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तो अब भाजपा हो रही है कांग्रेसमय, ये संकेत क्या कहते हैं?

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भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार अपने भाषणों में कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का जिक्र करते रहे हैं। इसके साथ ही सन् 2014 में केंद्र भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से लेकर देश की सबसे पुरानी पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं में जिस तरह से कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है, उससे लगता है कि कांग्रेस मुक्त भारत का राग अलापने वाली भाजपा कहीं खुद ही तो कांग्रेस युक्त नहीं होती जा रही है।

हाल ही में कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका उस वक्त लगा, जब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। 12 फरवरी, 2024 को उन्होंने भोकर विधानसभा क्षेत्र से विधायक के रूप में अपना इस्तीफा दे दिया। इसके अगले दिन यानी 13 फरवरी को चव्हाण उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए। उधर 14 फरवरी को ही भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में होने वाले आगामी राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया।

यदि कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की बात करें तो 2021 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट सामने आई थी। यह रिपोर्ट 1,133 चुनावी उम्मीदवारों और 500 सांसदों और विधायकों के शपथ पत्रों के आधार पर बनाई गई थी। ये वो नेता थे जिन्होंने 2014 के बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान दलबदल कर चुनाव लड़ा था।

इसके अनुसार सन् 2014 के बाद से कांग्रेस के नेताओं ने सबसे ज्यादा दलबदल किया है। इसका फायदा नरेंद्र मोदी के देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भाजपा को सबसे ज्यादा हुआ। उस वक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि कुल दलबदल में से, लगभग 35 फीसदी विधायकों और सांसदों ने 2014-2021 के बीच कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। रिपोर्ट में कहा गया था कि दलबदल करने वाले लगभग 35 फीसदी विधायक भाजपा में शामिल हो गए।

कांग्रेस के 20 प्रतिशत चुनावी उम्मीदवारों ने पार्टी छोड़ी। रिपोर्ट में कहा गया था कि 2014-2021 के बीच कांग्रेस पार्टी से कुल 399 नेता पाला बदलकर दूसरी सियासी पार्टियों में शामिल हो गए। 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कई छोटे-छोटे नेताओं के अलावा, कांग्रेस ने कई बड़े नेताओं ने भी पार्टी को अलविदा कहा है।

2014 लोकसभा चुनाव की बात करते हैं। उस वक्त चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह, जगदंबिका पाल, डी पुरंदेश्वरी, कृष्णा तीरथ समेत ढेर सारे कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल हुए थे। इसमें से कई नेताओं को मंत्री पद भी हासिल हुआ।
हालांकि, 2019 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा दोबारा सत्ता में आई तो कांग्रेस की स्थिति और बिगड़ गई। एक-एक करके कई दिग्गज और उभरते चेहरों ने पार्टी छोड़ दी।

एन. बीरेन सिंह

मार्च 2017 मेंपूर्वोत्तर के मणिपुर में एन बीरेन सिंह के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही पहली बार भाजपा की सरकार बन गई है। दिलचस्प बात यह है कि बीरेन कांग्रेस की अगुवाई वाली पिछली सरकार में मंत्री पद संभाल चुके थे। वे अक्‍टूबर, 2016 में ही कांग्रेस से इस्‍तीफा देकर भाजपा से जुड़े थे।

अल्पेश ठाकोर

कांग्रेस से विधायक रहे अल्पेश ठाकोर ने जुलाई 2019 में राज्यसभा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करने के बाद पार्टी छोड़ दी थी। कुछ दिनों बाद वह भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें राधापुर से उपचुनाव के लिए मैदान में उतारा गया, लेकिन वह चुनाव हार गए। हालांकि, साल 2022 में हुए चुनाव में उन्होंने गांधीनगर दक्षिण से जीत हासिल की थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया

दिग्गज कांग्रेस नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मार्च 2020 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। वो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उस दौरान मध्य प्रदेश में सिंधिया समर्थक कई विधायकों ने पाला बदला, जिससे कमलनाथ सरकार गिर गई थी। इस्तीफा देने से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और फिर भाजपा में शामिल हो गए। फिलहाल, सिंधिया नरेंद्र मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं।

जितिन प्रसाद

जितिन प्रसाद राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे। उन्होंने जून 2021 में कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद वो भी भाजपा में शामिल हो गए थे। उस दौरान वह यूपी में कांग्रेस के शीर्ष ब्राह्मण चेहरे थे। वह अभी योगी सरकार में मंत्री हैं।

आरपीएन सिंह

पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह जनवरी 2022 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी का साथ छोड़ा था। हाल ही भाजपा ने उन्हें राज्यसभा चुनाव के लिए यूपी से अपना उम्मीदवार बनाया है।

अश्विनी कुमार

पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले फरवरी 2022 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। अश्विनी कुमार यूपीए सरकार के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने कई वर्षों तक कांग्रेस के लिए काम करने के बाद इसे अलविदा कहा।

कैप्टन अमरिंदर सिंह

2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर अमृतसर सीट से चुनाव जीते कैप्टन अमरिंदर सिंह बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बनाए गए। दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे कैप्टन सिंह ने 18 सितंबर 2021 को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 19 सितंबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और साथ में उन्होंने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का भी भाजपा में विलय कर दिया।

परनीत कौर

पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर कांग्रेस की टिकट पर पटियाला से सांसद चुनाव जीती हैं। हालांकि कैप्टन के कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में शामिल होने के बाद से वे कांग्रेस के कार्यक्रमों में नहीं नजर आ रही। संभावना है कि वे जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकती हैं।

सुनील जाखड़

पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ ने मई 2022 में पार्टी छोड़ दी थी। जाखड़ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की आलोचना करने के लिए नेतृत्व द्वारा कारण बताओ नोटिस मिलने के बाद यह कदम उठाया था। बाद में जाखड़ भाजपा में शामिल हो गए। वहीं जुलाई 2023 में भाजपा ने उन्हें पंजाब इकाई का प्रमुख बना दिया।

हार्दिक पटेल

गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने मई 2022 में ही कांग्रेस छोड़ दी। राहुल गांधी हार्दिक को 2019 में पार्टी में लेकर आए थे। हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में लिखा था कि पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता अपने फोन में ही व्यस्त रहते हैं। त्याग पत्र देने के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे।

अनिल एंटनी

कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने जनवरी 2023 में पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी। वर्तमान में वह भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के साथ.साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं।

इससे पूर्व सन् 2017 में उत्तराखंड में कांग्रेसी रहे सतपाल महाराज, उनकी पत्नी अमृता रावत, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मंत्री हरकसिंह रावत, सुबोध उनियाल, प्रणव सिंह, केदार सिंह रावत, प्रदीप बत्रा, रेखा आर्य भाजपा में शामिल हो चुके हैं।

ऐसे ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में लंबे समय तक रहे पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, रीता बहुगुणा जोशी, अमरपाल त्यागी, धीरेंद्र सिंह, रवि किशन समेत कई अन्य नेता भाजपा में शामिल हो गए। इनमें से कई नेताओं को विधानसभा चुनाव में टिकट मिला और उन्होंने जीत भी हासिल की।

गोवा में विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस विधायक विजय पाई खोट, प्रवीण ज्यांते और पांडुरंग मदकाईकर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने इन सभी नेताओं को विधानसभा का टिकट भी दे दिया। इसे लेकर पार्टी को आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बनाने के फेर में इसे नजरअंदाज़ कर दिया गया।

अगर हम इससे पहले की बात करें तो अरुणाचल प्रदेश में 2014 में विधानसभा चुनाव होने के बाद 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 42 विधायक जीतकर आए थे। अब वहां भाजपा का शासन है। सत्तारूढ़ भाजपा के ज्यादातर विधायक कांग्रेस से आए हैं।

पेमा खांडू ने सितंबर, 2016 में कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल ज्वाइन की और फिर दिसंबर, 2016 में वे भाजपा में शामिल हुए। उनके पिता दोरजी खांडू कांग्रेस से प्रदेश से मुख्यमंत्री रहे चुके हैं। अब वे अरुणाचल में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं।

कुछ ऐसा ही हाल असम का भी है। असम भाजपा में कांग्रेस के हेमंत विश्वशर्मा, पल्लब लोचन दास, जयंत मल्ल बरुआ, पीयूष हजारिका, राजन बोरठाकुर, अबु ताहिर बेपारी, बिनादा सैकिया, बोलिन चेतिया, प्रदान बरुआ और कृपानाथ मल्ल जैसे नेता शामिल हुए हैं। हेमंत विश्वशर्मा वर्तमान में असम के मुख्यमंत्री हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता तथा कांग्रेस की लगातार गिरती साख के कारण तमाम नेता उससे नाता तोड़कर भाजपा ही नहीं अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं।

कपिल सिब्बल

कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल भी पार्टी छोड़ने वालों की सूची में शामिल हैं। सिब्बल ने मई 2022 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया था। बाद में वह समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतकर राज्यसभा पहुंचे।

गुलाम नबी आजाद

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने अगस्त 2022 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका था। बाद में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के नाम से अपना दल बना लिया।

मिलिंद देवड़ा

चुनावी साल 2024 भी कांग्रेस के लिए बुरी खबर लेकर आया। 14 जनवरी 2024 को महाराष्ट्र से दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह शिवसेना में शामिल हो गए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी का दामन थामा। कांग्रेस से आने वाले मिलिंद देवड़ा को शिवसेना ने राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है।

फिलहाल किसी समय ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का नारा देने वाली भाजपा हाईकमान मौजूदा समय में कांग्रेस मुक्त भारत’ के लिए इतना बेक़रार है कि उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा है कि इससे वर्षों से चुनाव के समय टिकट की आस लगाए पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर क्या असर पड़ रहा है।

लंबे समय तक भाजपा के थिंक टैंक माने जाते रहे कद्दावर नेता के एन गोविंदाचार्य ने कुछ वर्ष पहले कहा था कि, ‘राजनीतिक दल आज सत्ता पाने का गिरोह बन कर रह गए हैं। दल-बदल इसी कुत्सित संस्कृति का रूप है।’

भाजपा सदस्यता के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है, लेकिन जीत के लिए उसे कांग्रेस से नेता उधार लेने पड़ रहे हैं। यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा के लिए उतने तेज़ी से नेता नहीं तैयार कर पा रहा है, जितना कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के लिए ज़रूरी है।

फिलहाल अगर हम एक पार्टी के रूप में भाजपा पर इसके प्रभाव देखें तो इसका सबसे ज्यादा बुरा असर कार्यकर्ताओं पर पड़ता है। वे अपने आप को छला महसूस करता है। उन्हें लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के लिए मेहनत वो करें और दूसरी पार्टी से कोई भी नेता आकर चुनाव जीत जाएगा, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की कुर्सी भी पा लेगा।

हालांकि, इसके विपरीत संघ विचारक राकेश सिन्हा इससे अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं कि, ‘राजनीतिक दल के रूप में आप इतनी शुद्धता का पालन नहीं कर सकते हैं। दूसरी पार्टी से जो भी नेता हमारे दल में आते हैं, वो हमारे संगठन, हमारी विचारधारा में विश्वास जताते हैं। राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है। जनसंघ के जमाने में भी कांग्रेस छोड़कर कुछ नेता पार्टी में आए थे।’
फिलहाल, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों में अपनी पार्टी से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है।

हालांकि इससे चुनाव में टिकट की आस लगाए पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है, क्योंकि उन्हें इस बात का एहसास है कि कांग्रेस व अन्य दल छोड़कर भाजपा में आने वाले दिग्गज नेताओं को चुनाव में उनके मुकाबले आसानी से टिकट मिल जाएगा, जबकि वर्षों से पार्टी के लिए त्याग करने के बावजूद उन्हें निराशा हाथ लगेगी और उपेक्षा का दंश सहना पड़ेगा। इससे पार्टी के भीतर अंतर्कलह की आशंका भी नज़र आती है।

हालांकि, सियासत का लंबा अनुभव रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृहमंत्री बीते दस वर्षों से देश में अपनी दूरदर्शी नीतियों के सहारे देश में खासी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं और उन्होंने न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी भारत की गरिमामयी पहचान बनाई है। इसलिए इस बात का भी भरोसा है कि ये दोनों नेता पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को टूटने नहीं देंगे और इस समस्या का भी कोई न कोई सम्मानजनक हल ढूंढ़ ही लेंगे।

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News Desk

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