ई रेडियो इंडिया
राजनीतिक विचारों पर अब पार्टियों ने अपनी-अपनी गोटियां सेट करनी शुरू कर दी हैं… कुछ ऐसा ही देखा जा रहा है इस समय कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जहां पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच दो-दो हाथ होता हुआ नजर आ रहा है… पिछले दिनों आपने देखा था कि किस तरह से पहले कांग्रेस की सत्ता बनी और फिर भारतीय जनता पार्टी को भी हुई और अब उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर चुनाव आने वाले हैं तो ऐसे में सियासी दल खुद को मजबूत करने में तन मन और धन से जुड़े हुए हैं…
कर्नाटक के दिग्गज राजनेताओं के क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है तो वहीं पर सैकड़ों अनियमितताओं की वजह से इस बार आम जनता में चुनाव को लेकर एक नया नजरिया बनता हुआ दिखाई दे रहा है… तो आइए जानते हैं क्या है यहां के दिग्गज राजनेताओं के क्षेत्र का सफरनामा…
देवगौड़ा परिवार का दबदबा
परिवारवाद की राजनीति का एक उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा का परिवार भी है। मैसूर क्षेत्र के रामनगर इलाके में उनके छोटे बेटे कुमारस्वामी का प्रभाव है, तो देवगौड़ा की संसदीय सीट रही हासन पर बेटे एचडी रेवन्ना का दबदबा है। बावजूद इसके वर्तमान में हासन शहर सीट पर भाजपा का विधायक है। कुमारस्वामी खुद चैन्नापटना से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। वहीं, उनकी पत्नी की सीट रामनगर से इस बार बेटे निखिल कुमारस्वामी दावेदार हैं। रेवन्ना के बेटे प्रज्ज्वल रेवन्ना अपने दादा की परंपरागत सीट हासन से सांसद हैं, तो एचडी रेवन्ना की पत्नी भवानी रेवन्ना जेडीएस से विधानसभा टिकट की दावेदार हैं। एक बेटा सूरज एमएलसी है।
मैसूर शहर में टीपू के मुद्दे की साफ झलक
मांड्या जिले की तरह मैसूर शहर में भी टीपू सुल्तान से जुड़े मुद्दे की झलक साफ दिखी। क्लॉक टॉवर के पास के बाजार में व्यापारियों ने टीपू की जयंती मनाने के फैसले को ही गलत ठहरा दिया। हार्डवेयर के व्यापारी कमलेश कवार कहते हैं कि जयंती शुरू करके पिछली सरकार ने नए विवाद को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि टीपू को यहां के कई इलाको में उस तरह से योद्धा नहीं माना जाता, जैसा कि बाकी लोग समझते हैं। वह कुर्ग का उदाहरण देकर कहते हैं कि वहां काफी लोगों की जान ले ली गई थी। जैसे ही शहर से बाहर श्रीरंगपट्टनम की ओर चलते हैं, तो चाय की दुकान पर बैठे विजयन्ना कहते हैं, चुनाव में इस मुद्दे के कारण भाजपा को बढ़त मिलती दिखाई दे रही है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोग हर दल से दिखे नाराज
श्रीरंगपट्टनम से कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया की सीट वरूणा की ओर चलते हुए बाहरी क्षेत्र में बने देवगौड़ा सर्किल पर मिले सरकारी कर्मचारी बाबू शा का मानना है कि वर्तमान सरकार के लिए भ्रष्टाचार के आरोप से पीछा छुड़ाना आसान नहीं होगा। भ्रष्टाचार पिछली सरकार में भी था, पर इस बार यह और बढ़ा है। हालांकि, वह कर्मचारियों के लिहाज से पुरानी पेंशन के मुद्दे को कांग्रेस के पक्ष में मानते हैं। मेडिकल स्टोर चलाने वाले महेश का भी मानना है कि प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम रही। हासन जिले के रास्ते में पड़े केआर नगर विधानसभा क्षेत्र के गांव सातिग्रामा में चुनाव की बात करते ही महिला वीणा बिफर पड़ती हैं। कन्नड़ में वह कहती हैं कि गरीबों के लिए महंगाई ने जीना मुहाल कर दिया है।
सिद्धारमैया की सीट पर रोचक समीकरण
वरुणा निर्वाचन क्षेत्र इस विधानसभा चुनाव में उन अहम सीटों में शामिल है, जिन पर सबकी नजरें टिकी हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसी सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। 2018 में यहां से उनके बेटे यथींद्र ने जीत दर्ज की थी। इस बार बेटे की सीट से दांव लगाने पर भाजपा ने भी उन पर निशाना साधा है। सिद्धारमैया परिवार के दबदबे वाली इस सीट पर लिंगायत वोटर अच्छी संख्या में हैं। स्थानीय दिग्गज होने के नाते यह वोट अभी तक सिद्धारमैया परिवार के खाते में जाते रहे हैं। लेकिन, येदियुरप्पा के बेटे के विजयेंद्र के यहां से खड़े होने की चर्चा से ही मुकाबला रोचक नजर आने लगा है।
लिंगायत-वोक्कालिगा में बंटा है जनाधार
लिंगायत वोटों का असर मैसूर से निकलकर हासन तक पहुंचते हुए दिखने लगता है। कुछ स्थानीय समीकरणों को छोड़ दें, तो लिंगायत वोटों पर ज्यादा असर भाजपा का है। वहीं, वोक्कालिगा जेडीएस और कांग्रेस के पाले में नजर आ रहे हैं। सिद्धारमैया कुबरा जाति से आते हैं, इसलिए इस समुदाय के वोटर कांग्रेस के पक्ष में खड़े नजर आते हैं। जेडीएस के वोटर के भी दो रुख देखने को मिले। यह तो सभी को अंदाजा है कि जेडीएस अकेले सरकार नहीं बना सकती, लेकिन किंगमेकर बनने के प्रति सभी आश्वस्त है। इनमें वोक्कालिगा समुदाय के लोगों का ज्यादा झुकाव चुनाव के बाद भाजपा के साथ पर रहा तो मुस्लिम समर्थक चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन हो।