Kavi Satyapal Satyam: गीत चांदनी में पढे गीत सन 2009में l
(इन गीतों में कौन छुपा हैं )
लौ लगी है लौ, तुम्हारे नाम की
इसको सीता राम की बोलूं या राधेश्याम की
पहले जैसा अब नही कुछ द्वन्द है
महकता वातावरण चौबन्द है
ध्यान में झरता हुआ मकरन्द है
मेरे जीवन में परम आनंद है
इक सुलगते दिन को छाया ,मिल गई हैं शाम की
इसको सीता
भाल की आभा प्रखर होने लगी है
भावना प्रतिपल मुखर होने लगी है
इक हंसी होठों पे हरदम आजकल है
इतना सुख है आंख तर होने लगी है
जिन्द्गी अब से न पहले थी किसी भी काम की l
इसको सीता
ईश के आशीष मेरे सर रहे हैं
देवता पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं
हर तरफ़ से नेह के संदेश आये
गणपति अवरोध मेरा हर रहे हैं
आ गयी गति मेरे कदमो में पुन: अविराम की
इसको सीता
इक छवि आंखों में बस गई शारदा सी
मन मेरा संपूर्ण. मंदिर हो गया है
हर तरफ़ संगीत की स्वर लहरियां हैं
गीत का संसार ये घर हो गया है
भावना फिर जग उठी है आजकल निष्का म की l,
इसको सीता !
2, मेघ पहली बार जब झरे वृक्ष सब निखर निखर गए !
3, हो गए संपन्न सब उपवास नभ में चांद निकला !
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