हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रास वोटिंग करके पार्टी के साथ विश्वासघात किया, उसकी वजह से पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी की पराजय हुई। इस घटना के बाद विपक्षी पार्टी भाजपा ने उत्साहित होकर कांग्रेस के उन असंतुष्ट विधायकों के बल पर सूबे की सरकार को संकट में होने का प्रचार शुरू कर दिया। उधर, पार्टी के बागी विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात भी की किन्तु कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने सरकार बचाने के लिए जो कवायद शुरू की, उसके तहत उन्हें लगा कि अब यदि बागी विधायकों के प्रति जरा भी नरमी बरती गई तो दूसरे भी इसी तरह की गलती करेंगे।
यही वजह है कि विधानसभा स्पीकर ने कांग्रेस के इन छह बागी विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी है। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इन विधायकों के भविष्य पर फैसला सुनाया। हिमाचल विधानसभा के स्पीकर कुलदीप पठानिया ने उन्हें पार्टी व्हिप के उल्लंघन का दोषी माना गया है। जिन 6 बागी विधायकों को हिमाचल प्रदेश विधानसभा के स्पीकर ने अयोग्य घोषित किया है, उनमें राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर, चेतन शर्मा, आईडी लखनवाल, सुधीर शर्मा और देवेंद्र भुट्टो शामिल हैं। अयोग्य विधायकों में से एक विधायक राजिंदर राणा ने कहा कि अयोग्य ठहराए गए छह विधायक आदेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। इतना ही नहीं, इससे पहले सरकार बचाने के लिए विधानसभा स्पीकर ने बुधवार को विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के 15 विधायकों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया, जिसमें नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का भी नाम शामिल है।
इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और सुक्खू सरकार के पीडब्लूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, पार्टी हाईकमान द्वारा हिमाचल सरकार पर छाए खतरे को टालने के लिए विभिन्न राज्यों के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों को पर्यवेक्षक बनाकर वहां भेजा गया। पार्टी की तरफ से डैमेज कंट्रोल के प्रयास के बाद विक्रमादित्य सिंह ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया।
सुखविंदर सिंह सुक्खू से नाराज पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने अपना इस्तीफा वापस लेने के बाद कहा कि चार राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री जोऑब्जर्वर लगाए गए थे। उनसे चर्चा के बाद मैंने इस्तीफे का निर्णय वापस लिया है और कहा कि, ‘सरकार को कोई खतरा नही है हमारे पास बहुमत है और मैं पार्टी का सिपाही हूं, हाईकमान का जो भी आदेश होगा उसे मैं मानता हूं।’
फिलहाल कांग्रेस हाईकमान ने समझदारी से विक्रमादित्य सिह को समझा बुझाकर त्यागपत्र वापस करा लिया है। इससे पार्टी के अंदर टकराव की स्थिति टाली जा सकेगी, किन्तु महत्वाकांक्षा से ग्रस्त विधायक कब तक शांत रहेंगे, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिह सुक्खू की पृष्ठभूमि एक सामान्य परिवार की है। उनकी पकड़ राज्य के सामान्य कार्यकर्ताओं पर है। यही कारण है कि कांग्रेस उन्हें खोना नहीं चाहती। सिर्फ हिमाचल ही नहीं, पूरे देश में कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है।
पार्टी से निकाले गये विधायकों का कहना है कि, ‘सूबे में कई और कांग्रेस विधायक हैं, जोकि मुख्यमंत्री से नाराज़ चल रहे हैं।’ ऐसे में वे कब बाजी पलट दें, कहा नहीं जा सकता। इसलिए सूबे के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू समेत पार्टी हाईकमान को भी बहुत फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। उन्हें सूबे के पार्टी विधायकों एवं कार्यकर्ताओं से संवाद बनाये रखना होगा तथा उनकी नाराजगी दूर करनी होगी, ताकि पार्टी में एकजुटता कायम हो सके। राज्य में कांग्रेस की सुक्खू सरकार का खतरा तात्कालिक रूप से भले टल गया हो, पर संकट के बादल अभी भी मंडरा रहे हैं, पार्टी आला कमान को यह बात ध्यान में रखनी होगी।