tumblr mxrkabJKjr1rco6noo1 1280 jpg

इन नौ लोगों से मनुष्य को होता है लगाव, यहीं होती है भूल

0 minutes, 1 second Read

भगवान् श्री रामजी ने विभीषण जी को कहा है कि नौ जगह मनुष्य की ममता रहती है, माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार में, जहाँ जहाँ हमारा मन डूबता है वहाँ वहाँ हम डूब जाते हैं, इन सब ममता के धांगो को बट कर एक रस्सी बनती है ।

जननी जनक बंधु सुत दारा
तनु धनु भवन सुहृद परिवारा।
सब के ममता ताग बटोरी,
मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।
अस सज्जन मम उर बस कैसें,
लोभी ह्रदयं बसइ धनु जैसे।

हनुमानजी कहते हैं सज्जन कौन है, जो बोलते, उठते, सोते, जागते हरि नाम लेता है, भगवान का सुमिरन करता है वह सज्जन हैं, सागर की तरह दूसरे को बढते हुए देख उमड़ता हो वो सज्जन हैं, जो सबकी ममता प्रभु से जोड दे, प्रभु के चरणों में छोड़ दे

“सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणंब्रज”
वह सज्जन हैं, भगवान् बोले ऐसे सज्जन से हनुमानजी हठपूर्वक मित्रता करते हैं।

एहि सन हठि करिहउँ पहिचानि।
साधु ते होइ न कारज हानी।।

ऐसे तो हनुमानजी
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर”

हनुमानजी वानरों के रक्षक हैं,

“राखेहू सकल कपिन के प्राणा”

यह कपियों के वास्तव में ईश्वर है, रक्षक हैं,

“जय कपीस तिहुँ लोक उजागर”

श्री हनुमानजी का यश तीनों लोकों में हैं, सज्जनों! स्वर्ग में देवता इनका यशोगान करते हैं।

मृत्युलोक में राम-रावण संग्राम में सारे ऋषि-मुनि, सारे मानव एवं दानव सभी ने यहां तक की दानवराज रावण ने भी हनुमानजी की प्रशंसा की है, पाताललोक में अहिरावण व महिरावण ने भगवान् को हरण करके ले गए थे तो जाकर देवी की प्रतिमा में विराजमान होकर श्री हनुमानजी ने भगवान् की रक्षा की है, बडा मार्मिक प्रसंग है, हनुमानजी देवी की प्रतिमा में प्रवेश कर गयें।

अहिरावण, महिरावण ने देवीजी को प्रसन्न करने के लिए 56 भोग लगायें और हनुमानजी युद्ध में बहुत दिनों तक भोजन नहीं कर पाए थे, टोकरी पे टोकरी चढाये जा रहे हैं, हनुमानजी कह रहे हैं चले आओ और हनुमानजी लडडू खा-खा कर बहुत प्रसन्न हैं, अहिरावण और महिरावण देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न, कि आज देवीजी बहुत प्रसन्न हैं।

हनुमानजी सोच रहे हैं कि बेटा चिंता मत कर, एक साथ इसका फल दूंगा, पाताललोक में और नागलोक में अहिरावण, महिरावण, भूलोक में ऋषि व मुनि, मृत्युलोक में देवता, “लोकउजागर” ऐसे हैं श्री हनुमानजी, जिनका यश सर्वत्र व्याप्त है।

श्री हनुमानजी महाराज जब भगवान् श्रीरामजी के दूत बन कर जानकीजी के पास में गयें तो माँ ने यही प्रश्न किया, तुम हो कौन? अपना पत्ता व परिचय दो, तो हनुमानजी ने अपने परिचय में इतना ही कहा

“रामदूतमैं मातु जानकी, सत्य सपथ करूणा निधान की”

अपने परिचय में हनुमान जी यही बोले माँ मैं भगवान् श्रीराम जी का दूत हूँ।

हनुमानजी की वाणी सुनकर माँ ने कहा दूत बन कर क्यो आये हो भैया तुम तो पूत बनने के योग्य हो, पूत बन कर क्यो नही आयें? हनुमानजी बोले पूत तो आप बनाओगी तभी तो बनूँगा, हनुमानजी ने इतना कहा तो जानकीजी आगे जब भी बोली हमेशा पूत शब्द का ही प्रयोग किया है,

“सुत कपि सब तुमहि समाना”

जब-जब बोली है जानकी जी ने पुत्र बोलकर सम्बोधित किया।

इसके बाद भगवान् भी बोले हैं-

“सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही”

क्योंकि पुत्र का जो प्रमाण पत्र है वह माँ देती है, भगवान् अगर पहले पुत्र कह कर संबोधित करते तो जगत की व्यवहारिक कठिनाई खडी हो जाती, क्योंकि पुत्र तो माँ के द्वारा प्रमाणित होता है, क्योंकि माँ जो बोलेगी, माँ ही तो बोलेगी कि मैने जन्म दिया है।

माँ जानकी जी और भगवान् श्री राम जी को प्रणाम करते हुयें भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी से आप सभी को भगवान् की भक्ति की कामना के साथ शुभ मंगलमय् ।

author

Pratima Shukla

प्रतिमा शुक्ला डिजिटल पत्रकार हैं, पत्रकारिता में पीजी के साथ दो वर्षों का अनुभव है। पूर्व में लखनऊ से दैनिक समाचारपत्र में कार्य कर चुकी हैं। अब ई-रेडियो इंडिया में बतौर कंटेंट राइटर कार्य कर रहीं हैं।

Similar Posts

error: Copyright: mail me to info@eradioindia.com