मेरठ। मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कौन होंगे? इसको लेकर लखनऊ और दिल्ली की भाग दौड़ में पार्टी के नेता लगे हुए हैं। पार्टी सूत्रों का दावा है कि मेरठ लोकसभा सीट गठबंधन में अब सपा के खाते में चली गई है। इसी वजह से सपा के कई दिग्गज टिकट हथियाने के लिए दौड़ धूप कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव चाहते हैं कि मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट से किसी गैर मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतर जाए, तभी भाजपा को टक्कर दी जा सकती है।
क्योंकि मेरठ लोकसभा सीट बीजेपी का एक तरह से मजबूत किला है। ऐसे में भाजपा को चुनौती देना बेहद मुश्किल है। भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल हैट्रिक लगा चुके हैं। उनकी भाजपा में गहरी पेट है और मतदाताओं में भी । हालांकि इस बार भाजपा का टिकट होल्ड पर कर दिया गया है। अब यह कहना मुश्किल है कि टिकट किसे मिलेगा, लेकिन एक-दो दिन में भाजपा टिकट फाइनल कर सकती है। भाजपा के टिकट फाइनल करने के बाद ही समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी मेरठ को देगी।
दरअसल, मुस्लिम प्रत्याशी यदि सपा उतरती है तो उसके बाद कोई दूसरी जाति के लोगों को मुस्लिमों के साथ प्लस करना मुश्किल हो जाएगा। इसी वजह से सपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाह गैर मुस्लिम नेताओं पर लगी हुई है। हालांकि मेयर के चुनाव में मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया था, जिसके चलते समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी सीमा प्रधान पत्नी विधायक अतुल प्रधान को तीसरे पायदान पर संतोष करना पड़ा था। ओवेसी की पार्टी के प्रत्याशी मेयर के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे। इसमें भी सपा की खासी किरकिरी हुई थी।
तब कहा गया था कि मुस्लिमों ने सपा को वोट नहीं किया। वोट क्यों नहीं किया? ये हालात लोकसभा चुनाव में भी पैदा हो सकते हैं। क्योंकि बसपा मुस्लिम प्रत्यशी चुनाव मैदान में उतार सकती हैं, इसका डर भी सपाइयों को सता रहा हैं। लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का वोटो का बंटवारा संभव नहीं है, ये कहकर सपा नेता खुद को संतुष्ट कर रहे हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता गैर मुस्लिम प्रत्याशी को ही मेरठ से उतरना चाहते हैं। मुस्लिम प्लास दूसरी जातियों को एक साथ जोड़ने की कवायद चल रही हैं।
अब इसी को लेकर सपा उलझन में, जिसको सुलझाने में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव लगे हैं। हालांकि सपा के पास मेरठ में कई गैर मुस्लिम बड़े नेता हैं, जिन पर दांव आजमाया जा सकता है, लेकिन सपा का खेल बसपा बिगाड़ सकती है। ये चर्चा राजनीतिक विशेषक भी कर रहे हैं। क्योंकि बसपा में ऐसी चर्चाएं चल रही है कि मुस्लिम मजबूत प्रत्याशी को बसपा चुनाव मैदान में उतर सकती है। बसपा से यदि मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में आता है तो राजनीति के तमाम समीकरण बिगड़ सकते हैं।
इस बात को सपा नेता भी जानते हैं। ऐसे में मुस्लिमों का बटवारा संभव हो सकता हैं, जिसके बाद सपा को झटका भी लग सकता है। यही वजह है कि मुसलमानों के वोटों पर एकाधिकार समझने वाली सपा की मुश्किल खड़ी हो सकती हैं। किस पार्टी से कौन प्रत्याशी हेंगे, ये अभी समय के गर्भ में हैं। प्रत्याशी तय होने के बाद ही ये चुनाव की तस्वीर साफ हो सकेगी।
उलेमाओं की सपा से नाराजगी खिला न दे कोई ‘गुल’
मेरठ: अक्सर सपा खेमें में माने जाने वाले उलेमाओं का एक वर्ग इस लोकसभा चुनावों में भी क्या अखिलेश के साथ होगा या फिर इनकी राह इस बार जुदा होगी, कहना मुश्किल है। दरअसल एक खबरिया सूत्र की बातों पर विश्वास करें तो इस समय मेरठ सहित प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य जिलों में सपा का एक खेमा लोक सभा चुनावों को लेकर मुस्लिमों की सोच की गुप्त मॉनिटिरिंग करने में लगा हुआ है। मुसलमानों का एक वर्ग इस बार सपा से कुछ खफा सा लग रहा है। इस वर्ग में कई उलेमा भी शामिल हैं। सूत्र तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि यह खफा वर्ग सपा से दूरी बनाने की गुप्त मुहिम पर भी मंथन कर रहे हैं।
मुस्लिम धार्मिक राजनीति में खासा दखल रखने वाले वेस्ट यूपी के कुछ जिम्मेदारों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2012 में जब प्रदेश में सपा की सरकार सत्तासीन हुई तो कई उलेमाओं ने सोचा कि उन्हें अब राजनीतिक संजीवनी मिलेगी और सत्ता में उलेमाओं का दखल बढ़ जाएगा, जबकि ऐसा नहीं हुआ। यही बात इन उलेमाओं को अखर गई और तभी से उन्होंने सपा से दूरी बनाने की कवायद शुरु कर दी। 2017 के विधान सभा चुनावों में हालांकि मुस्लिमों ने सपा को अच्छा खासा वोट किया लेकिन पार्टी सत्ता से दूर हो गई।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि इन चुनावों में कई बड़े उलेमाओं ने सपा की अंदरखाने काट की। दरअसल यूपी की मुस्लिम सियासत में दिल्ली से लेकर लखनऊ और देवबंद से लेकर बरेली तक के उलेमाओं का खासा दखल माना जाता है। उधर लखनऊ में शिया उलेमाओं की राजनीति भी यूपी की मुस्लिम सियासत सिरमौर समझी जाती है। यहां के कई शिया उलेमा खुद को मुस्लिम राजनीति का अलम्बरदार समझते हैं। मुस्लिम धार्मिक राजनीति के इस खेल में इस बार के लोकसभा चुनावों में सपा खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही है।
इसी के चलते कई सपा नेता लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मुस्लिम मतदाताओं की सोच की गुप्त मॉनिटिरिंग में लगी हुई है। सपा इस जनाधार को किसी भी कीमत पर खोने देना नहीं चाहती। बताया जाता है कि 11 मार्च से शुरु हो रहे रमजान के दौरान आयोजित होने वाली इफ्तार पार्टियों से लेकर ईद मिलन समारोह तक में सपा, उलेमाओं की परिक्रमा कर इनकी असंतुष्टियों को दूर करने की तैयारियां भी कर रही है।