New Media Regulation: हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। निःसंदेह सोशल-डिजिटल मीडिया की रचनात्मक-सकारात्मक महत्ता एवं भूमिका की पूर्णतया अनदेखी नहीं की जा सकती। प्रगति की राह पर तेजी से बढ़ते भारतवर्ष में सोशल-डिजिटल मीडिया एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की महत्ता को सरकार ने स्वयं रेखांकित किया है। यदि देश में 53 करोड़ व्हाट्सएप, 40 करोड़ फेसबुक और एक करोड़ से अधिक ट्विटर उपयोगकर्त्ता हैं तो यह छोटी संख्या नहीं है।
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो और यूट्यूब जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आज बेहद लोकप्रिय हैं। और यहीं सरकार की चिंता और जिम्मेदारी दोनों बढ़ जाती है। क्योंकि अफ़वाहों का अड्डा और नकारात्मकता का अखाड़ा बनते जा रहे इन माध्यमों के दुरुपयोग की दिनानुदिन बढ़ती प्रवृत्तियाँ अत्यंत चिंताजनक हैं। पहले यह दुरुपयोग ताक़तवर लोगों, प्रतिस्पर्द्धी प्रतिष्ठानों, राजनीतिक दलों तक सीमित था, पर अब इसमें देश को कमज़ोर करने वाली तमाम भीतरी-बाहरी ताक़तें भी शामिल हो गई हैं।
चाहे दिल्ली-बेंगलुरु-मुजफ्फरनगर दंगा हो या जाट-गूजर-दलित-किसान आंदोलन; चाहे खालिस्तान समर्थित हालिया टूलकिट प्रकरण हो या जेएनयू-शाहीनबाग-हाथरस के बहुचर्चित विरोध-प्रदर्शन, चाहे गो-हत्या के नाम पर होने वाली कथित मॉब लिंचिंग हो या दूर कहीं-किन्हीं पृष्ठों-पुस्तकों-प्रतीकों-प्रतिमानों के कथित अपमान पर होने वाले दंगे-फ़साद; चाहे प्रवासी मज़दूरों को बहकाने-भड़काने वाले भावनात्मक-आवेगमयी ज्वार हों या सुशांत सिंह आत्महत्या प्रकरण से जुड़ा अफ़वाहों का बाज़ार, चाहे किसी की छवि बिगाड़ने के सुनियोजित ‘खेल’ हों या चमकाने के प्रायोजित अभियान, चाहे निजता में अनावश्यक-अनधिकृत हस्तक्षेप हो या अंतरंग-गोपन क्षणों-भावों-मुद्राओं का निर्लज्ज प्रदर्शन -क्या इन तमाम घटनाओं-प्रसंगों में एक भी ऐसी घटना या प्रसंग है, जिसमें इन मंचों की नकारात्मक भूमिका न रही हो, इनका दुरुपयोग नहीं किया गया हो?
26 जनवरी को लालकिले पर हुए हल्ला-हंगामा, हिंसा एवं ग्रेटा की ट्वीट के साथ सामने आए टूलकिट प्रकरण ने इन माध्यमों के दुरुपयोग से संबंधित नेपथ्य की सारी कथा-पटकथा एवं अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों की पोल खोलकर रख दी है। देश-विरोधी ताक़तें इनका दुरुपयोग कर देश की एकता-अखंडता-सुरक्षा-संप्रभुता से खिलवाड़ करने का लगातार षड्यंत्र रचती रही हैं। दुनिया के तमाम देशों में आज सोशल मीडिया को क़ानून के दायरे में लाने की पुरज़ोर माँगें उठने लगी हैं।
फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका जैसे देश भी इनके शिकार हैं। अभी हाल ही में संपन्न हुए अमेरिकी चुनावों में इन मंचों का जमकर दुरुपयोग किया गया। ये ऐसे ख़तरनाक हथियार हैं, जिनके जोख़िम एवं ख़तरों से इनके उपयोगकर्त्ता भी शायद पूरी तरह परिचित नहीं। सनद रहे कि बारूद के ढ़ेर पर बैठकर न तो शांति के पाठ पढ़े जा सकते हैं, न नीति के शास्त्र ही गढ़े जा सकते; सच यही है कि आज इन मंचों पर सुंदर-स्वस्थ विचारों की अभिव्यक्ति कम और अराजकता और विध्वंस का व्याकरण अधिक रचा जा रहा है।
यह स्वागत योग्य क़दम है कि भारत सरकार ने सोशल-डिजिटल मीडिया एवं ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स के लिए स्पष्ट एवं ठोस दिशानिर्देश ज़ारी किए हैं। कोई भी मंच और माध्यम कितना भी सशक्त और लोकप्रिय क्यों न हो, उसे अनियंत्रित एवं निरंकुश नहीं छोड़ा जा सकता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबकी अपनी-अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही होती है। सबको नियमों व क़ानून के दायरे में ही काम करना होता है।
स्वाभाविक है कि देश से बाहर के सोशल-डिजिटल मीडिया एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भी क़ानून एवं नियमों के दायरे में रहकर ही काम करना पड़ेगा। यों तो उन्हें संबंधित देश के इतिहास-भूगोल, रीति-नीति-परंपरा-संस्कृति, मर्यादा-नैतिकता का भी सम्मान करना चाहिए। पर व्यापक विस्तार एवं सर्व सामान्य की पहुँच में होने के कारण यदि यह संभव न हो तो कम-से-कम उन्हें राष्ट्र की एकता-अखंडता-संप्रभुता व क़ानून-व्यवस्था का सम्मान तो अनिवार्यतः करना ही चाहिए।
गौरतलब है कि पिछले दिनों इन माध्यमों ने स्रोत एवं सामग्री संबंधी सरकार की बहुत-सी आपत्तियों को या तो दरकिनार कर दिया या बहुत हल्के में लिया था। अब सरकार ने उन पर नकेल कसी है। देश के जागरुक एवं संवेदनशील जनों की ओर से भी यह माँग लगातार उठाई जा रही थी। नए नियम के अनुसार अब उन्हें 24 घंटे के भीतर नग्नता-अश्लीलता परोसने वाले आपत्तिजनक कंटेंट हटाने होंगें, विदेश में तैयार किए गए कंटेंट को देश के भीतर प्रसारित करने वाले पहले स्रोत यानी शख़्स का नाम उज़ागर करना होगा, ओटीटी को स्वनियामक के तहत काम करना होगा और डिजिटल न्यूज़ चलाने वालों को पत्रकारिता की तय मर्यादाओं का पालन करना होगा।
उल्लेखनीय है कि कला एवं विचारों की अभिव्यक्ति के नाम पर एक-से-एक ज़िद्दी, भ्रष्ट, सनकी, कुंठित, कुतर्की, अहंकारी, महत्त्वाकांक्षी दिमाग़ आज इन मंचों पर विष वमन करने में लगा है; किसी को वर्षों से दमित वासनाओं एवं यौन कुंठाओं का वमन करना है तो किसी को विचारधारा की आड़ में कोटि-कोटि जनों की श्रद्धा व आस्था पर चोट करनी है ; किसी को ईर्ष्या, घृणा व वैमनस्यता का प्रसार कर अपना उल्लू सीधा करना है तो किसी को रातों-रात चतुर्दिक प्रसिद्धि पानी है।
किसी को तरह-तरह की अतिरंजित मुद्राओं और दुर्लभ भावभंगिमाओं के अपडेट्स लोड कर सस्ती लोकप्रियता बटोरनी है तो किसी को तरह-तरह के दुःसाहसिक कारनामों को अंजाम देकर स्वयं को नामचीन घोषित करवाना है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इनसे उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि इन सबका समाज पर कैसा प्रभाव पड़ता है!
आलम यह कि जिसकी जितनी बेतुकी और बेतरतीब हरकतें उसका उतना बड़ा नाम! मन और मिजाज़ ऐसा कि बदनाम भी हुए तो नाम नहीं हुआ क्या! ढीठ, बीमार, कुंठित व पथभ्रष्ट मानसिकता वाली एक पूरी-की-पूरी फ़ौज इन दिनों यहाँ उपस्थित एवं सक्रिय है, जिनके अहं, कुंठा, कुतर्क, तनाव, अवसाद अशिष्टता और अश्लीलता की बाढ़ में लोक-मर्यादाओं और और जीवन-मूल्यों की कूल-कछारें ढह चली हैं।
इन मंचों पर सूचनाओं का शोर है, सामंजस्य और सौहार्द का संगीत नहीं। कृत्रिम और आभासीय रिश्तों का मायाजाल है, दुःख-सुख के सच्चे साझेदार नहीं! इसने हमें पहले से अधिक एकाकी और आत्मकेंद्रित बना दिया है। यहाँ तक कि इसके कारण घर-परिवार के सदस्यों का भी प्रत्यक्ष संवाद एवं पारस्परिक जुड़ाव कम हुआ है। पेड़-पौधे, नदी-पर्वत-सागर, धरती-आकाश, चाँद-सितारे जैसे नयनाभिराम दृश्य देखे-सराहे जाने की आस में बाट ही जोहते रह जाते हैं।
हम फूलों को देखकर मुस्कुरा नहीं सकते, झरने को देखकर खिलखिला नहीं सकते, लहरों को देखकर लहलहा नहीं सकते, भँवरों को देखकर गुनगुना नहीं सकते, चिड़ियों को देखकर चहचहा नहीं सकते, बच्चों को देखकर चिहुँक नहीं पड़ते, दुःखियों को देखकर पसीज-पसीज नहीं उठते- कुल मिलाकर यह एक ऐसी बीमारी-सी है, जिसने हमारी सहजता ही एकदम बिसरा दी है। प्रकृति प्रदत्त उपहारों एवं सहज मनावीय भावनाओं से दूर इन मंचों-माध्यमों के रूप में हमने एक अजीब चिढ़ी-कुढ़ी सी दुनिया अपने इर्दगिर्द रची है!
इसने हमारी सामूहिकता उत्सवधर्मिता, रचनात्मकता, जीवंतता, चिंतनशीलता को नष्ट-भ्रष्ट किया है। नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं को जन-जन तक पहुँचाने से अधिक इसने आरोपों और अफ़वाहों के बाज़ार को गरम किया है? क्या यह सत्य नहीं कि इन मंचों ने झूठ और प्रपंच को पल्लवित-पोषित किया है, सामाजिक समरसता के ताने-बाने को ठेस पहुँचाया है, अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सब प्रकार की अशिष्टता, अश्लीलता, उच्छृंखलता, स्वच्छंदता, स्वेच्छाचारिता को हवा दी है?
निःसंदेह सूचना प्रौद्योगिकी (इंटर मीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम 2021 इन मंचों के दुरुपयोग पर तो प्रभावी अंकुश लगाएगा ही, हमारी चेतना-संवेदना को भी कुंद होने से बचाएगा तथा समाज एवं देश की समरसता, सौहार्द्रता एवं स्थापित जीवन-मूल्यों, मर्यादाओं की भी रक्षा करेगा।