भाषा विवाद से राजनीति करने की चालबाजी है घातक

  • सियासी फायदे के लिए भाषा का विवाद देश की एकता के लिए घातक
  • महाराष्ट्र में उद्योग बंधुओ ने एक बार फिर शुरू की भाषा की राजनीति
    क्या सप्ताह में दोबारा लौटने की पटकथा लिख रहे हैं राज ठाकरे?

राजनीतिक दलों के एजेंडे में भाषा विवाद एक बार फिर हावी हो गया है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र में इसका असर अच्छा खासा दिखता है। भाषा की राजनीति देश की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक हो सकती है इसका ध्यान रखे बिना सिर्फ सियासी फायदे के लिए कईं दलों के नेता बयानबाजी कर इस मुद्दे को हवा देने पर तुले हुए हैं।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि वुछ कट्टरपंथी लोग हमें तमिलों के लिए तमिलनाडु में उचित जगह की मांग करने के अपराध के लिए अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी बताते हैं। उन्होंने कहा कि असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी हिंदी कट्टरपंथी हैं जो मानते हैं कि उनका अधिकार स्वाभाविक है और हमारा अधिकार देशद्रोह है।

दरअसल हिंदी थोपने का हौवा खड़ा करना राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले डीएमके के लिए मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार करना है। इसके लिए हिंदी को एक बार फिर राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे उत्तर बनाम दक्षिण की लड़ाईं को सुलगाया जा रहा है जिसके तहत नईं शिक्षा नीति के तीन भाषा फार्मूले को तमिलों पर हिंदी थोपने की कोशिश बताया जा रहा है। स्टालिन के बयान के उलट महाराष्ट्र में इस विवाद ने ज्यादा बड़ा रूप ले लिया।

अपने राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझते राज ठाकरे और बीएमसी चुनावों मे हारने के डर से परेशान उद्धव ठाकरे ने हाथ मिला लिया। इस जोड़ी ने महाराष्ट्र में भाषा विवाद को हवा दी जिसके बाद राज ठाकरे की पार्टी मनसे के कार्यकर्ताओं ने मराठी न बोलने वाले कुछ गैर मराठी लोगों के साथ मारपीट की। उम्मीद के मुताबिक इसकी प्रतिक्रिया भी हुई।

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मराठी विवाद के समर्थक नेताओं को उत्तर प्रदेश, बिहार में पटक-पटक कर पीटने की चेतावनी दी तो वहीं इसके जवाब में उद्धव ने इस तरह के बयान देने वाले नेताओं को लक्कड़बग्घा तक कह दिया। एक और भाजपा नेता और महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नीतेश राणे भी भाषा विवाद में कूद गए। उन्होंने गैर मराठी दुकानदार को पीटने वालों को चुनौती देते हुए कहा कि वह गोल टोपी वालों से मराठी बुलवाएं।

राणे ने कहा कि गरीब हिंदुओं को इसलिए मारा-पीटा जा रहा है कि वह मराठी नहीं बोलते। लेकिन दाढ़ी और गोल टोपी वाले लोगों को कोई कुछ नहीं कहता है। उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) और मनसे कार्यकर्ताओं को चुनौती देते हुए कहा कि अगर उनके अंदर हिम्मत है तो नल बाजार, मोहम्मद अली रोड पर लोगों से मराठी बुलवाकर दिखाएं।

उन्होंने पूछा कि वह वहां क्यों नहीं जाते। क्यों हमारे गरीब हिंदुओं को ही मारते हैं। आमिर खान, जावेद अख्तर मराठी में बोलते हैं क्या? इसलिए मालवाणी में जाइयें, वहां पर बोलकर, मारकर दिखाइये। इस बीच शिवसेना के संस्थापक स्व. बाल ठाकरे का एक पुराना वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह कह रहे हैं कि मैं महाराष्ट्र में मराठी हो सकता हूं लेकिन भारत में मैं हिंदू हूं। हमें भाषाई पहचान से ऊपर उठकर हिंदुत्व को अपनाना चाहिए। उनका यह बयान बेहद महत्वपूर्ण है। बॉलीवुड और व्रिकेट पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। तभी तो रांची में जन्मे महेंद्र सिंह धोनी चेन्नई सुपरकिग्स के हीरो हैं।

भाषाई विविधता भारत की ताकत है। जिन राजनेताओं के पास कोईं और बड़ा मुद्दा नहीं है वह तत्कालिक लाभ के लिए भाषा के मुद्दे की शरण में जाने का प्रयास कर रहे हैं। यह विवाद संविधान के भी खिलाफ है। यदि उत्तर प्रदेश, बिहार के प्रवासी श्रमिक महाराष्ट्र-तमिलनाडु में हैं तो तमिल और मराठी बोलने वाले लोग देश के दूसरे राज्यों में भी होंगे। क्या इस विवाद से देश की एकता कमजोर नहीं होगी।

बेहतर होगा कि भाषा के नाम पर होने वाली सस्ती राजनीति से बचने का प्रयास किया जाए और दूसरे राज्यों से रोजगार के लिए आए प्रवासी श्रमिकों को उदारता के साथ व्यवहार किया जाए, ताकि इसका लाभ संबंधित राज्यों के साथ-साथ पूरे देश को मिल सके।