हिंसाग्रस्त बांग्लादेश में जबरदस्त मानवाधिकार हनन की स्थिति बनी हुई है फिर भी संयुक्त राष्ट्र संघ के आनुषंगिक संगठन अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की किसी भी तरह सतर्कता सामने नहीं आई है।
देश की कट्टरपंथी संगठन जमायते इस्लामी और हिफाजते इस्लाम के समर्थक छात्र संगठनों ने पहले प्रधानमंत्री को देश से भगाया। फिर उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों और उनकी राजनीतिक पार्टी अवामी लीग के चुने हुए प्रतिनिधियों को गिरफ्तार किया और अब अल्पसंख्यक समुदाय यानि हिंदू, बौद्ध व ईंसाईं धर्म से संबंधित 49 अध्यापकों से त्यागपत्र मांग लिया गया है, ताकि उनके स्थान पर जमायते इस्लामी व हिफाजते इस्लाम के कार्यकर्ताओं की भर्ती की जा सके।
दरअसल बांग्लादेश में इन दिनों जो भी हिंसा और अराजकता का माहौल है उसके लिए पूरा वित्तपोषण और लाजिस्टिक सपोर्ट पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई कर रही है। इस कुख्यात खुफिया एजेंसी के काम करने का तरीका ही यही है कि पहले क्षेत्र को सांप्रदायिक करो फिर अपने मिशन को लागू करो। बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होकर कट्टरता को न अपनाने की बात आईएसआई के लिए शर्मिन्दगी की बात थी। इसीलिए उसने इस्लामिक संगठनों को रकम देकर सबसे पहले देश में सांप्रदायिकता की आग लगाईं और एक लोकतांत्रिक देश में यदि इस तरह की विघटनकारी प्रवृत्ति पैदा हो जाती है तो उसके पतन के लिए वह प्रवृत्ति पर्याप्त है।
आईंएसआईं ने यही हथकडा कश्मीर में भी अपनाया था। घाटी में सांप्रदायिकता की आग भड़काने के लिए जमायते इस्लामी ने काफी समय लिया। आईएसआई ने सबसे पहले घाटी में अलगाववाद संगठन तैयार कर दिया। आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस का गठन हुआ ही इसीलिए कि वह राज्य में कट्टरपंथी ताकतों का निर्माण और सक्रिय करेगी जो ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ मिशन को पूरा करेगा। अलगाववादी ताकतों ने राज्य की सत्ताधारी पार्टी से समझौता किया कि वह शिक्षक भर्ती में अलगाववादी संगठन की सिफारिश मानेंगे और वे इसके बदले में उन्हें चुनाव जीतने में मदद करेंगे। इस समझौते के तहत राज्य सरकारें समूची शिक्षा व्यवस्था का जमायते इस्लामीकरण कर दिया। बुरहान बानी के पिता अभी कुछ दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं, आसानी से कल्पना की जा सकती है कि उन्होंने शिक्षा के नाम पर छात्रों के मस्तिष्क को विषाक्त किया होगा।
बहरहाल आईएसआई के लिए जमीन तभी उपजाऊ होती है जब वह साम्प्रदायिक हिंसा से सींची गई हो। इसीलिए आईएसआई के गुर्गे जमायते इस्लामी और हिफाजते इस्लाम अपने कैडरों को स्कूलों में भर्ती कराना चाहते हैं ताकि वह अपने एजेन्डे के मुताबिक बांग्लादेश जनमानस में इस्लामिक सोच को भर सकें । आईंएसआईं जैसा खतरनाक संगठन ने अफगानिस्तान जैसे शांति प्रिय देश को अशांत करके कठमुल्ले तालिबानियों के हाथ सौंपने हेतु कई वर्षों तक कोशिश की और कामयाबी भी हासिल की। आईएसआई यह बात अच्छी तरह जानती है कि यदि बांग्लादेश को बांग्लास्तान बनाना है तो उसे सबसे पहले शिशुओं और किशोर छात्रों के मस्तिष्क में खुराफात भरी जाए। लेकिन यह काम तब तक आसान नहीं होगा जब तक कि अल्पसंख्यक शिक्षक होंगे। यही कारण है कि अल्पसंख्यक शिक्षकों को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य किया गया। संकटग्रस्त देश इस वक्त साम्प्रदायिकता के चपेट में है, इसलिए अभी बहुत वुछ होना बाकी है, इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से मौजूदा बांग्लादेश सरकार के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों में अपनी सरकार के प्रति भरोसा पैदा हो अन्यथा नौकरी जाने के बाद वह देश छोड़ने के लिए मजबूर होंगे ।