What is Sultanpur famous for: Sultanpur is famous for its culture, traditional activities and simple living peoples.
सुंदर लाल मेमोरियल हॉल (Sunder Lal Memorial Hall)
सुंदर लाल मेमोरियल हॉल (Sunder Lal Memorial Hall) सुलतानपुर में स्थित क्राइस्ट चर्च के दक्षिणी दिशा की ओर स्थित है। वर्तमान समय में इसे विक्टोरिया मंजिल के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण महारानी विक्टोरिया की याद में उनकी पहली जयन्ती पर करवाया गया था। लेकिन अब इस जगह पर Sultanpur Municipal Board का कार्यालय है।
सीताकुंड घाट (Sitakund Ghat Sultanpur)
सीताकुंड घाट (Sitakund Ghat Sultanpur) की महत्ता बेहद प्रसिद्ध है। यह गोमती नदी के तट पर स्थित है। सीताकुंड घाट (Sitakund Ghat Sultanpur) पर चैत रामनवमी, माघ अमावस्या, गंगा दशहरा व कार्तिक पूर्णिमा को अत्यधिक संख्या में लोग स्नान करने आते हैं। इतिहास के अनुसार जब प्रभु श्रीराम वन वास जा रहे थे तो मा सीता के साथ यहां पर स्नान किया था। मान्यता है कि यहां स्नान करने वालों की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है। प्रत्येक रविवार को सीताकुंड घाट (Sitakund Ghat Sultanpur) पर आदि गंगा गोमती की भव्य आरती का भी आयोजन किया जाता है।
विजेथुवा महावीरन (Vijethua Mahaviran Sultanpur)
विजेथुवा महावीरन (Vijethua Mahaviran Sultanpur) की महिमा बेहद प्रभावशाली है और कहते हैं कि श्रीराम भक्त हनुमान जी की स्वयंभू प्रतिमा यहां विराजमान है। रामायण कालीन पवित्र स्थान होने की वजह से इसकी महत्ता पूरे देश के कोने-कोने में है।
इसी स्थान पर श्री हनुमान जी ने दशानन रावण के मामा कालनेमी नामक दानव का वध किया था। लक्ष्मण शक्ति के बाद जब हनुमान जी बूटी लेने जा रहे थे तो रावण द्वारा भेजे गए कालनेमी ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया था। उस समय हनुमान जी ने कालनेमी दानव का वध इसी स्थान पर किया था।
धोपाप धाम (Dhopap Dham Sultanpur)
धोपाप धाम (Dhopap Dham Sultanpur) का जाना माना स्थान है अगर आप सुल्तानपुर आते हैं और यहां नहीं जाते तो समझ लीजिये की आपने सुल्तानपुर को घूमने से चूक गये।
धोपाप धाम (Dhopap Dham Sultanpur) में भगवान श्रीराम ने लंकेश्वर रावण का वध करने के पश्चात महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार स्नान किया था। माना जाता है कि यहां स्नान करने वालों के पाप धुल जाते हैं और उनके मन को शांति मिलती है। दशहरे के दिन का स्नान मनुष्य के लिये बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर (Lohramau Maa Bhawani Mandir Sultanpur)
लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर (Lohramau Maa Bhawani Mandir Sultanpur) में नवरात्रि को लगने वाला मेला बेहद धार्मिक और मन का सकून देने वाला है। श्रद्धालुओं का ताता यह बताता है कि सुल्तानपुर के दर्शनीय स्थलों में से लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर (Lohramau Maa Bhawani Mandir Sultanpur) का विशेष स्थान है।
यह मंदिर लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग-56 पर स्थित है और शहर से 7 किलोमीटर की दूरी पर है। लोहरामऊ में सैकड़ों वर्षों से स्थापित मां दुर्गा का यह मन्दिर केवल आस-पास के जिलों में ही नही सूबे के कई अन्य जिलों में भी खासा मशहूर है। जीवन के पवित्र संस्कारों में से एक जनेऊ व मुंडन संस्कार के लिये यहां लोगों की खास भीड़ जमा होती है।
मान्यता है कि जब भी आप विध्यांचल जाते हैं तो उससे पहले लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर (Lohramau Maa Bhawani Mandir Sultanpur) में माथा टेकने जरूर जाना चाहिये वरना यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।
सावन के महीने में यहां दस दिनों तक जबरदस्त मेला लगता है लेकिन नवरात्र में यहां का नजारा कुछ अलग ही रहता है। यहां पर सुहाग का सान चढ़ाने का बेहद महत्वपूर्ण परंपरा है। मुख्य पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि यहां मां दुर्गा भवानी स्वयं साक्षत प्रकट हुई थीं। देवी मां के तीन रूपों का भी यहां दर्शन होता है।
लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर (Lohramau Maa Bhawani Mandir Sultanpur) में मां दुर्गा के दर्शन करने और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए सूबे के तमाम जिलों से पूरे नवरात्र भर श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है। महिलाओं में इसका विशेष महत्व है, उनकी हर छोटी से छोटी मनोकामना यहां पूरी होती है। नवरात्र के अंतिम दिन इस मंदिर पर खासी भीड़ जुटती है। पूरा दिन यहां यज्ञ और हवन होते रहते हैं। यहां आ कर लोग तमाम कर्मकांड कर अपने तन-मन में छुपे रोग, शोक, भय, आशंका और मनो-विकार दूर कर अपने को धन्य मानते हैं।
गढ़ा गांव (केशिपुत्र कलाम)
भगवान बुद्ध ने जिस जगह पर छ: माह का प्रवास किया वो जगह भी सुल्तानपुर में ही मौजूद है। यह तकरीबन सुल्तानपुर से करीब 15 किलोमीटर के फासले पर मौजूद है। यहां बौद्धकालीन दस गणराज्यों में से एक केशिपुत्र के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। कहते हैं कि यहां के शासक कलाम वंशीय क्षत्रियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी।
कहते हैं कि भगवान बुद्ध के समय में जब बुद्धवाद शिखर पर था तो केशिपुत्र उत्तर भारत के दस बौद्ध गणराज्यों में से एक था। यहां कलामवंशीय क्षत्रियों का शासन था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अभिलेख, बौद्ध सूत्र व स्थानीय परम्पराएं इसकी पुष्टि करते हैं। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक केशिपुत्र समृद्धिशाली नगर था। बौद्धग्रंथ “अंगुत्तर निकाय” व “कलाम सुत पिटक” के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहां छह माह तक प्रवास कर कलामवंशीय क्षत्रियों को उपदेश दिया था।
आज ये स्थल वर्तमान कुड़वार के गढ़ा गांव में आठ किलोमीटर के क्षेत्र में खंडहर के रूप में विद्यमान है। सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देश पर गढ़ा के नाम से विख्यात इस खंडहर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिग्रहीत कर लिया। खनन में बौद्धकाल की मूर्तियां, बर्तन आदि प्राप्त हुए जिससे स्थल की ऐतिहासिकता की पुष्टि हुई।
पारिजात वृक्ष (Parijat Vriksh Sultanpur)
पारिजात वृक्ष (Parijat Vriksh Sultanpur) शहर में गोमती नदी के तट पर मौजूद है, यह प्रमुख वृक्ष उद्योग विभाग के परिसर में विद्यमान है। पारिजात वृक्ष (Parijat Vriksh Sultanpur) प्रदेश में अकेला ऐसा वृक्ष है जहाँ लोग पूरी आस्था से मन्नते मांगते हैं और उनकी मनोकामनायें पूरी भी होती हैं।
पारिजात वृक्ष (Parijat Vriksh Sultanpur) पर युवा-वर्ग अपने प्रेम को पाने और शादी-शुदा महिलाएँ अपने सुहाग के लिए मन्नते मांगती हैं। यहां पर हर सोमवार वउ शुक्रवार को मेला लगता है। पारिजात वृक्ष (Parijat Vriksh Sultanpur) की आयु की ठी तरह से गणना कोई नहीं कर पाया किंतु लोग इसे हजारों वर्ष पुराना मानते हैं।
कोटव (Kotav Sultanpur)
सुल्तानपुर में कोटव (Kotav Sultanpur) जैसी धार्मिक जगह भी मौजूद है। यहां भगवान विष्णु का मंदिर है जहां भगवान शिव की सफेद संगमरमर से बनी खूबसूरत प्रतिमा स्थित है। कोटव (Kotav Sultanpur) में स्थित मंदिर के समीप पर ही एक खूबसूरत सरोवर स्थित है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर और अप्रैल माह में यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
करिया बझना (Kariya Bajhana Sultanpur)
करिया बझना (Kariya Bajhana Sultanpur) धाम सुलतानपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर कूरेभार विकास खंड में स्थित है। करिया बझना (Kariya Bajhana Sultanpur) धाम में करिया बाबा का एवं पवनपुत्र हनुमान जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। करिया बझना (Kariya Bajhana Sultanpur) में दूर दूर से लोग अपने बच्चों का मुण्डन संस्कार कराने आते हैं। यहाँ हलुवा पूरी का प्रसाद भी चढ़ाते हैं। करिया बाबा का प्रति वर्ष 6 भव्य मेले भी लगते हैं। 3 मेला जुलाई महीने में और 3 मेला दिसम्बर महीने में लगता है।
कोइरीपुर (Koiripur Sultanpur)
कोइरीपुर (Koiripur Sultanpur) में श्री हनुमान जी, भगवान शिव शंकर तथा प्रभु श्री राम और माता सीता के अनेकों मंदिर हैं जहां पर पूर्णिमा के अवसर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। यहां के इन मंदिरों का निर्माण स्थानीय लोगों ने मिलकर करवाया था।
सतथिन शरीफ (Satthin Sharif Sultanpur)
सतथिन शरीफ (Satthin Sharif Sultanpur) मुस्लिमों के लिये खास जगह है, हालाकि यहां पर प्रत्येक धर्म के लोग आते हैं। हर वर्ष यहां दस दिन के उर्स का आयोजन होता है।
कहते हैं कि शाह अब्दुल लातिफ और उनके समकालीन बाबा मदारी शाह उस समय के प्रसिद्ध फकीर थे। यहां गोमती नदी के तट पर शाह अब्दुल लातिफ की समाधि स्थित है। सतथिन शरीफ (Satthin Sharif Sultanpur) पर लोग श्रद्धााभाव से जाते हैं जहां लोग मन्नतों को भी मानते हैं।
गौरीशंकर धाम (GauriShankar Dham Chanda Sultanpur)
सुल्तानपुर में शाहपुर जंगल के बीच गोमती नदी के किनारे पर गौरीशंकर धाम (GauriShankar Dham Chanda Sultanpur) का प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है। यहाँ हर सोमवार को मेला लगता है जहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों की तादात में भक्तों का ताता लगता है।
बिलवाई सुल्तानपुर (Bilwai Sultanpur)
बिलवाई सुल्तानपुर (Bilwai Sultanpur) में स्थित है जहां पर भगवान शिव का भव्य मन्दिर है। कहते हैं कि वन जाते समय भगवान श्रीराम इसी स्थान पर बेल के जंगल में भगवान शिव जी का शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी।
बिलवाई सुल्तानपुर (Bilwai Sultanpur) में आज भी यहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर 3 दिन का भव्य मेला लगता है और खरमास के समय 1 महीने तक लोग यहां भगवान शिव के दर्शन को आते हैं।