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हरियाली तीज: झूला झूले बिना अधूरा है हरियाली तीज का व्रत

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हरियाली तीज: हरियाली तीज का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पति के लिए उपवास रखकर शिव-गौरी का पूजन-वंदन कर झूला झूलती है और सुरीले स्वर में सावन के गीत-मल्हार गाती हैं। पूजा-अर्चना के साथ उल्लास-उमंग का यह त्योहार एक पारंपरिक उत्सव के रूप में जीवन में नए रंग भरता है। हरियाली तीज का व्रत भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. विशेषकर महिलाओं के लिए यह पर्व न केवल पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है, बल्कि इसमें झूला झूलने की परंपरा भी विशेष महत्व रखती है. एक मान्यता यह भी है कि बिना झूला झूले यह व्रत अधूरा रहता है.

हरियाली तीज उत्तर भारत में मनाई जाती है और इसे प्रकृति के सौंदर्य के साथ जोड़ा जाता है. इस दिन महिलाएं सज-धज कर हरे कपड़े पहनकर गीत गाकर और झूला झूलकर इस पर्व को मनाती हैं. ज्योतिषाचार्य के अनुसार झूला झूलना हरियाली तीज का अभिन्न हिस्सा है. क्योंकि यह प्रकृति के साथ समरसता और प्रसन्नता का प्रतीक है. झूला झूलने से महिलाओं को एक विशेष आनंद की अनुभूति होती है, जो उनके व्रत की सफलता और सुख की कामना में सहायक होता है.

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत और उत्सव बिना झूला झूले अधूरा माना जाता है. यह न केवल एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी है. झूला झूलने से मन को शांति मिलती है और व्रत के दौरान ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है. इसलिए, हरियाली तीज पर झूला झूलना अनिवार्य माना जाता है.

हरियाली तीज का संबंध माता पार्वती और भगवान शिव की कथा से भी है. कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 107 जन्म लिए और हर जन्म में कठिन तपस्या की. यह तपस्या और भक्ति का प्रतीक है. 108वें जन्म में पार्वती ने कठिन तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया.

ज्योतिषाचार्य  बताते हैं कि पार्वती की यह कथा हमें धैर्य, समर्पण और भक्ति का महत्व सिखाती है. हरियाली तीज पर इस कथा का स्मरण करना और झूला झूलना दोनों ही व्रतधारी महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पर्व उनकी भक्ति और समर्पण को प्रदर्शित करता है.

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News Desk

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