होली का नजारा होता है बेहद अलग
पौराणिक मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी से बाबा विश्वनाथ के वैवाहिक कार्यक्रम का जो सिलसिला शुरू होता है वह होली तक चलता है। वसंत पंचमी पर बाबा का तिलकोत्सव मनाया जाता है तो महाशिवरात्रि पर विवाह।रंगभरी एकादशी पर गौरा की विदाई होती है। इसके अगले ही दिन बाबा अपने अड़भंगी बारातियों के साथ महाश्मशान पर दिगंबर रूप में होली खेलते हैं।
दर्शकों का लगता है हुजूम
मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से ‘मसाने की होली’ होली खेलने की परंपरा का निर्वाह पौराणिक काल में संन्यासी और गृहस्थ मिलकर करते थे। कालांतर में यह प्रथा लुप्त हो गई थी। करीब 25 साल पहले मणिकर्णिका मोहल्ले के लोगों और श्मशानेश्वर महादेव मंदिर प्रबंधन परिवार के सदस्यों ने इस परंपरा की फिर से शुरुआत की तो देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग इसे देखने पहुंचते हैं।
श्मशानेश्वर महादेव मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर के अनुसार 18 मार्च की दोपहर ठीक 12 बजे मणिकर्णिका घाट स्थित मंदिर में महाआरती होगी। इसके बाद जलती चिताओं के बीच काशी के 51 संगीतकार अपने-अपने वाद्ययंत्रों की झंकार करेंगे। चिता भस्म से होली खेलने का दौर शाम तक चलेगा।