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प्रेम तो बुद्ध और कृष्ण जैसे लोगों के जीवन में होता है

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  • ओशो

प्रेमी को मनुष्य हमेशा से पागल कहता रहा है
और प्रेम को सदा से अंधा कहता रहा है
ठीक होगा कि प्रेम की जगह हम मोह का उपयोग करें
ठीक शब्द मोह है
मोह अंधा है, ब्लाइंड है
प्रेम बड़ी और बात है।
प्रेम को मोह के साथ एक कर लेने से गहरा, भारी नुकसान हुआ है
प्रेम एक बहुत ही और बात है
प्रेम तो उसी के जीवन में घटित होता है, जिसके जीवन में मोह नहीं होता
लेकिन हम प्रेम को ही मोह और मोह को प्रेम कहते रहे हैं
प्रेम तो बुद्ध और कृष्ण जैसे लोगों के जीवन में होता है
हमारे जीवन में प्रेम होता ही नहीं है
जिनके जीवन में मोह है, उनके जीवन में प्रेम नहीं हो सकता
क्योंकि मोह मांगता है, प्रेम देता है
बिलकुल अलग अवस्थाएं हैं
उनकी हम आगे थोड़ी बात कर सकेंगे
लेकिन मोह को समझने के लिए उपयोगी है।
प्रेम उस चित्त में फलित होता है, जिसमें कोई काम नहीं रह जाता, जिसमें कोई वासना नहीं रह जाती
क्योंकि दे वही सकता है, जो मांगता नहीं
वासना मांगती है
वासना कहती है, मिलना चाहिए, यह मिलना चाहिए, यह मिलना चाहिए
प्रेम कहता है, अब कोई मांग न रही, हम कोई भिखारी नहीं हैं
वासना भिखारी है, प्रेम सम्राट है
प्रेम कहता है, जो हमारे पास है, ले जाओ
जो हमारे पास है, ले जाओ; अब हमें तो कोई जरूरत न रही, अब हमारी कोई मांग न रही
अब तुम्हें जो भी लेना है, ले जाओ
प्रेम दान है
वासना भिक्षावृत्ति है, मांग है
इसलिए वासना में कलह है; प्रेम में कोई कलह नहीं है
ले जाओ तो ठीक, न ले जाओ तो ठीक
लेकिन मांगने वाला यह नहीं कह सकता कि दे दो तो ठीक, न दो तो ठीक
देने वाला कह सकता है कि ले जाओ तो ठीक, न ले जाओ तो ठीक
क्योंकि देने में कोई अंतर ही नहीं पड़ता, नहीं ले जाते, तो मत ले जाओ
मांग में अंतर पड़ता है
नहीं दोगे, तो प्राण छटपटाते हैं
क्योंकि फिर अधूरा रह जाएगा भीतर कुछ, पूरा नहीं हो पाएगा।
मोह पैदा होता है वासना की अंतिम कड़ी में, और प्रेम पैदा होता है निर्वासना की अंतिम कड़ी में
कहना चाहिए, जिस तरह मोह से स्मृति नष्ट होती है, उसी तरह से प्रेम से स्मृति पुष्ट होती है
मोह सीढ़ियों का नीचे उतरा हुआ सोपान है, पायदान है, जहां आदमी पागल होने के करीब पहुंचता है
प्रेम सीढ़ियों का ऊपरी पायदान है,
जहां आदमी विमुक्त होने के करीब पहुंचता है विक्षिप्त होने के करीब और विमुक्त होने के करीब
मोह के बाद विक्षिप्तता है, प्रेम के बाद विमुक्ति है।

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पत्रकारिता में बेदाग 11 वर्षों का सफर करने वाले युवा पत्रकार त्रिनाथ मिश्र ई-रेडियो इंडिया के एडिटर हैं। उन्होंने समाज व शासन-प्रशासन के बीच मधुर संबंध स्थापित करने व मजबूती के साथ आवाज बुलंद करने के लिये ई-रेडियो इंडिया का गठन किया है।

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