Save India Foundation ने पेड़ों को बचाने के लिये शुरू किया अनोखा अभियान
आप सोच रहे होंगे कि ये लोग पेड़ों को गले लगाकर क्या कर रहे हैं? आखिर कड़ाके कि ठण्ड में जंगलों में इतने लोग एकसाथ क्या कर रहे हैं? तो हम बताते हैं…. ये लोग मेरठ लोक निर्माण विभाग की कारस्तानी पर पेड़ों से लिपटकर पश्चाताप कर रहे हैं।
दरअसल बात यह है कि, इन पेड़ों की वजह से मिलने वाले ऑक्सीजन को पीकर जिंदा रहने वाले अधिकारी… इन्हीं पेड़ों की बलि चढ़ाने का प्रस्ताव बना रहे हैं… इसलिये ये लोग कड़ाके की ठण्ड व बारिश की फुहारों के बीच भी जंगलों में विरोध जताने पहुंचे गये हैं। आपको चिपको आंदोलन (Chipko Andolan) तो याद ही होगा, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चूलें हिला कर रख दी थी, उसी आंदोलन को एकबार फिर से मेरठ में जिंदा कर दिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश (Lok Nirman Vibhag Uttar Pradesh) ने शासन को प्रस्ताव भेजा है कि मुरादनगर से उत्तराखंड के बार्डर तक नहर के किनारे सड़क बनाई जायेगी जिसके एवज में लगभग 70 हजार पेड़ों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी…. यानी उनको काट दिया जायेगा।
इस प्रस्ताव को सुनते ही सेव इंडिया फाउंडेशन (Save India Foundation) ने आंदोलन शुरू कर दिया। राजेश शर्मा ने चिपको आंदोलन को एक बार फिर जीवित करते हुये पेड़ों से चिपक कर अपना विरोध दर्ज कराया। इस आंदोलन में उनके साथ दर्जनों संगठनों के पदाधिकारियों ने सहयोग प्रदान किया। ये वो लोग हैं जो पर्यावरण पर आधारित संस्थाओं का संचालन करते हैं।
क्या है चिपको आंदोलन? || What is Chipko Andolan?
चिपको आंदोलन (Chipko Andolan) उत्तराखंड के चमेली जनपद में वर्ष 1970 से शुरू हुआ था, Chipko Andolan की वजह से उत्तराखंड में पेड़ों की कटाई पर लगाम लगी थी। वर्ष 1980 में इस आंदोलन को उस वक्त बड़ी जीत हासिल हुई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी।
फिर देखते ही देखते यह आन्दोलन (Chipko Andolan) देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच गया। चिपको आन्दोलन (Chipko Andolan) एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य में किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था, हांलाकि यह पहले उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था। आंदोलन के लोग राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परंपरागत अधिकार जता रहे थे।
अब देखना यह है कि सेव इंडिया फाउंडेशन (Save India Foundation) की यह पहल कितना कारगर होती है? क्या उत्तर प्रदेश के शासन तक इस आंदोलन की गूंज पहुंच पायेगी? क्या प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ लोक निर्माण विभाग मेरठ के इस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया देंगे?