- अखिलेश यादव विपक्ष के सबसे मजबूत चेहरे के रूप में आए सामने
- क्या 2022 में वाकई पलट जाएगी सत्ता की दिशा?
भारतीय जनता पार्टी में आपसी कलह और मतभेदों के कारण हो रही टूट-फूट से समाजवादी पार्टी को कुछ ज्यादा ही फायदा हो रहा है। अखिलेश यादव कब बेबाक रवैया और विपक्ष में कोई दमदार चेहरा ना होने की वजह से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खड़े होने वालों को समाजवादी पार्टी ही एक विकल्प के रूप में दिखाई दे रही है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट का हिस्सा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी के इस्तीफे के बाद भारतीय जनता पार्टी के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही है। चुनावी पंडितों की माने तो 2022 में किसान फैक्टर और आपसी कलह को जोड़ दे तो भारतीय जनता पार्टी को भारी नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्विटर के जरिए भाजपा के तीनों ‘बागी’ मंत्रियों का अपनी पार्टी में स्वागत किया है। इन तीनों पूर्व मंत्रियों के लिए ट्वीट में सम्मान के भाव थे। अखिलेश ने अपने संदेश में “सामाजिक न्याय” की बात कही है।
2014 के लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश में बाद के चुनावों के दौरान समाजवादी पार्टी के गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं और बसपा से गैर-जाटव दलित वोटों को काटने में भाजपा को कई साल लगे। इसमें सबसे अधिक मदद मोदी लहर से मिली। बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।
कुल मिलाकर 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी दर्जनों मंत्री, विधायक एवं सांसदों के लिए पनागर के रूप में सामने आ रही है और ऐसे में यह संदेश साफ है कि भारतीय जनता पार्टी में आपसी कलह चरम पर है। देखना यह होगा कि 2022 में चुनावी नतीजे किस करवट बैठेंगे।