देश में नागरिकता संशोधन कानून यानि सिटीजन अमेण्डमेण्ट एक्ट (सीएए) लागू होने के बाद देश में एक बार फिर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश शुरू हो गई है, किन्तु केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को स्पष्टीकरण दिया कि नागरिकता कानून से देश के मुसलमानों की नागरिकता पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी साफ कह चुके हैं कि, ‘ये एंटी मुस्लिम नहीं है।’ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि, ‘इसका क्या तर्क है? ये एंटी मुस्लिम कैसे है… मुसलमानों पर इसलिए धार्मिक प्रताड़ना नहीं हो सकती, क्योंकि तीनों देश घोषित इस्लामिक स्टेट हैं… इस कानून में NRC का कोई प्रावधान नहीं है। इस कानून में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है।’ अमित शाह ने कहा कि, ‘CAA का मकसद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों समेत गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देना है। इन देशों से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए लोगों को CAA के तहत नागरिकता देने का प्रावधान है।’
दरअसल गृह मंत्रालय की ऐसी सफाई तो कई बार आ चुकी है। संसद में कानून पारित होने के पहले भी सरकार की तरफ से कई बार स्पष्टीकरण दिया गया कि सीएए से किसी मुसलमान की नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किन्तु कुछ लोग यह मानने को तैयार ही नहीं। असल में जानते तो मुस्लिम समाज के लोग भी हैं कि सीएए से उनकी नागरिकता पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है, किन्तु सियासी तिकड़म के जानकारों ने इसे बड़ी चालाकी से राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण यानि एनआरसी से जोड़ दिया। नागरिकता संशोधन कानून यानि सीएए जहां धर्म आधारित है, वहीं एनआरसी का धर्म से कोई संबंध नहीं है। हकीकत तो यह है कि इन बारीकियों को मुस्लिम समाज के वे लोग भी जानते हैं जो नागरिकता संशोधन कानून की खिलाफ़त कर रहे हैं और वे भी जानते हैं जो ऐसा करने के लिए उन्हें उकसा रहे हैं। किन्तु सियासी मजबूरी के मारे इन लोगों के लिए विरोध की सियासत जरूरी हो गई है। खास तौर पर लोकसभा चुनाव सन्निकट होने के कारण विपक्षी दलों के लिए इस कानून का विरोध सियासी मजबूरी बन चुका है,क्योंकि वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि भाजपा को इस कानून के लागू होने का चुनाव में सियासी फायदा मिलेगा।
अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी के बाद जो हालात उत्पन्न हुए, उसके बाद सीएए के कटु आलोचक भी समर्थक बन गए थे और वहां से वापस आए सिखों और हिन्दुओं की हालत देखकर सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन कानून की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। बहरहाल अब सीएए देश का कानून बन चुका है।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एक अलग कवायद होगी और हम यह नहीं कह सकते कि इसे कैसे लागू किया जाएगा क्योंकि यह वर्तमान परिदृश्य में भविष्य और राज्य की नीति का सवाल है न कि कानून का। और सीएए का एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि दोनों कानूनों का मकसद अलग-अलग है। एनआरसी का असम मॉडल पूरे भारत में लागू नहीं होगा, क्योंकि असम समझौता, 1985 ने केंद्र पर वुछ बाध्यकारी दायित्व निर्धारित किए थे। हालाँकि, यह अखिल भारतीय एनआरसी के लिए एक मिसाल नहीं होगी। इसलिए, मुसलमानों के लिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
इसलिए वक्त की मांग है कि हम सीएए की हकीकत को जानें, जो कठिन है। सीएए का मकसद धार्मिक उत्पीड़न से अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है। इसलिए, उचित वर्गीकरण विवेकपूर्ण अंतर के आधार पर किया जाता है जो न्यायसंगत और उचित है।