प्रेम कोई एक मिनिट में घटने वाली घटना नहीं है। आपने किसी को देखा और आपको उसके प्रति आकर्षण महसूस हुआ और फिर आपके मन में उसी के विचार घूमने लगे और आप भी उन विचारों के साथ हो लिए क्योंकि यह एक आनंद देने जैसा अनुभव है।
फिर आपने सामने वाले से बात करने की, उसे प्रभावित करने की हर सम्भव कोशिश की और फिर आपने अपने साथी के साथ समय व्यतीत किया और अब यह प्रेम में परिवर्तित हो गया। अब आप दोनों भविष्य के लिए सपने देखने लगे और अपने साथी को उम्मीदें देने लगें।
अब इतना सब घटित होने बाद आपको याद आये अपने घरवाले, जिनके बारे में आपको सब कुछ मालूम था कि वह आपके प्रेम को स्वीकार नहीं करेंगे और फिर आप सोचतें है कि मैं अपने प्रेम के साथ क्या करूँ।
जिस प्रेम को पूरा न कर सको उसे होने से रोको। यह भी एक गलत कर्म है। मन की सतह पर दिया गया दु:ख शरीर के दु:ख से छोटा नहीं होता। जिस समय किसी के लिए प्रेम भरा पहला विचार आये तब उसी समय अपने परिवार को याद करो। आपको कोई अधिकार नहीं कि मजबूरी के नाम पर आप किसी के दु:ख का कारण बनो।