पोस्ट कोविड इससे जुड़े अल्प और दीर्घकालिक जोखिमों के बारे में हमारी समझ तेजी से स्पष्ट हो रही है। अधिकांश लोग किसी न किसी समय पर इसके हल्के या गंभीर संक्रमण में आए ही थे. ऐसा कई अध्ययनों से संकेत मिला है कि जिन लोगों ने इसके गंभीर रूपों का अनुभव किया, उनके हृदय में सूजन की संभावना भी है जो इलाज योग्य से लगायत गंभीर भी हो सकता है।
ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन ने भी 22 जनवरी, 2024 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें यूके और दुनिया भर के कई अन्य देशों में हृदय रोग से होने वाली मौतों में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया। बकौल ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन, इंग्लैंड में हृदय और संचार रोगों से 75 वर्ष की आयु से पहले मरने वाले लोगों की संख्या एक दशक से अधिक समय में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
जोखिम की इस संभावना को महामारी के शुरुआती दो वर्षों, मार्च 2020 से मार्च 2022 के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों से भी बल मिलता है। इस अवधि के दौरान, अमेरिका में हृदय रोग से होने वाली मौतों की संख्या में भी वृद्धि हुई, जो अपेक्षित आंकड़ों से भी लगभग 90,000 से पार थी। हालांकि साधारणतया बुजुर्ग सबसे अधिक जोखिम में माने जाते हैं, लेकिन इस दौरान युवाओं में हृदय संबंधी मौतों में भी वृद्धि पाई गई। एक अध्ययन से यह भी पता चला कि दिल के दौरे से होने वाली मौतों में सबसे अधिक वृद्धि 25 से 44 वर्ष के आयु वर्ग में हुई जो काफी चौंकाने वाली है।
भारत से भी लगभग ऐसी ही खबरें आ रहीं हैं और अक्सर हम देखते हैं कोई युवा है लेकिन दिल के दौरे से उसकी जान जा रही है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अहमदाबाद में ही हृदय संबंधी घटनाओं में 28 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। उनमें आधे मरीज़ 50 वर्ष से कम उम्र के थे, जबकि 25 फीसदी 21-40 वर्ष की आयु वर्ग के। यह डेटा कोविड के बाद संभावित दीर्घकालिक हृदय संबंधी प्रभावों को समझने और संबोधित करने के आवश्यकता एवं महत्त्व को रेखांकित करता है।
इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय अध्ययन स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय द्वारा किया गया जो यूरोपियन जर्नल ऑफ हार्ट फेल्योर (ऑनलाइन अक्टूबर 2023) में प्रकाशित हुआ । हालाँकि यह अध्ययन उन व्यक्तियों पर ही केंद्रित था जिन्हें अपना पहला बूस्टर टीका मिला था, लेकिन इसके निष्कर्ष गौर करने लायक हैं। अध्ययन में 777 अस्पताल कर्मचारियों की जांच में 2.8 प्रतिशत पर पता चला कि हृदय में सूजन या हृदय कोशिका में क्षति है ।
यह आंकड़ा पूर्व में दूसरे टीके की खुराक के बाद किये गए अध्ययन में ऑब्जर्व की गई दर 0.0035 प्रतिशत से काफी अधिक मतलब लगभग 800 गुना है। चिकित्सा क्षेत्र में पूर्व के मान्य स्तर से इतना बड़ा विचलन चिंता का कारण है और इसे गौर किया जाना चाहिये।
जो बात इन दोनों अध्ययनों को अलग करती है वह यह है कि नए अध्ययन में उन सभी व्यक्तियों की जांच की गई जिनमें लक्षण दिखे हों या नहीं दिखें हों, जबकि पुराने अध्ययन में सिर्फ वो थे जिन्होंने ह्रदय समस्या से सम्बंधित लक्षणों का अनुभव किया था और उन्हें औपचारिक निदान के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मतलब अलाक्षणिक हृदय समस्या वाले लोग उस समय इस आंकड़े में शामिल नहीं थे. इसमें ऐसे लोग भी थे जिन लोगों को हृदय संबंधी समस्याओं का अनुभव हुआ, लेकिन उनके हृदय मॉनिटर (ईसीजी) पर कोई लक्षण या असामान्यताएं प्रदर्शित नहीं हुईं, इसकी जगह उनके रक्त में हार्ट इंजरी को दर्शाने वाले कार्डियक ट्रोपोनिन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया। लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि इस नए अध्ययन में सभी मामले हल्के और अस्थायी ही थे, फिर भी दीर्घकालिक प्रभाव जो अनिश्चित है, का जोखिम तो है ही।
इसमें चिंता की बात है हृदय में सूजन का पाया जाना और कई बार इसका साइलेंट रहना। हृदय की सूजन अनियमित दिल की धड़कन, हार्ट फेल, या हृदय के ऊतकों को नुकसान जैसी जटिलताओं को जन्म दे सकती है। इस कारण इसकी वजह कहीं टीका या हृदय के ऊतकों के साथ परस्पर क्रिया करने वाले एंटीबॉडी, या टीके में स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने वाले एंटीबॉडी से जुड़ा हो सकने जैसे संभावनाओं पर चर्चा छिड़ गई है, जो अक्सर हार्ट इंजरी का कारण बनता है, विशेष रूप से पेरीकार्डिटिस और मायोकार्डिटिस रोग।
हालाँकि, यह चिंताजनक है कि कुछ देशों ने इस विषय पर जाँच रोक दी है लेकिन इस प्रकार के अनियमित दिल की धड़कन और कोविड-19 या वैक्सीन से संबंधित मायोकार्डियल इंजरी से जुड़े हार्ट फेल के दीर्घकालिक जोखिमों का आकलन करने के लिए आगे शोध होना चाहिए ताकि भ्रम की जगह असली और अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचा सके और लोगों की जान बचाई जा सके।
इस अध्ययन में यह भी बताया गया कि कैसे हृदय की सूजन हार्ट फेल का कारण बन सकती है और कुछ सूजन जो स्पष्ट लक्षणों के बिना होते हैं, वह भी रोगियों को प्रभावित कर सकते हैं। अनजान होने के कारण इलाज से छूट जाने पर यह गंभीर हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता हैं। इसे स्वास्थ्य अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों द्वारा गहन दृष्टि से पहचानने की जरुरत है। लोगों को इस संभावित समस्याओं के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और सुरक्षा के तौर पर अत्यधिक परिश्रम या कसरत से बचने की सलाह दी जानी चाहिए। किसी भी हृदय संबंधी लक्षण की निगरानी करना और असुविधा के मामले में चिकित्सा सहायता लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नये अध्ययन में रक्त नमूनों का संग्रह, 14 सूजन मार्करों, उच्च-संवेदनशीलता कार्डियक ट्रोपोनिन और एंटीबॉडी की जांच शामिल थी। इस अध्ययन में एक उच्च-संवेदनशीलता कार्डियक ट्रोपोनिन परीक्षण को नियोजित किया गया था, जो ईसीजी या लक्षण अवलोकन जैसे तरीकों की तुलना में अधिक संवेदनशील है। यह परीक्षण किसी भी लक्षणों के ना दिखने के बावजूद भी हृदय की समस्याओं का पता लगा सकता है। इस नियंत्रण समूह में, उच्च-संवेदनशीलता ट्रोपोनिन का स्तर 3 नैनोग्राम प्रति लीटर मापा गया। इसके विपरीत, हार्ट इंजरी वाले रोगियों में ये स्तर 5 नैनोग्राम प्रति लीटर तक बढ़ गया था। गंभीर हार्ट इंजरी वाले लोगों के लिए यह स्तर 17 नैनोग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया।
इनमें से अधिकांश मार्करों ने दो समूहों के बीच स्थिरता प्रदर्शित की हालाँकि हार्ट इंजरी वाले समूह में दो मार्कर इंटरफेरॉन लैम्ब्डा और जीएमसीएसएफ विशेष रूप से कम पाये गये। इंटरफेरॉन लैम्ब्डा, सूजन को कम करने एवं हार्ट इंजरी को ठीक करने में अपनी भूमिका के लिए पहचाना जाता है और जब यह कम है तो सूजन का खतरा बढ़ जाता है और हार्ट ऊतक की क्षति या हार्ट इंजरी का खतरा बढ़ जाता है।
मेरे विश्लेषण के संकेत हैं कि यह सूजन अनियमित हृदय गति जिसे कहते हैं और हृदय विफलता जिसे कार्डियक अरेस्ट कहते हैं, का कारण बन सकती है। सूजन के कारण स्कार ऊतक का निर्माण सामान्य हृदय गतिविधि में भी हस्तक्षेप कर सकता है जिससे अनियमितता का खतरा और बढ़ जाता है और यदि इसकी पुनरावृत्ति हो तो हार्ट फेल और कार्डियक अरेस्ट हो सकता है।
हृदय स्वास्थ्य पर इस सूजन के प्रभाव को समझना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, हमारी इलाज क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इंटरफेरॉन लैम्ब्डा जैसे नवीन मार्करों का समावेश आवश्यक है। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह किसी को भी हो सकता हैं चाहे वे रोगी हों स्वस्थ व्यक्ति हों इसलिए अपने शरीर को अत्यधिक तनाव, तीव्र शारीरिक व्यायाम या अनुचित जोखिम से बचाना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग को अनिश्चित दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में जागरूक करना चाहिए जो अनियमित दिल की धड़कन, हार्ट फेल या स्थायी क्षति के रूप में हो सकते हैं।
-प्रो. (डॉ) राम शंकर उपाध्याय