बिहार विधानसभा चुनाव: बड़ी कठिन है डगर पनघट की!

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा हो चुकी है। भारतीय चुनाव आयोग ने गहन मतदाता पुनरीक्षण के बाद आंकड़े भी जारी कर दिये हैं। इसके मुताबिक बिहार में अब 7.42 करोड़ मतदाता हैं। बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए किसी भी दल या गठबंधन के पास 122 सीटें होना जरूरी है। बिहार में फिलहाल जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घटक दलों वाली एनडीए सरकार है और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। मौजूदा समय में विधानसभा में भाजपा के 80 विधायक हैं। राजद के 77, जनता दल यू के 45 और कांग्रेस के 19, कम्युनिस्ट पार्टी के 11, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के 4, कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) के 2, कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के दो, ओवैसी की पार्टी का एक और 2 निर्दलीय विधायक हैं।

सभी पार्टियां वोटरों को अपनी ओर खींचने के लिए जमकर रेविड़यां बांट रही है। कहीं तो बिहार की 75 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए पहुंच रहे हैं तो कहीं चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से पहले सीएम नीतीश कुमार की तरफ से करोड़ों रुपए की योजनाओं की घोषणा की गई है। महिलाओं के खातों में पैसे देने के बाद पीएम मोदी ने युवाओं के लिए करीब 62 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू की हैं। इनमें बिहार के लिए भी काफी योजनाएं हैं। इन योजनाओं से लगता है कि बिहार चुनाव सत्तारूढ़ केंद्र की एनडीए सरकार के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखती है और वेंद्रीय नेतृत्व किसी भी हालत में बिहार खोना नहीं चाहता। इन योजनाओं से लगता है कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार महिलाओं और युवाओं पर विशेष ध्यान देकर चुनाव में जीत की संभावनाएं बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि यह चुनाव जीतकर सत्ता हासिल करना नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं रह गया है, क्योंकि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए महागठबंधन भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है।

एसआईआर, वोट चोरी और संविधान रक्षा इनके प्रमुख मुद्दे हैं। एनडीए की अंदरूनी खींचतान भी चिंता का विषय बनी हुई है।
इस बार के चुनाव में चिराग पासवान और मुकेश सहनी की भूमिका काफी अहम होगी। 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिससे जेडीयू की सीटें कम हो गईं थीं। इस बार राहत की बात यह है कि LJP (राम विलास) NDA गठबंधन में शामिल है और मिलकर चुनाव लड़ेगी। NDA को चिराग के 5% पासवान वोट बैंक पर भरोसा है, जो नतीजों में निर्णायक साबित हो सकता है।

वहीं, विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता मुकेश सहनी, जो 2020 में NDA का हिस्सा थे और चार सीटें जीते थे, अब ‘INDIA’ गठबंधन के साथ हैं। गठबंधन को उम्मीद है कि सहनी के निषाद समुदाय का समर्थन मिथिलांचल, सीमांचल और चंपारण के कुछ हिस्सों में काम आएगा।

इस बार चुनाव में एक नया फैक्टर भी जुड़ गया है। वह है पीके यानि प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी। पीके ने बिहार में अपने आरोपों से तहलका मचा दिया है।

फिलहाल उनके निशाने पर सत्तारुढ़ एनडीए सरकार के मंत्री हैं। प्रशांत किशोर अपनी जनसभाओं में जबरदस्त भीड़ खींच रहे हैं। देखना यह होगा कि यह किसके वोट काटते हैं, एनडीए की या महागठबंधन की? अगर पीके 10-12 सीटें निकाल लेते हैं तो यह भी किंग मेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं। बिहार में इस समय लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन बनाम जन सुराज पार्टी के बीच दिखती है। नीतीश कुमार, तेजस्वी या प्रशांत किशोर.. बिहार का कौन होगा अगला मुख्यमंत्री नाम के सी-वोटर का ताजा सर्वेक्षण आया है। 2025 में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ गईं है। हालिया सी-वोटर सर्वे ने दिखाया है कि तेजस्वी यादव अभी सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री के दावेदार हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि प्रशांत किशोर ने लोकप्रियता में नीतीश कुमार को पछाड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया है। कौन जीत रहा है यह कहना मुश्किल है, कांटे की टक्कर है। एनडीए, इंडिया गठबंधन और प्रशांत की जन सुराज पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले ने लड़ाई दिलचस्प बना दी है।

सवाल यह भी है कि क्या नीतीश कुमार लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बन पाएंगे या फिर एनडीए की जीत होती है तो क्या भाजपा किसी नए मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा करेगी। वहीं विपक्ष अगर जीतता है तो उसका कौन मुख्यमंत्री होगा क्योंकि अभी तक इस विषय पर कांग्रेस ने कुछ खुलकर नहीं बोला है। सी-वोटर सर्वे के अनुसार बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव को लगभग 35 फीसदी लोगों ने भावी मुख्यमंत्री के रूप में चुना है, जबकि नीतीश कुमार को इस सर्वे में तीसरी पसंद बताया गया है और उन्हें केवल 16 प्रतिशत लोगों ने चुना। जबकि दूसरे नंबर पर राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की लोकप्रियता इस सर्वे में सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री के रूप में 23 प्रतिशत तक पहुंच गईं है। बहरहाल इस सर्वेक्षण से इतना तो पता चलता ही है कि बिहार में कैसी सियासी हवा चल रही है।