Scientific Reasons for Diwali: महावीर का निर्वाण हुआ हमने दिए जलाए, राम अयोध्या वापिस आये हमने दिए जलाए,लक्ष्मी जी प्रकट हुई हमने दिए जलाए,दयानन्द सरस्वती का निर्वाण हुआ हमने दिए जलाए,आखिर हमने दिए ही क्यों जलाए, महावीर को राम को दयानन्द सरस्वती को, लक्ष्मी को हम जिनके नाम का दिया जलाते हैं हमारे दियों से उन्हें आखिर क्या मतलब है? हम में से कोई नही जानता ।बस जला रहे हैं एक परम्परा बना ली है। कोई कोई दिए के स्थान पर मोमबत्ती जला रहा तो कोई बिजली के बल्ब,लड़ी आदि।
एक परम्परा का निर्वहन हो रहा है।क्यों कर रहे हैं सब अनजान हैं।एक दिन कोई विधर्मी आएगा हमारी परंपरा को गलत सिध्द कर देगा,इसलिये सिध्द कर देगा क्योंकि हमारे पास इसका कोई जवाब है ही नही।हम उसकी बातों में आएंगे अपने बड़ों को मूर्ख बताएंगे,और परम्परा से मुँह मोड़ लेंगे।कोई हमे मूर्ख सिध्द करे,हमारी परंपरा को गलत सिध्द करे हमे अपनी परम्परा को जानना चाहिये कि हम ऐसा क्यों कर रहे हैं।हमे जान लेना चाहिये कि जो दिए हम जला रहे हैं चाहे जिसके नाम का जलाए मगर महत्व उस दिए का ही है ,उस महत्व को जाने।
दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व दरिद्रता को दूर करने वाला माना जाता है। दीपक जलाने का कारण यह है कि हम अज्ञान का अंधकार मिटाकर अपने जीवन में ज्ञान के प्रकाश के लिए पुरुषार्थ करें। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय दीपक लगाना अनिवार्य माना गया है। आमतौर पर विषम संख्या में दीप प्रज्जवलित करने की परंपरा चली आ रही है। घी का दीपक लगाने से घर में सुख समृद्धि आती है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई रूप से निवास होता है। घी को पंचामृत यानी पांच अमृतों में से एक माना गया है। किसी भी सात्विक पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए घी का दीपक और तामसिक यानी तांत्रिक पूजा को सफल बनाने के लिए तेल का दीपक लगाया जाता है।
Scientific Reasons for Diwali: वैज्ञानिक कारण
दिवाली के दिन दिये जलाने के वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल, ये वो समय है जब मौसम में बदलाव होता है। वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है। कहा जाता है कि मौसम बदलने से मच्छरों का प्रकोप एका एक बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दिये जलने से मच्छर उस ओर आकर्षित होते हैं और दिये की ओर जाते हैं और दिये से जलकर मर जाते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दिन दिये जलाना शुभ माना जाता है।
दीपावलीका त्योहार कार्तिक मास की अमावश्या को मनाया जाता है।वर्षा ऋतु के कारण हमारे रहने के स्थान पर सूक्ष्म जीवों के साथ साथ बड़े जीव भी इन स्थानों पर पैदा हो जाते हैं जो कि मनुष्य जाति के लिये खतरा बन जाते हैं।अतः शरद ऋतु के आगमन पर हम अपने घर की साफ सफाई व रँगाई पुताई कर इन जीवों के पनपने के स्थान को समाप्त करते हैं।स्थूल जीव तो साफ सफाई से समाप्त हो जाते हैं परंतु सूक्ष्म जीव वायु मण्डल में फैल जाते हैं,जिन्हें केवल अग्नि द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।
चूंकि जीव सम्पूर्ण वायुमण्डल में फैल जाते हैं तो उन्हें समाप्त करने के लिये ज्यादा अग्नि की जरूरत पड़ती है और सम्पूर्ण जगह जरूरत पड़ती है तो हमारे बड़े बुजुर्गों ने इस पर चिंतन करते हुए धार्मिक आस्था से जोड़कर कार्तिक मास की अमावस की दिन निश्चित किया कि इस दिन सामूहिक रूप से अपने रहने के स्थान पर प्रत्येक जगह दीप प्रज्वलित करें जिससे वायुमण्डल में एक साथ उन हानिकारक सूक्ष्म जीवों पर हमला किया जा सके।इसीलिये दीपावली के दिन घ,दफ्तर,दुकान आदि के कोने कोने में दीप प्रज्विलित किया जाता है ताकि सूक्ष्म जीव कहीं भी छिप न सके।
इन हानिकारक सूक्ष्म जीवों को सामूहिक प्रयास से ही समाप्त किया जा सकता है इसलिये सामूहिक रूप से दीप प्रज्वलन का दिन और समय निश्चित किया गया।
अब इस अवसर पर मिष्ठान वितरण क्यूँ।ये भी वैज्ञानिक कारण है।शरद ऋतु के आगमन पर घर आदि की साफ सफाई से गन्दे धूल के कण वायुमण्डल में फैलते है जो कि स्वास के साथ हमारे शरीर मे जाते हैं।धूल के कण की शरीर से सफाई करने के लिये मीठा सबसे सरल उपाय है।
मीठी वस्तु के साथ चिपककर ये कण मल के साथ शरीर से बाहर आ जाते हैं।और शरीर को निरोगता प्रदान करते हैं।तथा साथ ही मौसम परिवर्तन के कारण इस समय रक्त गाढ़ा होने प्रारंभ हो जाता है ।जिससे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और शरीर को ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है जिसके पूर्ति मीठे से बड़ी आसानी से हो जाती है ।इसलिये इस अवसर पर मिष्ठान वितरण की परंपरा विकसित की गई ताकि प्रत्येक व्यक्ति को निरोगता प्रदान की जा सके।
हमारे बड़े बुजुर्गों की प्रत्येक परम्परा में सामाजिक, धार्मिक एवं वैज्ञानिक सोच का समावेश रहा है।