमिका निभाता है, जिससे पूर्वजों की आत्मा तक श्राद्ध का भोजन पहुंचता है।