Poem on Yoga: योग ईश्वर का अनुपम उपहार है

Poem on Yoga: योग एक ऐसी शक्ति है जो आत्मिक, मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सुख की अनुभूति प्रदान करती है। योग मन, वचन, कर्म की समन्वय शक्ति के आधार पर आरोग्य जीवन जीने की कला में निपुणता प्रदान करता है। योग न केवल शारीरिक व मानसिक शक्ति को सुदृढ़ बनाता है बल्कि बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

योगासन शरीर की कठोरता एवं मोटापे पर नियंत्रण करके शरीर को मजबूत एवं लचीला बना कर स्फूर्ति प्रदान करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आंतरिक शुद्धिकरण के साथ-साथ तनाव, क्रोध, मानसिक अस्थिरता, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं समस्त हीना भावनाओं को जड़ से उखाड़ फेंकने की शक्ति होती है।इसके साथ-साथ शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है।

योग अनुसार ध्यान से हम एकाग्र होकर मानसिक सुदृढ़ता बढ़ा सकते हैं और पढ़ने में रुचि व यादाश्त को भी अच्छा बना सकते हैं। चिड़चिड़ापन, अनिद्रा एवं समस्त आंतरिक व मानसिक रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। योग के माध्यम से राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं राष्ट्रभक्ति को भी सशक्त बनाया जा सकता है। योग द्वारा संस्कारों, नैतिक मूल्यों एवं सभ्यता को विकसित किया जा सकता है। योग से सकारात्मक एवं उच्च विचारों से अच्छे व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास होता है।अंत: हम कह सकते हैं कि योग स्वस्थ मन, शरीर, आत्मा एवं बुद्धि के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहा है।

Poem on Yoga: योग करो रहो तंदुरुस्त

व्यस्त रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे, देता आज मशवरा मुफ्त।
सौ बातों की बात एक है, योग करें रहें तंदुरुस्त ।।

जीवन में है खिचम खिंचाई,
सब लेते हर रोज दवाई ।
रोगों से यूँ लड़ते – लड़ते,
सारी जिंदगी व्यर्थ गँवायी।
हम बनें रहे सदा अज्ञानी,
नहीं समय की कीमत जानी।
दशा नशे ने ऐसी कर दी,
दे दी यौवन की कुर्बानी ।
अब भी वक्त है सोचो,समझो,बचा बुढ़ापा करलें दुरुस्त।
सौ बातों की बात एक है , योग करें रहें तंदुरुस्त ।।

कब खाना है, क्या खाना है,
कितना खाना, कितनी बार?
किसके संग में,क्या खाना है,
क्या नहीं खाना किस के बाद?
जब तक इसका ज्ञान न होता,
देख कभी आराम न होता।
बकरी की ज्यों खाने से भी ,
कभी कोई पहलवान न होता।

कर लें वादा, खाएँ सादा, तले, भुने से हो कर मुक्त।
सौ बातों के बाद एक है, योग करें रहें तंदुरुस्त ।।

शुद्ध हवा माहौल शांत बिन ,
कभी न मन को मिलता चैन।
बुद्धि को विद्या मिले खाना ,
और आँखों को निंद्रा रैन ।
बरसे दिल सहयोग, सहायता,
भरता जो तन मन में ताकत।
स्वच्छ सोच उपज हो उर की,
यही योग की अलग नजाकत।

आसन, प्राणायाम, ध्यान से मार आलस्य करें तन चुस्त।
सौ बातों की बात एक है, योग करें रहें तंदुरुस्त ।।

आँखों पर सम्मान बिठाकर,
मानवता की सैर कराए।
बौध्दिकता में नैतिकता भर,
शिक्षा संग संस्कार सजाए।
कर में थमाँ ज्ञान का दीपक,
भटकों को यह राह दिखाए।
मन से मारे क्रोध और घृणा,
सबको प्रेम पाठ सिखाए।

करे नफरत नष्ट”नफे”नर की, योग विद्या में होकर लुप्त ।
सौ बातों की बात एक है, योग करें रहें तंदुरुस्त ।।

By: नफे सिंह योगी मालड़ा ©महेंद्रगढ़ हरियाणा